मेरी अना
भाग 1
अनिकेत ने माता पिता के कहने पर ग्याहरवीं कक्षा में आगे की पढ़ाई के लिए विज्ञान का विषय चुना था। हर माता पिता की तरह उन्हें भी लगता था कि संतान का सिर्फ डॉक्टर या इंजीनियर बनना ही सफलता की निशानी है। लेकिन अनिकेत का मन कहीं और था। वो अक्सर रात को अकेले में कविताएं लिखा करता था। मन का गुबार निकालने का यही एक मात्र तरीका था उसके पास। अपने हर एहसास को समय मिलते ही डायरी में लिख डालता था। उसे नहीं पता था भविष्य में वो क्या बनेगा, लेकिन इतना तो पता था कि चाहे कितनी भी मेहनत कर ले वो डॉक्टर या इंजीनियर तो नहीं बन पायेगा।
विज्ञान उसके सिर के ऊपर से गुज़रता था। फिजिक्स और केमिस्ट्री के सूत्र उसे सूखे रेगिस्तान से लगते थे, बायोलॉजी में बस कुछ मरुस्थल का एहसास होता था। क्लास में सबसे पीछे बैठता था ताकि शिक्षक की सवालिया नज़रों से खुद को बचा सके। घर में भी चुप्पी का आवरण ओढ़ लिया था ताकि माता पिता की उम्मीद लगाती नज़रों से खुद को छिपा सके।
हर जगह अनिकेत को बंधन सा महसूस होता था। अपने कमरे में आते ही जब स्कूल की किताबों को छोड़ वो डायरी में लिखना शुरू करता था, बस उसी वक़्त आज़ादी का अनुभव करता था। अक्सर नए-नए किरदार गढ़ता रहता था कहानियों में, कविताओं में आसमान पर जाने की बात करता था। ख़्वाब देखता था वो रात भर और दिन में हक़ीकत के गलियारों में भटकता था।
ऐसा कोई खास मित्र नहीं था अनिकेत का सिर्फ उसके सिवा। वो आर्ट्स के सेक्शन में थी। 2 साल पहले ही स्कूल में उसका दाखिला हुआ था। उसका नाम अनाहिता था। अनाहिता देखने में साधारण थी, वैसे अनिकेत भी देखने में साधारण ही था। वो उम्र ही कुछ ऐसी थी जहाँ चेहरे की सुंदरता कुछ मायने नहीं रखती थी या यह कहें कि अनिकेत का ध्यान उस ओर कभी गया ही नहीं था।
अनाहिता जहाँ बेबाक़ थी, बात-बात में बिदक जाती थी वहीँ अनिकेत शांत स्वभाव का था। उसे अपने जज़्बात छुपाना आता था। दोनों के स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर होना ही उनमें दोस्ती का प्रमुख कारण बना। अनिकेत अक्सर स्कूल में आयोजित लेखन प्रतियोगिताओं में प्रथम आता था। उसकी लिखी कविताओं से अनाहिता बेहद प्रभावित थी।
जब उसने ग्याहरवीं में विज्ञान को चुना था तो अनाहिता बेहद नाराज़ हुई थी उस पर….. तुम यह गलत कर रहे हो अनिकेत। तुम समझते क्यों नहीं तुम डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए नहीं पैदा हुए हो। मैं भविष्य में तुम्हें एक बेहतर लेखक के रूप में देखती हूँ। कई बार मेरी कल्पना में मैंने किताबों के मुखपृष्ठ पर तुम्हारा नाम देखा है….लेखक-अनिकेत शर्मा।
अनिकेत हँसने लगा अनाहिता की बात सुनकर….मैंने कहा था मम्मी पापा से कि मैं आर्ट्स लेना चाहता हूँ और भविष्य में लेखक बनना चाहता हूँ।
उन्होंने गुस्से में कहा….. कागज़ पर चंद पंक्तियाँ लिखकर मन को तो संतुष्टि मिल सकती है लेकिन पेट नहीं भर सकता। हो सकता है तुझे लिखने से वाहवाही मिल जाए लेकिन उस वाहवाही का फायदा ही क्या जिससे दो वक्त की रोटी ना कमा सके। कितने लेखकों को देखा है सड़कों पर गरीबों की तरह कंधे पर थैला लटकाए घूमते हुए, पब्लिशिंग हाउस के चक्कर काटते हुए। मैं नहीं चाहता मेरा बेटा गरीबों वाला जीवन जिये।
हम तुझे लेखक बनकर तेरा जीवन बर्बाद नहीं करने देंगे। वो तारीफें किस काम की जो पेट ना भर सकें। ये लेखक बनने के ख्वाब छोड़ दे और विज्ञान की पढ़ाई में ध्यान लगा।
अनिकेत की बातें सुनने के बाद अनाहिता के पास कहने को कुछ खास बचा नहीं था। उसने बस इतना ही कहा….. सपने सिर्फ अपनी आँखों से देखे जा सकते हैं, किसी और की आँखों से नहीं और उन्हें पूरा करने के लिए कभी-कभी लड़ना भी पड़ता है खुद से, परिवार से और समाज से।
इतनी कम उम्र में अनाहिता को पता था उसे भविष्य में क्या करना है, वो एयरहोस्टेस बनना चाहती थी। अनिकेत के पास सपना तो था लेकिन उसे पूरा करने का जुनून नहीं था। छोटी सी उम्र में उसके मासूम कंधे पहले ही माता पिता की उम्मीदों के बोझ से झुक चुके थे।
अनिकेत जितनी मेहनत कर सकता था, उसने की लेकिन फिर भी वो ग्याहरवीं कक्षा में फेल हो गया।अनिकेत के पिता श्री अविनाश शर्मा और माँ कविता शर्मा पर तो मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा हो। उनके लिए अनिकेत फ़ेल नहीं हुआ था वो फ़ेल हो गए थे जिंदगी की इस दौड़ में।अनिकेत के आत्मविश्वास की धज्जियाँ उड़ चुकी थी। विज्ञान पढ़ना तो दूर उसमें स्कूल जाने की भी हिम्मत नहीं थी।
अनाहिता को ग्याहरवीं कक्षा में अच्छे अंक मिले थे, अब वो बारहवीं में आ गयी थी। अनिकेत के फ़ेल होने की खबर उसे लग चुकी थी लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था इन हालात में उसे सांत्वना कैसे दे? पर जब काफी दिनों तक अनिकेत स्कूल में नहीं दिखा तो एक वो शाम वो अनिकेत के घर चली गयी उससे मिलने। किस्मत की बात थी कि उस दिन अनिकेत के मम्मी पापा घर पर नहीं थे, वो अकेला था।
अचानक से अनाहिता को सामने देखकर वो थोड़ा हैरान हो गया था। उसने दरवाज़े पर ही बता दिया था कि उसके मम्मी पापा घर पर नहीं है।
अनाहिता ने बड़ी बेबाक़ी से जवाब दिया…..मैं तुमसे मिलने आयी हूँ, तुम्हारे मम्मी पापा से नहीं। अंदर आऊँ या फिर दरवाज़े से लौट जाऊँ?
अनिकेत की मानसिक हालत ऐसी थी कि वो किसी से मिलना नहीं चाहता था, उसे किसी की सहानुभूति की चाह नहीं थी। वो बस अकेला अपने कमरे में पड़ा रहना चाहता था। लेकिन अनाहिता को ना करना भी उसके बस में कहाँ था?
वो अंदर आकर सोफे पर बैठ गयी थी और अनिकेत नज़रें चुराता हुआ इधर-उधर देख रहा था। कुछ देर तक दोनों तरफ ख़ामोशी छायी रही। आखिरकार अनाहिता ने ख़ामोशी की दीवार तोड़ी….. कब तक आँसु बहाने का इरादा है अपनी असफलता पर? आगे के बारे में क्या सोचा है?
पता नहीं, पापा चाहते हैं मैं एक बार फिर से मेहनत करूँ, वो अच्छी जग़ह से कोचिंग दिलवाने के लिए भी तैयार हैं?
तुम क्या चाहते हो अनिकेत?
मुझमें हिम्मत नहीं है फिर से विज्ञान पढ़ने की। किताब खोलते ही उल्टी करने का मन करता है। डॉक्टर बनने का जिगरा मुझमें नहीं है। मैं चीर फाड़, खून बर्दाश्त नहीं कर सकता।
समझ नहीं आ रहा क्या करूँ, मैं बार-बार फ़ेल नहीं होना चाहता।
मेरी मानो तो आर्ट्स में दाखिला ले लो और स्कूल जाना शुरू कर दो....
पापा नहीं मानेंगे अनाहिता....
अगर तुम मान गए अनिकेत तो सब मान जाएंगे। कभी-कभी अपने लिए खुद आवाज़ उठानी पड़ती है। दूसरों के बताए रास्ते पर चलकर असफ़ल होने से अच्छा है खुद के चुने रास्ते पर चलकर असफ़ल हो जाओ। कम से कम इतना सुकून तो रहेगा मन में कि तुम अपने चुने रास्ते पर चले थे।
अनाहिता की बातें मेरे मन पर असर करतीं जा रही थी। मन ही मन सोच रहा था वो लड़की होकर इतनी मज़बूत, इतनी समझदार कैसे थी और मैं लड़का होकर भावनात्मक तौर पर इतना कमज़ोर था।
उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा…..मैं लड़की हूँ और लड़कियों का जीवन आसान नहीं होता। लड़की हूँ इसलिए साहसी हूँ।
मुझे लगा था वो मुझे सांत्वना देने आयी होगी लेकिन नहीं, वो तो मुझे जिंदगी का अनमोल सबक देने आयी थी….अपने लिए खड़े होने का। जाते हुए उसने कहा…..तुम पर मेरी चाय उधार रही। उम्मीद करती हूँ तुम्हें मेरी बात समझ में आ गयी होगी।
अनिकेत अनाहिता को जाते हुए शुक्रिया भी नहीं कह पाया बस जाते हुए देखता रहा। कभी-कभी शब्द मुँह में ही जम जाते हैं और चाहकर भी जुबाँ तक आ नहीं पाते हैं।
❤सोनिया जाधव
Pratikhya Priyadarshini
16-Sep-2022 09:15 PM
Achha likha hai 💐
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Preeta
13-Feb-2022 10:36 PM
Good...
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Inayat
05-Feb-2022 04:27 PM
Intresting shuruat
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