सांवरी–१५

सांवरी १५


गतांक से आगे

दो दिन बाद, कुंवर साहब, कुंवरानी और ड्राइवर के पार्थिव शरीर जयपुर लाए गए। उनके अंतिम दर्शनों के लिए हजारों लोग हवेली में सुबह से ही लाइन लगा कर उनको अपनी श्रद्धांजलि दे रहे थे।
हवेली से जुड़ा और कुंवर साहब को जानने वाला हर एक इंसान उन्हें याद कर के अपनी आंखें नम कर रहा था।
बहुत से राजनेता, उद्योगपति और रजवाड़ों से भी बहुत सारे लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे थे।
कुछ दिन पहले जहां खुशियां बिखरी पड़ी थी वहीं आज दुख भरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
इस सब से बेखबर कुंवर विजय आराम से खेल रहा था।
सांवरी, धीरू, भानसिंह की आंखें बार बार नम हो रही थी।
शाम को कुंवर जी और कुंवरानी जी के पार्थिव शरीर को पंचतत्व में विलीन करके शोकसंतप्त लोग वापस अपने अपने घरों को चल दिए।
जीवन का एक अध्याय खतम हुआ और दूसरा शुरू हो गया।
सांवरी, धीरू और भानसिंह के कंधों पर एक नई और बड़ी जिम्मेवारी आ चुकी थी। जिसे निभाने के लिए उन तीनो ने कमर कस ली थी। वकील साहब की सलाह से और खुद की मेहनत से शीघ्र ही धीरू और भानसिंह ने कुंवर साहब के व्यापार को बखूबी संभाल लिया।
इधर सांवरी का अधिक ध्यान कुंवर विजय के लालन पालन पर था, वो नही चाहती थी की स्वर्ग में बैठे कुंवर साहब और कुंवरानी को किसी भी तरह की शिकायत करने का मौका मिले।
बातों बातों में एक दिन धीरू ने उस से पूछा की उनके अकाउंट में जो 25 लाख रुपए पड़े हैं उनका क्या करना है। जवाब में सांवरी मुस्कुरा दी और बोली तुम अपने काम में ध्यान दो मैने कुछ सोचा है।
ठीक है जैसा तुम चाहो, कह कर धीरू चला गया।


उपसंहार


5 साल बाद

दिल्ली का विज्ञान भवन

करीब शाम को सात बजे, उद्घोषक ने अगला नाम पुकारा
साथियों अगली महिला को उनके राज्य में सखी के नाम से जाना जाता है।
खुद बिना किसी स्कूल कॉलेज में कभी जाए, उन्होंने जो दूसरी महिलाओं के लिए किया है वो काबिले तारीफ है।
पिछले 4 साल में करीब 5000 गरीब, बेसहारा और खानाबदोश लड़कियों को पढ़ने लिखने को ना केवल उत्साहित किया बल्कि इनकी संस्था ने उनका सारा खर्च भी खुद ही वहन किया है।
यही नहीं बंजारा परिवारों की महिलाओं और लड़कियों को हस्तशिल्प की शिक्षा दिलवा जहां उन्होंने इनके सामाजिक स्तर को उठाया वहीं उनके पारंपरिक नृत्य कला को भी उभारा और देश और विदेश के मंचों पर उन्हें उनकी कला का सम्मान भी दिलवाया।
इनकी संस्था इन सभी गरीब, मजबूर और लाचार महिलाओं और लड़कियों के लिए जो कर रही है उसके लिए इनका जितना भी सम्मान किया जाए वो कम ही होगा।
मैं मंच पर बुलाना चाहूंगी श्रीमती सांवरी देवी को, वो आएं और आदरणीय मंत्री जी के हाथों से ये विशेष सम्मान ग्रहण करें।
सबसे अगली पंक्ति में बैठी सांवरी, आदर से सर झुका कर उठी और मंच की तरफ बढ़ चली।
सामने बैठे भान सिंह, वकील साहब, धीरू, कुंवर विजय, भंवरलाल, कजरी, धीरू के माता पिता और उनके कबीले के सरदार भाव विभोर होकर तालियां बजा रहे थे।
उनके साथ साथ हाल में बैठा हरेक इंसान भी तालियों की गड़गड़ाहट से सांवरी का अभिवादन कर रहा था।

आज सांवरी पर पूरे देश को नाज था।

समाप्त

आभार – नवीन पहल – ३१.०१.२०२२ 🙏🏻🌹💐👍
नोट: दोस्तों यह एक काल्पनिक कथा है, जिसके पात्र मात्र मेरी खुद की सोच का नतीजा हैं, इस कथानक का किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है।

# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु

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2 Comments

🤫

27-Mar-2022 10:36 AM

Kahani Kahani acchi thi padh kar Achcha Laga sanvari ki yah Dastan Man Ko Chhu gai is Khubsurat Kahani ke liye बहुत-बहुत dhanyvad Shandar lekhan💐💐💐💐💐💐💐💐

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वैभव

27-Mar-2022 10:31 AM

Good story👌👌👌👌👌👌👍👍👍

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