Sonia Jadhav

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मेरी अना- भाग 5

भाग 5

अना अनिकेत को कभी हारते हुए, कभी अकेला नहीं देख सकती थी। पता नहीं कब और कैसे वो अनिकेत से इतना जुड़ गई, खुद उसे भी पता नहीं चला। अपने जज़्बातों को ख़त में लिखना जितना आसान था, उन्हें जुबाँ पर लाना उतना ही कठिन था।

उसकी अपनी जिंदगी में भी कम परेशानियां नहीं थी लेकिन उसका ज़िक्र उसने कभी भी अनिकेत से नहीं किया था। वो नहीं चाहती थी कि अनिकेत कभी उसका कमज़ोर पक्ष देखे। अनिकेत की नज़रों में वो मज़बूत इरादों वाली अना थी और वो वैसे ही बना रहना चाहती थी। वैसे भी अनिकेत की जिंदगी में अपने दुख क्या कम थे, जो वो उसे अपनी जिंदगी की उलझनों में उलझाकर और परेशान करती।

अना का सपना एयरहोस्टेस बनने का था लेकिन उसके पापा चाहते थे कि वो बी.एड करके किसी स्कूल में टीचर लग जाए। उन्हें यह डर था कि एयरहोस्टेस बन गई तो उसके बराबर का लड़का उनकी जाति में कहाँ मिलेगा और वैसे भी इस नौकरी में दिन और रात का कुछ पता नहीं रहता, कभी भी ड्यूटी पर जाना पड़ता है। ऐसे में शादी के बाद घर कैसे संभालेगी, कौन करेगा इससे शादी?

पहाड़ी लोग वैसे भी इतने खुले दिमाग के नहीं होते हैं।
जबकि अना की मम्मी हमेशा उसका पक्ष लेतीं थी। लेकिन माँ होने से पहले वो एक पत्नी थीं और भारतीय घरों में अक्सर घर के मुखिया पुरुष ही होते हैं और इस कारण उन्हीं की बात मान्य होती हैं। वैसे अना की माँ जितना सम्भव हो, उतना उसका साथ देतीं थी। कई बार अना के एयरहोस्टेस बनने के सपने को लेकर उसके  मम्मी और पापा के बीच तगड़ी बहस भी हो चुकी थी।

अना अभी अपनी परेशानियां बताकर अनिकेत को परेशान नहीं करना चाहती थी, उसकी जिंदगी में पहले से ही काफी परेशानियां थीं। अनिकेत का एक ख़त ही बहुत था अना के मन को सुकून पहुँचाने के लिए।

कुछ दिनों बाद अनिकेत को अना का ख़त मिला। अना नाराज़ थी उससे। अच्छा लगा था अनिकेत को अना का यूँ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करना। उसकी नाराज़गी, उसके दिल में अनिकेत के लिए फ़िक्र और अना का उसके खतों के लिए इंतज़ार, अना को अनिकेत के और करीब ले आया था। दोस्ती से कुछ ज़्यादा पनपने लगा था भीतर दोनों के मन में।

अना के इन शब्दों ने अनिकेत के अंदर फिर से एक नई ऊर्जा भर दी थी। वो सिर्फ उसकी दोस्त ही नहीं थी, उसका हौसला थी, उसकी प्रेरणा थी। इतना तो अनिकेत भी खुद को नहीं समझता था जितना अना उसे समझने लगी थी।

"तुम्हें पता है तुममें खास बात क्या है?
अगर एक बार तुम अपनी जिद पर आ जाओ तो तुम उसे पूरा करके ही रहते हो। अपने सपनों को अपनी ज़िद बना लो। कोई कुछ भी कहे तुम अपने दिल की आवाज़ को कभी अनसुना मत करना। एक बार कदम बढ़ गए मंज़िल की ओर तो रास्ते खुद ब् खुद मिल जाएंगे, राह में गिर भी गए ग़र, तो मैं रहूँगी ना सदा तुम्हारे पास तुम्हें सँभालने के लिए।"

इन पंक्तियों को अनिकेत ने अनगिनत बार पढ़ा था। उसके मन में अना के लिए असीम स्नेह उमड़ रहा था। आज पहली बार ख़त पढ़ते हुए अनिकेत के मुँह से निकला था…… मेरी अना और उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। जो स्नेह और भरोसा उसे अपने पिता से मिलना चाहिए था, वो उसे अना ने दिया था। कभी-कभी जो भावनाएं शब्दों में व्यक्त नहीं हो पातीं, उन्हें या तो आँसु व्यक्त कर जाते हैं या फिर होठों पर मुस्कुराहट। अनिकेत के लिए अना उसकी प्रेरणा थी, उसका साहस।

समय अपनी गति से चल रहा था और उसके साथ सबकी जिंदगियां भी। अनिकेत अपनी पढ़ाई में व्यस्त था। रात को 12 बजे तक जागकर पढ़ना और सुबह 5 से 6 अभ्यास करना, फिर स्कूल चले जाना। यही उसकी दिनचर्या थी। घर में पापा कुछ खास बात करते नहीं थे, बस बातचीत की जो भी औपचारिकता होती थी वो पढ़ाई को लेकर ही होती थी। माँ ही थी जो सेतु का काम करती थी पिता और बेटे के बीच, मज़बूती से उसने दोनों को एक डोर से थाम रखा था।

अक्सर अनिकेत के मन में यह प्रश्न उठता था कि सबके पिता उसके पिता जैसे ही संतान से विरक्त होते हैं या फ़िर कुछ भिन्न। दरअसल शायद यह पिताओं का दोष नहीं है, उन्हें बचपन से ही सिखाया गया है सख्त होना, अपने प्रेम को भीतर समेटकर रखना। क्या पता जो शुष्कता अनिकेत को अपने पिता से मिल रही है, वही रूखापन अनिकेत के पिता को भी अपने पिता से मिला हो और यही पीढ़ी दर पीढ़ी सब पुरुषों में रक्त की तरह बह रहा हो।

अनिकेत ने महिनों से अना कोई ख़त नहीं लिखा था। हाँ अना का बीच में एक ख़त आया ज़रूर था सिर्फ यह बताने के लिए कि कुछ दिन खतों को विराम देते हैं। वो नहीं चाहती कि वो अनिकेत के जीवन में भटकाव की वजह बने। उसकी बोर्ड की परीक्षा खत्म होने के बाद वो उसे ख़त ज़रूर लिखेगी। अना ने अपने बारे में ख़त में कुछ भी नहीं लिखा था।

अनिकेत को कुछ पल के लिए अच्छा नहीं लगा अना का खतों को विराम देना। लेकिन फ़िर उसे लगा शायद अभी के लिए यही ठीक है। भावनाएं अपनी जगह हैं और वास्तविकता अपनी जगह। अक्सर हकीकत भावनाओं पर भारी पड़ जाती है।

वो कई बारी सोचता था अगर उसने पहले हिम्मत दिखाई होती, माता पिता के दबाव में आकर साइंस नहीं ली होती  तो आज जिंदगी कुछ और होती। शुरुवात में ही ग्यारहवीं में आर्ट्स लेने के लिए अड़ जाता तो आज उसका एक साल बर्बाद नहीं जाता। वो भी अना की तरह कॉलेज में होता। यह बात उसको मन ही मन बेहद कचोटती थी। बहुत अजीब सा महसूस होता था अना को कॉलेज में और खुद को स्कूल जाते हुए देखकर। अगर वो कॉलेज में होता तो शायद अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त कर पाता। जिंदगी में हम जो चाहते हैं वो होता बहुत कम है, वही होता है जो ईश्वर को मंजूर होता है।

माता पिता की जिद के कारण उसके स्कूल का एक साल खराब हो गया। उसकी उम्र के सभी बच्चे कॉलेज जा रहे हैं और वो स्कूल का बैग लटकाए रोज स्कूल जाता है। अब इन सब बातों को सोचने का कोई फायदा तो नहीं था लेकिन कभी-कभी दिमाग में यह बातें आ ही जाती थी।


खैर परीक्षा की तारीख आ चुकी थी। मार्च की पहली तारीख से परीक्षा शुरू थी। अनिकेत को मन ही मन गुस्सा भी आ रहा था यह सोचकर कि अना ने उसे एक फोन, चलो फोन करना तो दूर की बात है, एक ख़त लिखना तक ज़रूरी नहीं समझा उसे ऑल द बेस्ट कहने के लिए। यह कैसी दोस्ती थी अना की, अनिकेत की समझ से बाहर थी।

27 फरवरी की शाम को अनिकेत पढ़ रहा था। तभी दरवाज़े पर घँटी बजी तो देखा कोई पार्सल आया था छोटा सा अमेज़ॉन से, पार्सल पर उसी का नाम लिखा था और भेजने वाले की जग़ह पर अना का नाम। अना का नाम देखकर मन ख़ुशी से उछलने लगा था। कमरे के अंदर जाकर जैसे ही पार्सल खोला तो उसमें एक बहुत महंगा सा पेन था पार्कर का और एक छोटा सा नोट था…..अपने सारे पेपर तुम इसी पेन से लिखना। मुझे तुम्हारी मेहनत पर पूरा भरोसा है। परीक्षा और उसके परिणाम को लेकर ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है, सब अच्छा ही होगा। परीक्षा से पहले बेचैनी होना सामान्य है, परेशान मत होना तुम। बेस्ट ऑफ़ लक अनिकेत।

तुम्हारी दोस्त
अना

❤सोनिया जाधव

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2 Comments

वैभव

09-Feb-2022 07:14 PM

Bahut khoob

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Seema Priyadarshini sahay

07-Feb-2022 03:55 PM

बहुत खूबसूरत है आपका लेखन

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