सांवरी–१४

सांवरी १४


गतांक से आगे

अगले दिन सुबह 9 बजते तक जीवन ज्योति आशा क्लिनिक के सामने उत्सव का सा माहौल था। एक तरफ जयपुर का बेहतरीन बैंड पूरी साज सज्जा के साथ खड़ा था तो दूसरी तरफ लंबी लंबी कारों का एक हुजूम खड़ा था। हर आने जाने वाले को मिठाई और शरबत दिया जा रहा था। यूं लगता था मानो कोई बड़ा मेला लगा हुआ है, यहां तक कि आने वाले भिखारियों को भी खुले मन से दान दक्षिणा दी जा रही थी।
क्लिनिक के मुख्य द्वार के दोनो तरफ दो सजे हुए हाथी खड़े थे, आसपास के बच्चों को तो मुफ्त ही दावत और मेले का मजा मिल रहा था।
कुंवर साहब और कुंवरानी बहुत उत्सुकता से सांवरी और नवजात शिशु का इंतजार कर रहे थे। कुछ ही पलों में सांवरी और साथ में एक नर्स, डॉक्टर माधुरी के साथ प्रतीक्षा कक्ष में आए और नर्स ने नवजात शिशु को कुंवरानी जी के गोद में देते हुए कहा, ये लीजिए आपके कुल का वारिस।
गोल मटोल नन्हा सा गुलाबी कोमल बालक जिसकी आंखें भी नही खुली थी नींद में ही मुस्कुरा रहा था।
कुंवर साहब ने तुरंत एक नोटों की गड्डी निकाल कर बालक के ऊपर से वार दी और नर्स के हाथ पे रख दी।
थोड़ी देर तक सभी मुग्ध होकर नन्हे बालक को देख रहे थे, कुंवरानी जी की आंखों से गंगा जमुना बह चली, बालक को कुंवर साहब को देकर उन्होंने सांवरी को कस के अपने गले लगा दिया, भावातिरेक उनका गला रूंध आया वो बार बार सांवरी को हजारों धन्यवाद दे रही थी, ये सुंदर दृश्य देख कर वहां पर मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो आई।
यूं लगता था माता देवकी और यशोदा का मिलन हो रहा है, कुछ देर वहां एक खुशियों भरी खामोशी बिखरी रही, जिसे केवल कुंवरानी और सांवरी की रुंधी हिचकियां ही तोड़ रही थी।
वातावरण को संजीदा होता देख, डॉक्टर माधुरी ने  सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया।
लीजिए, आप दोनो को आपके मन की मुराद मिल गई, मेरा ज्यादातर काम खतम हो गया, अब आप लोगों का काम शुरू है।
ख्याल रखिए कम से कम तीन माह तक बच्चे को उसकी मां का दूध ही सबसे गुणकारी होता है। ये आपकी पूरी फाइल है, इसमें बच्चे के टीकाकरण की भी लिस्ट लगी है। अभी अगले 3 माह आपको बच्चे और उसकी मां को  हर 15 दिन बाद चेकअप के लिए लाना जरूरी है, फिर उसके बाद की देखेंगे। अगर किसी भी तरह की कोई भी समस्या आए तो आप के पास मेरा नंबर है, तुरंत मुझे फोन कीजिएगा, ठीक है। अब मुझे इजाजत दें कुछ और मरीज इंतजार कर रहे हैं।
शुक्रिया आपका डॉक्टर साहिबा, आपने सच हमे हमारी मुंहमांगी मुराद पूरी करवा दी, हम पूरी उमर आपके ऋणी रहेंगे किन शब्दों से आपका धन्यवाद करूं, हर शब्द आज छोटा पड़ रहा है, कुंवर साहब दोनो हाथ जोड़ कर बोले।
अब हम लोग भी चलते है, आप बिल हमारे ऑफिस भिजवा दीजिएगा, पेमेंट हो जाएगी।
जी, कुंवर साहब, डॉक्टर माधुरी बोली।
Thank you doctor ji, सुन कर डॉक्टर माधुरी चौंकी, अरे वाह सांवरी तुमने तो बहुत अच्छी अंग्रेजी सीख ली।
जी, ये सब पिछले नौ महीनों का कमाल है, सांवरी मुस्कुराते हुए बोली।
हम्मम, not bad, अच्छा है, डॉक्टर माधुरी ने जाने से पहले कहा और पलट कर विजिटर रूम से बाहर चली गई।
जैसे ही कुंवर साहब, कुंवरानी, सांवरी और नवजात शिशु को लेकर काफिला बाहर निकला गेट के सामने खड़े हाथियों ने पुष्प वर्षा करके सबका स्वागत किया और बैंड ने एक सुमुधुर धुन बजानी शुरू कर दी, इस बीच गेट से गाड़ियों तक लाल कालीन बिछा दिया गया था जिस पर चलते हुए, कुंवरानी नवजात शिशु को लेकर सामने खड़ी गाड़ी में सवार हो गई उनके साथ साथ कुंवर साहब अगली सीट पर और सांवरी पीछे कुंवरानी जी के साथ बैठ गई, इसके साथ ही धीरू और बाकी लोग भी अलग अलग गाड़ियों में सवार हो गए।
आगे आगे सुरक्षा कर्मियों की दो गाड़ियां बीच में कुंवर जी की गाड़ी उसके पीछे दो और सुरक्षा गाडियां और पीछे बाकी सब लोगों की गाड़ियां जीवन ज्योति आशा क्लिनिक से कुंवर साहब की हवेली की तरफ दौड़ चली।
आज हवेली भी किसी नई नवेली दुल्हन सी चमक रही थी। पिछले दो तीन महीने से कई सौ मजदूर रात दिन रंगाई, पुताई, पेंट, पोलिश, मरम्मत के काम में जुटे हुए थे। सारी हवेली को जगह जगह ताजे फूलों से सजाया गया था, हवेली के कोने कोने में रोशनियां अपनी पूरी चकाचौंध के साथ चमक रही थी।
जबकि अभी दीपावली आने में बहुत समय था पर अगर कोई दूर से देखता तो उसे ये ही लगता शायद कुंवर साहब  की हवेली पर दिवाली ही मनाई जा रही है।
जैसे ही कुंवर साहब का काफिला हवेली पर पहुंचा एक बार फिर वहां मौजूद बैंड ने सुंदर धुन छेड़ दी। कार से हवेली के मुख्य द्वार तक भी लाल रंग का कालीन बिछा हुआ था, दोनो तरफ महिलाएं खड़ी होकर पुष्प वर्षा कर रही थी और मंगल गीत गा रही थी। मुख्य द्वार पर एक बुजुर्ग महिला आरती का थाल लिए खड़ी थी।
उसने बड़े प्रेम पूर्वक सबकी आरती उतारी और कुंवर साहब, कुंवरानी, सांवरी, धीरू और नवजात शिशु को  मंगल तिलक लगा कर स्वागत किया।
हवेली में हर तरफ गहमा गहमी का माहौल था, शहर के प्रमुख लोग कुंवर साहब और कुंवरानी जी को बधाइयां प्रेषित कर रहे थे। एक तरफ एक बड़े पंडाल के नीचे स्वादिष्ट पकवान और मिठाइयां बन रही थी। आए हुए प्रत्येक मेहमान को खाना खाने का आग्रह स्वयं कुंवर साहब कर रहे थे, साथ ही सुरक्षा कर्मियों के हाथों उपहार मेहमानों को गाड़ियों में रखवाए जा रहे थे।
कुंवरानी जी सांवरी और धीरू को लेकर उपर शयनकक्ष की तरफ बढ़ गई।
कुंवर साहब ने धीरू और सांवरी को पहले ही कह दिया था की अगले 6/8 महीने वो लोग हवेली में ही रहें, ऐसा इसलिए जरूरी था क्योंकि सांवरी को नवजात शिशु को स्तनपान करवाना आवश्यक था, जैसा डॉक्टर ने भी बताया था।
एक नया करार इस उद्देश्य से पहले ही बना लिया गया था, जिसके लिए धीरू और सांवरी को अलग से कुछ रकम देने का भी प्रावधान था।
इस दौरान धीरू को कुंवर साहब के साथ उनके सहायक के रूप में काम करते रहना था, और सांवरी को बतौर धाय मां नवजात की देखभाल करनी थी।
छोटे कुंवर के आने से हवेली में अब हर दिन एक उत्सव सा लगता था।
पांच दिन बाद एक बार फिर से एक बड़े उत्सव की तैयारी होने लगी क्योंकि आज छठी और नामकरण की रस्म होनी थी।
एक बार फिर हवेली को नए सिरे से सजाया जा रहा था, कुंवर साहब के कुल ज्योतिषी और पुरोहित आने वाले थे जो बालक का नामकरण और शुद्धि यज्ञ भी करने वाले थे। एक बार फिर नए सिरे से हवेली को चाक चौबंद किया जा रहा था, हलवाइयों और खानसामों को तरह तरह के व्यंजन और पकवान इत्यादि बनाने की ताकीद की जा रही थी।
जयपुर और आस पड़ोस के राजे रजवाड़े, और सभी महत्वपूर्ण लोग जश्न में शामिल होने वाले थे, नामकरण और हवन के बाद खाना पीना और जश्न का बड़ा इंतजाम किया गया था।
सुबह ही राज पुरोहित जी और ज्योतिषी जी पधार गए, शुभ महुरत में हवन यज्ञ किया गया फिर उसके बाद पारंपरिक तरीके से छठी की रस्मे पूरी की गई। राज ज्योतिषी ने बालक की कुंडली बनाई, गृहों और नक्षत्रों का ध्यान करके, बालक की नाम राशि के हिसाब से पुरोहित जी ने बालक का नाम का पहला अक्षर पहले बालक के कान में फिर सार्वजनिक रूप से घोषित किया, पिता के नाम जैसा ही बालक का नाम "व" अक्षर से रखा जाना था।
कुंवर साहब और कुंवरानी की सलाह से बालक का नाम विजय प्रताप रखा गया।
करतल ध्वनि से सभी ने नन्हे कुंवर को उसके नए नाम से पुकारा और साथ ही सबने एक स्वर में कुंवर विजय प्रताप की जयघोष की।
हर्षोल्लास के इस माहौल ने सारी हवेली को अपने आगोश में भर लिया था।
शाम होते होते हवेली का प्रांगण विशिष्ठ और अति विशिष्ट अतिथियों से खचाखच भर चुका था। बधाइयों का तांता लगा हुआ था। हर तरफ गहमा गहमी के बीच शबाब और शराब का दौर चल रहा था। सामने स्टेज पर बहुत से देशी विदेशी कलाकार अपनी अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे।
देर रात तक कार्यक्रम चलता रहा और आधी रात के बाद ही एक एक कर के मेहमान एक बार फिर कुंवर और छोटे कुंवर की दीर्घ आयु की कामना करते हुए जाने लगे। करते करते सुबह के तीन बजे तक आखिरी मेहमान भी जा चुके थे। दिनभर की थकान से चूर सहायकों ने सारा तामझाम समेटना शुरू किया और कुंवर साहब भी अपने शयनकक्ष की तरफ चल दिए।
कुंवरानी, धीरू, सांवरी इत्यादि पहले ही सोने जा चुके थे।

दिन आगे बढ़ते गए और कुंवर विजय, धीरे धीरे बड़ा होने लगा। कुंवर साहब और कुंवरानी रोज उसके साथ कई घंटे गुजारते, उसे निहारते, दुलारते। उनके प्यार और सांवरी की देखरेख में अब बालक विजय बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा था। अब तो उसने बैठना, खिसकना शुरू कर दिया था। हवेली के हर इंसान को पहचानना भी शुरू कर दिया था।
वो इतना सुंदर और चपल था की हर कोई किसी न किसी बहाने से उसके साथ समय गुजारना चाहता था।
पर उसके चहेते थे सांवरी, कुवरानी, कुंवर जी और धीरू।
समय अपनी गति से चला जा रहा था, हवेली में हर तरफ खुशी का माहौल हर समय रहता था।
आज कुंवर साहब और कुंवरानी को दिल्ली जाना था, वो चाहते थे की छोटा कुंवर और सांवरी भी साथ चले, पर छोटे कुंवर को अचानक बुखार आ गया इस वजह से उसे साथ ले जाना उचित नही था, कुंवरानी कुंवर विजय के बिना नहीं जाना चाहती थी, पर रिश्तेदारी की वजह से टाल भी नही सकती थी।
आखिर कुंवर विजय को बेमन से सांवरी के पास छोड़ कर कुंवर साहब और कुंवरानी दिल्ली के लिए निकल पड़े।
जाते जाते कुंवरानी सांवरी को कई सलाह देकर गई, भानसिंह को लेकर डॉक्टर को दिखा देना, समय से दवा दे देना, हवा न लगे ध्यान रखना...…इत्यादि इत्यादि...… तुम चिंता मत करो सांवरी हम कल ही वापस आ जायेंगे, ठीक है ना।
जी कुवरानी जी, आप निश्चिंत होकर जाओ, मैं हूं ना ख्याल रखने को.... आप बिल्कुल चिंता न करो, हल्का बुखार है, दवा से उतर जायेगा..… आप जब वापस आओगे देखना कुंवर विजय आप को हंसता हुआ मिलेगा, सांवरी उन्हें विश्वास दिलाते हुए बोली।
आखिर मन को समझा कर कुंवरानी और कुंवर साहब चले गए।
दोपहर में सांवरी कुंवर विजय को दवा देकर सुला रही थी, तभी अचानक किसी ने उसके कक्ष का दरवाजा खटखटाया, इस वक्त कौन आया है।
जब तक सांवरी दरवाजे पर पहुंचती दरवाजा तीन चार बार खटकाया जा चुका था।
दरवाजा खोला तो सामने धीरू और भानसिंह खड़े थे, दोनो ही सूरत से बदहवास दिख रहे थे।
दरवाजा खुलते ही धीरू लगभग बांह खींचते हुए बोला, जल्दी चलो..... वो ..... वो ..... एक्सीडेंट हो गया।
कैसा एक्सीडेंट....... किसका एक्सीडेंट..... क्या बोल रहे हो..... सांवरी एक दम से चौंक कर बोली।
हुकुम का....... भानसिंह के शब्द किसी सीसे की तरह उसके कानो में उतरते चले गए।
कब....किधर......कैसे......कहां..... कुंवर सा और कुंवरानी ठीक है ना...... सांवरी ने एक साथ कई सवाल दाग दिए।
पता नही....... गुड़गांव के पास ट्रक से टक्कर हो गई..... सबको पुलिस गुड़गांव के अस्पताल लेकर गई है, हमको तुरंत बुलाया है।
कुंवर साहब ने होश में आते ही हम तीनो को याद किया है.... पुलिस के मुताबिक उनकी हालत नाजुक है, इसलिए हमको अभी थोड़ी देर में ही निकलना होगा।
हे भगवान...... ये क्या हो गया.... सांवरी के मुंह से निकला, ईश्वर कुंवर साहब और कुंवरानी जी को सुरक्षित रखें, उसने हाथ जोड़ते हुए प्राथना की।
फिर अपने आप को संभालते हुए बोली, आप मुझे 30 मिनट का समय दो, में कुंवर विजय को तैयार करके और उनका सामान लेकर नीचे आती हूं, आप लोग गाड़ी तैयार रखो।
कुछ देर बाद भानसिंह, सांवरी, धीरू और छोटे कुंवर को लेकर गुड़गांव की तरफ गाड़ी दौड़ा रहा था।
गाड़ी के अंदर बैठा हर इंसान कुंवर साहब और कुंवरानी की कुशल की प्रार्थना मन ही मन कर रहा था।
करीब 4 घंटे बाद वो लोग गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल में पहुंच गए, जहां उनका इंतजार एक हृदय विदारक समाचार कर रहा था।
ड्यूटी पर तैनात इंस्पेक्टर ने बताया कि ड्राइवर और कुंवरानी जी ने हॉस्पिटल पहुंचते पहुंचते ही दम तोड दिया था, कुंवर की हालत काफी नाजुक बनी हुई है पर उन्हें अभी तक कुंवरानी जी के बारे में नहीं बताया गया है।
ये खबर सुनते ही सांवरी फूट फूट कर रो पड़ी, धीरू और भानसिंह भी अपने आसुओं पे लगाम ना लगा सके।
रह रह कर कुंवरानी जी का सौम्य और वात्सल्य भरा चेहरा आंखों के सामने आ जाता।
सांवरी को तो लगा उसने अपनी सगी बड़ी बहन को ही खो दिया।
इस बीच डॉक्टर ने आ कर बताया कि कुंवर साहब को होश आ गया है और वो बार बार सांवरी का नाम लेकर बुला रहे हैं।
पर सांवरी में हिम्मत नही थी की वो कुंवर साहब से मिल सके, बहुत समझाने पर उसने जी कड़ा करके अपने आसुओं को दबाया और छोटे कुंवर, धीरू और भानसिंह के साथ कुंवर साहब से मिलने चल दी।
कुंवर साहब बेड पर सर से पांव तक पट्टियों में लिपटे पड़े थे।
सांवरी, धीरू, भान सिंह और कुंवर विजय को देख कर उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई जो आते ही दर्द की लहर में दब गई।
इशारे से कुंवर विजय और सांवरी को पास बुलाया। सोते हुए कुंवर के सर पर हल्के से हाथ फेर कर वो बाकी लोगो से मुखातिब हुए।
बेड के पास खड़ी नर्स ने उन्हें बोलने से रोकना चाहा, पर उन्होंने हाथ के इशारे से उसे मना कर दिया।
धीमी आवाज में बोलना शुरू किया,भानसिंह, वकील साहब  आ गए या नहीं।
जी हुकुम, आने ही वाले होंगे, भामसिंह बोला।
मेरी बात ध्यान से सुनो तुम लोग, मुझे नही लगता मैं बच पाऊंगा, मुझे ये भी पता है की शायद लाजवंती भी नही बची होगी, इसलिए मैं तुम लोगों को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप रहा हूं।
मेरे जाने के बाद, सांवरी तुम, छोटे कुंवर को अपनी औलाद की तरह पालोगी, वैसे भी वो है तो तुम्हारा ही बेटा।
हुकुम, आपको कुछ नही होगा, आप अभी आराम करो, तीनो एक साथ बोल पड़े।
मुझे कह लेने दो, मैं जानता हूं मेरे पास वक्त कम है, कुंवर साहब उनकी बात काट कर बोले, इसलिए मुझे बोलने दो, बीच में मत रोको......
मैं कुंवर विजय के नाम पर एक ट्रस्ट बना रहा हूं, जिसमे हमारी सारी संपत्ति होगी, कुंवर विजय को 21 वर्ष का होने के बाद ये सारी संपत्ति कानूनी तौर पर मिल जाएगी, तब तक आप तीनो को उनका ख्याल रखना होगा और साथ ही हमारी सारी कंपनी का भी। आप तीनो इस ट्रस्ट के ट्रस्टी होंगे और हमारे वकील साहब आपके कानूनी सलाहकार। आप चारों लोगो की सहमति से ही आप आज से हमारा सारा कारोबार संभालेंगे, जब तक कुंवर विजय इस काबिल नही हो जाते।
मैंने आप तीनो को बहुत करीब से देखा है, इसलिए मुझे विश्वास है कि आप लोग मेरे विश्वास पर खरे उतरोगे।
मुझे वचन दो, कि आप कुंवर विजय को कभी उसके मां बाप की कमी महसूस नहीं होने दोगे, कह कर कुंवर साहब ने अपना हाथ कांपते हुए आगे बढ़ाया..

जी हुकुम, हम वचन देते हैं, कि हम आप की हर इच्छा का पालन करेंगे, और आपके नमक का हक अदा करेंगे, तीनो ने आगे बढ़ कर कुंवर साहब का हाथ थाम लिया और एक साथ कहा।
ठीक उसी समय वकील साहब ने कुंवर साहब के कमरे में प्रवेश किया।
वकील साहब आप कागजात तैयार करवा कर लाए हो ना, कुंवर साहब ने वकील साहब से पूछा।
जी हुकुम, इसी वजह से देर लगी आने में, जैसा आप ने फोन पर बताया था कागजात तैयार हैं, वकील साहब बोले।
लाइए जल्दी से उनपर मेरे साइन करवा लीजिए और इन सबके भी... कुंवर साहब बोले।
पर हुकुम, इतनी क्या जल्दी...…. वकील साहब बोले।
अरे आप साइन करवा लीजिए ना..... कुंवर साहब जोर देकर बोले।
जो हुकुम, कुंवर साब, वकील साहब ने जल्दी से बैग से पेपर निकाले और बोले भानसिंह जी, बाहर से इंस्पेक्टर और बड़े डॉक्टर साहब को भी बुला लाओ, क्योंकि हमको दो गवाह भी चाहिए होंगे।
भानसिंह तुरंत डॉक्टर और इंस्पेक्टर को बुलाने चला गया।
अगले कुछ मिनटों में ट्रस्ट के कागजात सभी ने साइन कर दिए और वकील साहब ने इस सारे घटना क्रम को अपने मोबाइल कैमरा में रिकॉर्ड भी कर लिया।
सब कुछ होने के बाद कुंवर साहब ने एक चैन की लाबी सांस भरी और सबसे आराम करने की इजाजत मांगी, और सब लोग उनके कमरे से बाहर आ गए।
कहते हैं मौत आने से पहले इंसान को मौत के फरिश्ते नजर आने लगते हैं।
शायद कुंवर साहब को भी अपना अंत नजर आ गया था।
उसी रात वो भी अपनी लाजवंती के पास स्वर्ग सिधार गए।

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – ३०.०१.२०२२ 🙏🏻🌹💐👍

# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु


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2 Comments

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 08:37 PM

Well✍️

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Marium

31-Jan-2022 12:29 AM

Kafi achchi kahani likhi aapne, good story

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