नज़राना इश्क़ का (भाग : 20)
जाह्नवी अब भी फरी के गले लगी हुई थी। आज उसे एहसास हो रहा था कि उसने आज तक फरी के बारे में अपने जो ख्यालात बनाएं वो कितने नीरे और बिना किसी ठोस आधार के थे। उसके प्रायश्चित ने कब उसके दिल में फरी के प्रति अपनेपन का भाव भर दिया उसे एहसास तक न हुआ। उसके गले लगे हुए जाह्नवी ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसे उसके भाई के अलावा भी कोई ऐसा मिल गया जो उसे इससे ज्यादा समझ सके। फरी ने भी उसका कोई विरोध नहीं किया, उसने अपने दिल में कभी विपरीत भाव नहीं पलने दिया, मगर वो बेहद हैरान थी कि आज अचानक ये लड़की इतना बदल कैसे गयी..! उसके मन में जाह्नवी के लिए कोई भाव उत्पन्न नहीं हो रहा था, रह रहकर उसे जाह्नवी ने उसके साथ और विक्रम के साथ जो व्यवहार किया वह याद आता जा रहा था फिर भी उसने जाह्नवी का कोई विरोध नहीं किया, वह भी उसके गले लगे रही।
"बस भी करो यार आज क्या महिला मिलन सम्मेलन चल रहा है क्या?" कब से उन दोनों को गले लगे देख विक्रम खीझकर बोला।
"सॉरी…!" जाह्नवी ने धीमे स्वर में कहा और अपने सीट की ओर बढ़ने लगी, तभी फरी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"अरे भाई आप भी ना…!" फरी, विक्रम को डाँटने लगी। "देखिए जाह्नवी मुझे नहीं पता आपको आज आपको क्या हुआ है, शायद आप सच में बदल गयी हो या….." कहते हुए उसने जाह्नवी की ओर सवालियां निगाहों से देखा। "पर मेरे मन में किसी के लिए कोई मैल नहीं है।"
"थैंक यू सो मच…!" कहते हुए जाह्नवी अपनी सीट की ओर बढ़ गयी।
"और कुछ भी नहीं कहना है क्या?" फरी ने उसके चेहरे को देखकर पूछ लिया, जो अब भी उतरा हुआ ही नज़र आ रहा था।
"कहना तो है पर विक्रम से… पर पता नहीं वो मुझे माफ़ करेगा या नहीं…!" जाह्नवी वापिस उसकी ओर लौटते हुए बिल्कुल सामान्य भाव से बोली।
"अब कर तो दिया माफ, अब क्या पांव पकड़कर बोलूं कि जाइये देवी जी मैंने आपको माफ कर दिया…!" विक्रम ने उसकी बात सुनकर मुँह बनाते हुए कहा।
"तुम लोग जो इतनी आसानी से माफ कर दे रहे हो वही मुझसे नहीं सहा जा रहा है…!" जाह्नवी की आंखों में जैसे बादल उमड़ आये, आँसुओ की धार पलको की बांध से गुजर कर गालों तक आ गयी। "कोई भी किसी को एकदम से माफ नहीं करता…! जबकि मैंने तुम दोनो को हमेशा हर्ट किया…!"
"बस कर ना यार…! तुम अपने भाई को भी तो इतना हर्ट करती हो.. वो माफ कर देता है न हर बार.. अब दोस्त कहा फिर माफ कर देने पर डाउट भी हो रहा है ये समझ से बाहर की चीज है।" विक्रम ने बनावटी गुस्सा कर डांट लगाते हुए कहा।
"हमने तो ये तक भी कि आप अपनी गलती को मानोगी या ऐसा कुछ बोलोगी.. पर आपने बोला, इस दुनिया में सब कुछ अनएक्सपेक्टेड ही होता है। अब प्लीज आप रोना बन्द करो..!" फरी ने जाह्नवी को चुप कराते हुए कहा। जाह्नवी अपने आँसू पोंछते हुए खड़ी हो गयी। ठीक उसी वक़्त निमय क्लास में प्रवेश किया, उसे देखते ही जाह्नवी उसके सीने लग गयी।
"हे भाई..! आई एम सॉरी…!" जाह्नवी ने बेहद भावुक स्वर में कहा।
"सुबह सुबह भाँग गटक के आई है क्या नौटंकी..! चल बैठ चुपचाप..!" निमय उसको खुद से अलग करता हुआ बोला।
"भाई पक्का वाला सॉरी न…!" जाह्नवी अपने दोनों कान पकड़ते हुए बोली।
"तेरी सॉरी की तो…!" निमय उसके पीछे भागा, जाह्नवी भागते हुए अपने सीट पर बैठ गयी। "ये क्या सॉरी सॉरी की रट्टू तोता बनी बैठी है बे.. गधी कहीं की!" निमय जाह्नवी के बाल पकड़कर उसे डाँटते हुए बोला।
"ओये..! बाल से दोस्ती नहीं!" जाह्नवी जोर से चिल्लाई।
"फिर ये सॉरी सॉरी क्या है? कौन सी बहन अपने भाई को सॉरी बोलती है?" निमय उसे प्यार से पुचकारते हुए पूछा।
"जो गलती करती है, अपने भाई का दिल दुखाती है…!" जाह्नवी ने बेहद भावुक स्वर में कहा।
"तू पक्का भाँग खा के नहीं आयी है ना? या कोई सस्ता नशा की है आज…? सोचकर बता जल्दी से..!" निमय उसकी इस हरकत से हैरान होकर उसे चिढ़ाते हुए बोला।
"गधा भाई…!" जाह्नवी उसे धक्का देकर अपनी सीट से हटाते हुए चिल्लाई। 'अब तुम्हें कैसे बताऊं भाई कि मैंने रात कैसे बिताई है, सारी रात बस सोचती रही कि मैंने तुमसे तुम्हारा प्यार और दोस्त क्यों छीन लिया..! क्या हक़ है मुझे इसका..! मुझे मेरे भाई चाहिए इसका मतलब ये नहीं कि मैं अपने भाई सब कुछ छीन लूं..! जब मैंने गहराई से सोचा तो जाना कि उस दिन सारी गलती मेरी थी, मैंने तुम तीनो को बहुत हर्ट किया और तुम तीनों इतने बड़े हो गए हो कि माफ करते जाते हो..! काश मैं तुमसे कह पाती कि उस दिन सारी गलती मेरी थी पर तुम सुनोगे नहीं.. मेरी गलतियां तुम नहीं सुनते.. नहीं सुनना चाहते, पर सुनना पड़ेगा। अगर मैं ये गलतियां करती रही तो इसके जिम्मेदार तुम भी होगे भाई! हमारा प्यार एक दूसरे की ताकत होनी चाहिए, पर तुम्हारा प्यार मुझे दूसरों के ऊपर अपनी ताकत दिखाने के लिए फोर्स नहीं करना चाहिए…! तुम नहीं समझोगे क्योंकि मैंने तुम्हें भी बहुत हर्ट किया है। यह सब सोचना, बोलना, बोलने की कोशिश करना ऐसा लगता है जैसे... जैसे… सारे शब्द समाप्त हो गए हों, गला सूख गया हो.. दिल भर गया हो और आंखे इजाजत ही नहीं देती खुद से आंखे मिलाने की। मैं तुम्हारी बहन हूँ मेरे भाई, मुझे सच में तुम जैसा बनना है, तुमने अपनी हर तक़लीफ़ को मुझसे छिपाकर रख लिया वाह..! अब तुम्हें तुम्हारा प्यार और दोस्त दिलाकर रहूंगी चाहे जो हो जाये…!' जाह्नवी मन ही मन उपज रहे हजारों ख्यालों के बीच से निकलने की कोशिश कर रही थी मगर बार बार उसे अपना वो व्यवहार नज़र आ जाता, जिससे वो खुद को दोषी मान दुबारा कुछ न कुछ सोचने लग जाती, उसके ख्यालों का यह भंवर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
■■■■
शाम हो चुकी थी, सूरज डूब चुका था, फरी अपने कमरे से बाहर निकली, उसके एक हाथ में डायरी दूसरे में पैन थमा हुआ था। उसके चेहरे पर अजीब सी शांति ठहरी हुई थी, वह आज हरेक चीज को बड़ी बारीकी से देखते हुए बढ़ रही थी मानों उसे अपने साथ हो रही घटनाओं पर यकीन न हो रहा हो।
"हे डायरी…!
कभी कभी समझ नहीं आता कि क्या सही है और क्या गलत…! मैंने ऐसा भाई पाया जैसा कभी सोचा भी नहीं था, यह मेरी खुशकिस्मती है कि इस दुनिया में बेहद अच्छे इंसान भी हैं और उनमें से एक मेरा भाई भी है। हम दोनों को भाई बहन बने शायद से चार महीने हुए पर नाता ऐसा जैसे जन्मों से एक दूसरे को जानते हों…! मैंने सोचा तक न था भाई इतनी आसानी से अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को भूल जाएंगे पर भाई उसकी वजह से अपना दोस्त खो देने के बावजूद ऐसे बोले जैसे ये सब तो होते रहता है।
मानती हूँ सब एक जैसे नहीं होते पर भाई कल तक उसकी ओर ठीक से देखना भी पसंद नहीं करते थे, शायद उन्होंने इसलिए माफ कर दिया हो क्योंकि मैंने कह दिया..! मुझे खुद नहीं पता वो क्या चाहती है मगर… इस बार ऐसा लगा मानों जैसे वो पूरे दिल से माफी मांग रही थी, फिर सबको एक और मौका का हक़ भी तो है, मैं नहीं चाहती कोई मेरी तरह दरबदर खुशियों की तलाश में भटके…!
जानती हो डायरी मैं जाह्नवी की बात कर रही हूँ, उसने आज खुद से सॉरी बोला, न जाने क्यों इतना सब होने के बाद भी अब उसपर गुस्सा करने का दिल नहीं करता। ऐसा लगता है मानों वो दिमाग से मासूम बच्ची है.. और उसके दिल में भाई के दूर होने को लेकर इंसेक्युरिटीज हैं, होंगी भी क्यों नहीं जब मुझे अभी विक्रम भाई से दूर होने का डर लगा रहता है तो फिर वो तो उसका सगा भाई है।
आज महसूस हुआ कि वो अपनी बहन से इतना प्यार करता कि उसके मुंह से सॉरी तक नहीं सुनना चाहता, आजकल ऐसे भाई बहन नहीं मिलते हैं न डायरी..! किस्मतवाले होते हैं वो लोग जिनकी ऐसी किस्मत होती है.. अब तो मैं भी एक खुशकिस्मत हूं।
पता है डायरी..! इन सब के अलावा अब भी वो बड़ी प्रॉब्लम मेरे साथ है, बड़े साहब धीरे धीरे शहर की सारी बसों को खरीदते जा रहे हैं, बाबा ने बताया थोड़े दिन में वो शायद पूरे शहर की सारी गाड़ियों को खरीद जाएं.. यही बताने के लिए शायद वो कब से परेशान थे। मैं अपनी ये प्रॉब्लम किसी से शेयर भी नहीं कर सकती.. पता नहीं ये दौलत के नशे में डूबे लोग क्या समझते हैं..! अगर उन्हें लगता है कि पूरी दुनिया खरीद कर अपनी बेटी पा सकते हैं तो ये उनकी गलतफहमी है। उनकी बेटी तो तभी मर गयी थी जब उन्होंने अपनी पत्नी का इलाज कराने के बजाए मीटिंग चुना और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया..! तुम बताओ न डायरी क्या वो इस पैसे से मेरी माँ को ला सकते हैं? नहीं ना…! फिर क्यों मुझे चैन से नहीं जीने देते हैं, मैंने इनका क्या बिगाड़ा है..!
'न जाने खुद को क्या समझते हैं, ये दौलत में डूबे हुए लोग
सारी दुनिया को अपनी अमानत समझते हैं, दौलत में डूबे हुए लोग..'
उम्मीद करती हूँ डायरी की सब अच्छा होगा, आज तो पढ़ने का भी मन नहीं कर रहा है, सो जाती हूँ।
गुड नाईट डायरी
राधे राधे…!"
इतना लिखने के साथ फरी ने डायरी बंद कर दी, उसकी आँखों में आंसू थे वो चुपचाप बैठकर आकाश में निकल रहे टिमटिमाते तारों को देखने लगी।
"शायद इन तारों में होगा अपना सितारा कोई
मेरी माँ सा बनकर आए शायद सहारा कोई
ममता के आंचल को थामें बन जाऊं मैं लाड़ली
मिले आकर जो माँ का ममतामयी किनारा कोई..!" फरी तारों को निहारते हुए गुनगुनाने लगी, सर्द हवाओं के हल्के थपेड़े उसके चेहरे से टकराकर बालों को लहराने लगे, उसके गालों पर छलके आंसू यूँ चमक रहे थे मानों जैसे चांद पर कोई तारा उतर आया हो। फरी आसमां को देखकर गुनगुनाती रही, वह आज कुछ ज्यादा ही भावुक नजर आ रही थी।
क्रमशः….
shweta soni
29-Jul-2022 11:39 PM
Behtarin rachana 👌
Reply
🤫
27-Feb-2022 02:27 PM
बहुत बढ़िया लड़ाकू है सब के सब🤭🤭🤭 फ्री को छोड़ कर, वो फ्री जो नही रहती इमोशनल क्वीन😛
Reply
मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:11 PM
जी धन्यवाद आपका 🤗
Reply
सिया पंडित
21-Feb-2022 04:29 PM
Good story.
Reply
मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:11 PM
Dhanyawad
Reply