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ग़ज़ल

एक है मुझको मुहब्बत तुमसे।

एक है तुमको अदावत मुझसे।

मस'अला जो भी हो बे–पर्दा हो
सिर्फ़ तुमको है शिकायत मुझसे।

हम तो आएंगे उसके ख्वाबों में।
जिसने चाहा है मुहब्बत मुझसे।

मेरे किरदार में बदनामी है।
तुमने सीखा क्यों शराफ़त मुझसे।

ये है दुनियां मिजाज़ वालों का।
तुम भी करते हो सियासत मुझसे।

©®दीपक झा "रुद्रा"

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

04-Feb-2022 11:52 PM

👌👌

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Swati chourasia

02-Feb-2022 04:09 PM

बहुत खूब 👌

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