मेरी अना
भाग 2
अनाहिता के जाने के बाद अनिकेत अपनी डायरी लेकर लिखने बैठ गया। वो डायरी में अनाहिता की कही हुई बातों का विश्लेषण कर रहा था। उसने ठीक ही तो कहा था….."अपने लिए खुद ही आवाज़ उठानी पड़ती है।"
अगर मैं आज चुप रह गया तो यह चुप्पी मेरा स्वाभाव बनती जायेगी और मैं नहीं चाहता था कि ऐसा हो। मैंने निर्णय ले लिया था विज्ञान छोड़ने का और आर्ट्स में दाखिला लेने का अपने स्कूल में नहीं किसी और स्कूल में।
अनिकेत ने जब अपने मम्मी पापा को यह निर्णय बताया तो बहुत हंगामा हुआ घर में, जैसा कि उम्मीद थी लेकिन इस बार वो घबराया नहीं, अपने निर्णय पर टिका रहा। अनाहिता के सारे शब्दों को ज्यों का त्यों दोहरा दिया।
पापा ने हाथ उठाना चाहा अपने वर्चस्व को सुरक्षित रखने के लिए, लेकिन मम्मी ने रोक दिया यह कहकर कि एक बार उसने हमारी बतायी हुई राह पर चलकर ठोकर खायी है, अब उसे अपनी राह पर चलकर देखने दो।
अनिकेत के पापा ने गुस्से में आकर उसका सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया। उसके आर्ट्स लेने के निर्णय से दोनों के बीच की चुप्पी की दीवार और मज़बूत हो गयी थी। घर में बातचीत का इकलौता माध्यम बस माँ ही रह गईं थी।
बड़ा कठिन होता है स्त्री के लिए पति और बेटे के बीच चुनाव करना। पति का साथ दे तो बेटे की नज़रों में उसकी ममता अपना स्थान खो देगी और अगर बेटे का साथ दे तो पति की नज़रों में वो बेटे को बिगाड़ने वाली माँ कहलायी जायेगी। कुछ ऐसी ही स्थिति अनिकेत की माँ की भी थी। लेकिन इस बार उन्होंने बेटे का साथ देने की ठानी थी।
विज्ञान का बोझ अब अनिकेत के सिर से उतर चुका था। अक्सर शाम को पार्क में सैर करते वक़्त अनाहिता से मुलाकात हो जाया करती थी। उसे ख़ुशी थी कि अनिकेत ने अपने लिए आवाज़ उठायी, उसकी बातों का कुछ तो असर हुआ अनिकेत पर।
दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी। अनाहिता की बातें अब डायरी को चुपके से रात में बतायी जा रही थीं। एक शाम पार्क में सैर करते हुए अनिकेत ने अनाहिता से कहा…..तुम्हारा नाम बेहद अनूठा है तुम्हारी तरह, इसका अर्थ क्या है?
अनाहिता का अर्थ है सुंदर….
जब अनाहिता ने सुंदर कहा तब अनिकेत का ध्यान अनायास ही उसके चेहरे, उसकी शारीरिक सरंचना पर चला गया और वो कुछ देर तक यूँ ही उसे देखता रहा। आज उसे महसूस हुआ अनाहिता साधारण तो किसी भी दृष्टि से नहीं है, उसमें कुछ तो था ख़ास जो असाधारण था जिसकी तरफ उसका ध्यान पहले कभी गया ही नहीं था।
फ़िलहाल अनिकेत के लिए उसकी दोस्ती से ज़्यादा कुछ और खूबसूरत नहीं था।
अनिकेत के इस तरह देखने से अनाहिता सकपका गयी और वो उठकर घर जाने लगी।
तभी अनिकेत ने कहा……. शुक्रिया अना। तुम्हारे कारण मेरे भीतर का अवसाद छंटने लगा है। मैं खुलकर मुस्कुराने लगा हूँ। विज्ञान और पापा की उम्मीदों के बोझ से मेरा दम घुटने लगा था। तुम्हारी दी गई हिम्मत ने मुझे एक नया जीवन दिया है। मैं अब खुद से उम्मीदें करने लगा हूँ।
बहुत ख़ुशी हुई अनिकेत यह सब सुनकर लेकिन तुम्हें नहीं लगता तुमने देर कर दी शुक्रिया कहने में।
हाँ , देर तो हो चुकी है, क्या कहूँ तुम्हारा दोस्त कुछ ऐसा ही है। मैं और देरी शायद एक दूसरे के पर्याय हैं। वैसे उम्मीद है कि इस बार अच्छे अंकों से ग्याहरवीं में पास हो जाऊँगा।
ये तो अच्छी बात है अनिकेत। मैंने भी तुम्हें एक बात नहीं बतायी बारहवीं की परीक्षा के परिणाम आने के बाद मैं देहरादून छोड़कर चली जाऊँगी। मेरे पापा का तबादला मुम्बई हो गया है।
अनिकेत स्तब्ध था अनाहिता की जाने की बात सुनकर। वही तो उसकी एकलौती दोस्त थी जिससे वो अपने मन की बात किया करता था। वही तो उसकी मार्गदर्शक थी। अनाहिता का स्प्ष्ट नज़रिया उसकी हर उलझन को सुलझा दिया करता था। वो चली गयी तो कौन खोलेगा उसकी मन की गाँठों को?
अनिकेत को समझ नहीं आ रहा था उसे क्या कहे, दिल में कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। कभी-कभी अपने ही जज्बातों को समझना मुश्किल हो जाता है।
उसने बस इतना ही कहा….… शहरों में फासले भले ही रहे, दिलों में फासले कभी नहीं आने चाहिए। तुम हमेशा मेरी सबसे अच्छी दोस्त रहोगी। हम फोन पर बात करते रहेंगे।
अनाहिता हल्का सा मुस्करायी और घर जाने लगी। उसे शायद दोस्ती से कुछ ज़्यादा की उम्मीद थी। उसे अच्छा लगा था अनिकेत का उसे अना कहकर बुलाना। "अना" सुनते ही अनाहिता को दिल में एक अलग तरह का अपनापन, लगाव सा महसूस हुआ था अनिकेत से। पता नहीं क्या था, लेकिन जो भी था, उसका स्वाद मीठा था।
देखते-देखते एक साल गुज़र गया। अनिकेत अपने स्कूल में लेखन प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगा था और उसकी रचनाएं पुरस्कृत भी हो रहीं थी। उसके शांत स्वभाव, सुंदर लेखन के कारण उसकी गिनती अच्छे छात्रों में होने लगी थी। इस बार ग्यारहवीं कक्षा की परीक्षा में उसे 75% अंक मिले थे जिससे अनिकेत के साथ-साथ उसकी मम्मी भी काफी खुश थी।
पापा खुश नहीं थे लेकिन संतुष्ट थे यह देखकर कि कम से कम वो पास तो हो गया था और वो भी अच्छे नम्बरों से। उनके मन में अभी भी एक कसक तो थी कि काश! अनिकेत ने विज्ञान की पढ़ाई को गम्भीरता से लिया होता। खैर जो भी हो अनिकेत अब खुश था।
अनाहिता को भी बारहवीं में 85% अंक मिले थे। मुम्बई जाने से पहले एक शाम वो और अनिकेत आखिरी बार घर के पास ही बने पार्क में सैर करते वक़्त मिले थे। दोनों ने परीक्षा में आए अच्छे नतीजों के लिए एक दूसरे को बधाई दी।
अनिकेत कल शाम 5 बजे की ट्रेन से हम मुम्बई के लिए निकल जाएंगे।
तुम इतनी जल्दी चली जाओगी सोचा नहीं था। एक बार फिर से शुक्रिया अना मेरी जिंदगी को नई दिशा देने के लिए। जब भी शाम को इस पार्क में सैर करने आऊँगा, तब तुम्हारी कमी खलेगी।
मैं तुम्हें फोन करता रहूँगा....
नहीं तुम मुझे फोन मत करना, मुझे खत लिखा करना। हर हफ़्ते मुझे एक खत लिखना और तुम्हारे खतों के जवाब में मैं भी तुम्हें खत लिखा करुँगी।
आजकल के सोशल मीडिया के ज़माने में ख़त कौन लिखता है अना?
तुम्हें लेखन में रूचि है ना, इसलिए ख़त लिखने के लिए कह रही हूँ। हमारी दोस्ती को मैं खतों में सहेज कर रखना चाहती हूँ। जब कुछ बहुत ज़रूरी होगा तभी हम एक दूसरे को फ़ोन करेंगे अनिकेत।
तुम्हारी बातें मुझे उलझा रहीं हैं अना।
उलझते-उलझते क्या पता एक दिन सब कुछ सुलझ जाए अनिकेत।
क्या मतलब?
कुछ नहीं, देखो तुम्हारे लिए एक उपहार लायीं हूँ।
घर जाकर देखना, अभी नहीं।
माफ़ करना अना, मैं तुम्हारे लिए कोई उपहार नहीं लेकर आ पाया। पता नहीं इन सब मामलों में मैं इतना कच्चा क्यों हूँ?
अनाहिता ने मुस्कुराते हुए कहा….तुम जैसे हो अच्छे हो। मुझे याद करोगे?
इस अप्रत्याशित सवाल का क्या जवाब देता? बस इतना ही कह पाया…. हाँ एक दोस्त होने के नाते तुम्हारी याद तो आयेगी ही।
अपना ख्याल रखना अना। मैं तुम्हें खत लिखता रहूँगा।
अना चली गयी और मैं वहीँ बेंच पर बैठा कुछ देर तक अना के बारे में सोचता रहा। अनाहिता से कब वो अना बन गयी, समझ ही नहीं आया। अना शब्द में कितना प्यार, अपनापन महसूस होता है।
मैं तुम्हारे जज़्बातों को समझता हूँ अना, पर अभी फासले बहुत हैं, तुम तक पहुँचने के लिए पहले मुझे अपनी मंजिल पर पहुंचना होगा। फ़िलहाल के लिए हम दोस्त ही बेहतर हैं। ना मैं तुम्हें भटकाना चाहता हूँ ना ही खुद को।
अनिकेत ने घर पहुँचते ही अना का दिया हुआ उपहार खोलकर देखा तो एक डायरी थी जिसके पहले पृष्ठ पर लिखा था…..
कभी-कभी अपने लिए खुद आवाज़ उठानी पड़ती है। दूसरों के बताए रास्ते पर चलकर असफ़ल होने से अच्छा है खुद के चुने रास्ते पर चलकर असफ़ल होना। कम से कम इतना सुकून तो रहेगा मन में कि तुम अपने चुने रास्ते पर चल कर असफ़ल हुए थे।
भविष्य में तुम्हें एक सफ़ल लेखक के रूप में देखती हूँ।
तुम्हारी दोस्त अना…..
अना के इन शब्दों ने अनिकेत को बेहद भावुक कर दिया था। उसके इन शब्दों ने किसी टॉनिक की तरह काम किया था। अनिकेत के अंदर एक नयी ऊर्जा भर दी थी अपने सपनों को पूरा करने की। रास्ता बहुत लंबा था और मंजिल भी बेहद दूर थी। कुछ पास था तो एहसास सिर्फ अना की दोस्ती का।
❤सोनिया जाधव
वैभव
09-Feb-2022 07:13 PM
अच्छा लिखती आप
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Seema Priyadarshini sahay
07-Feb-2022 04:12 PM
बहुत ही अच्छी कहानी है मैम
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Inayat
05-Feb-2022 04:29 PM
Kafi achchi kahani likhi hai aapne
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