*अस्तित्व*
अस्तित्व का शोध करते करते ,
पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है ।
अस्तित्व का बोध करते करते ,
जीवन भी अतीत हो जाता है ।।
दूसरे के अस्तित्व को देखने में ,
अपना ही अस्तित्व खो रहे हैं ।
दूसरे कै पैर में टाँग अड़ाने हेतु ,
दूसरे का असूतित्व ढो रहे हैं ।।
भूल रहे हम ईश्वर का अस्तित्व ,
अपनी पहचान हम बनाने में ।
पर सुख हो पाता नहीं सहन ,
असमर्थ अपनापन अपनाने में ।।
मानव समझता अपना अस्तित्व ,
ईश्वरीय अस्तित्व भूल रहा है ।
समझा नही अस्तित्व का महत्
फिर अस्तित्व ले झूल रहा है ।।
मानव है तू मानव को समझो ,
जब मानवता समझ में आएगा ।
तब समझोगे अस्तित्व का महत् ,
ईश्वरीय अस्तित्व भी तू पाएगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना ।