भाग 7
अनिकेत के ख़त को सीने से लगाए ना जाने कब अना की आँख लग गयी, उसे पता ही नहीं चला।
नींद में उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसके चेहरे पर किसी ने गुस्से से ठंडा पानी फैंका हो। यह कोई सपना नहीं था, हकीकत थी। उसके पापा ने ही गुस्से में उसके चेहरे पर ठंडा पानी फैंका था।
उसके पापा की आँखें क्रोध की अग्नि से धधक रहीं थी। उनके हाथ में अनिकेत का खत था। माँ भी साथ ही खड़ीं थी नज़रे झुकाए जैसे चाह रहीं हो कब धरती फटे और कब वो उसमें समा जाएं।
अना के पापा प्रभाकर रावत ने गुस्से से अना का हाथ पकड़ा और पूछा…..यह सब क्या है? ये अनिकेत देहरादून वाले अविनाश शर्मा का लड़का है ना जो ग्याहरवीं में फेल हो गया था। कितनी थू-थू करायी थी उसने अपने माँ बाप की। उससे तंग आकर उसके बाप ने उसका दाखिला किसी सरकारी स्कूल में करवा दिया था वो भी आर्ट्स में।
ऐसे आवारा लड़के के प्यार में पड़कर अगर तू अपना जीवन बर्बाद करना चाहेगी तो मैं तुझे यह हरगिज़ नहीं करना दूँगा।
तुम माँ-बेटी ने समझ क्या रखा था मुझे कुछ पता नहीं चलेगा?
प्रभाकर रावत ने अपनी पत्नी की ओर गुस्से से देखा और कहा…..यह सब तेरी शह का नतीजा है। कभी तेरी बेटी एयरहोस्टेस बनने के ख्वाब देखती है और कभी इस आवारा लड़के के। कैसी माँ है तू, अपनी बेटी को अच्छे संस्कार तक नहीं दे पायी और ऊपर से गलत कामों में उसका साथ देकर उसे बिगाड़ रही है।
अना की माँ कविता ने दृढ़ता से कहा….अनिकेत उसका अच्छा दोस्त है, वो आवारा लड़का नहीं है। मेरी बेटी के लिए क्या गलत है और क्या सही इस बात का निर्णय लेने का अधिकार मुझे भी है। तुम्हें अगर खत के बारे में ही पूछना था तो आराम से भी पूछ सकते थे। इतने सब नाटक की जरूरत नहीं थी।
कविता की इन बातों से प्रभाकर का गुस्सा कई गुना बढ़ गया और उसने गुस्से में कविता के मुँह पर कसकर तमाचा जड़ दिया।
यह देखकर अना प्रभाकर के ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी और कहने लगी…..
अगर हिम्मत है तो मारिये मुझे भी जैसे आपने माँ को मारा है। लेकिन मारने से पहले यह सोच लीजिएगा कि मार खाने के बाद मैं चुप नहीं बैठूंगी सीधा पुलिस स्टेशन जाऊँगी आपके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने और एक बार आपके खिलाफ पुलिस केस हो गया तो आप की सरकारी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी और ऊपर से बदनामी होगी वो अलग।
अना की माँ कविता ने उसे ज़ोर से डांटा अपने पिता के साथ इस तरह बात करने के लिए और उसे माफ़ी मांगने के लिए कहा। कुछ भी हो आखिर था तो वो कविता का पति ही और उसकी एकलौती बेटी अना का पिता। यही संस्कार थे कविता के जो उसे अपनी माँ से मिले थे…..पति जैसा भी हो, होता पति ही है। एक बार शादी हो गयी तो उसे अंत तक निभाना ही है चाहे कितना ही वैचारिक मतभेद क्यों ना हो।
अना ने ना चाहते हुए भी अपने पिता से माफ़ी मांग ली सिर्फ अपनी माँ के कहने पर।
प्रभाकर का क्रोध अना के माफी मांगने पर भी शांत नहीं हुआ था। उसने अनिकेत के पिता को फोन कर दिया और कहा…..आपका बेटा पढ़ाई में ध्यान लगाने के बजाय मेरी बेटी अनाहिता को खत लिखने में अपना समय व्यतीत कर रहा है। खुद तो पहले ही फ़ैल होकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर चुका है, अब मेरी बेटी को प्यार के चक्कर में फंसाकर उसकी जिंदगी बर्बाद करने पर तुला है। अपने बेटे से कहिए आगे से अनाहिता को खत ना लिखे, ना कभी फोन पर बात करे।
प्रभाकर ने अना की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा….अगर अनिकेत ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं उसकी पुलिस में शिकायत दर्ज कर दूंगा। वैसे ही आपका बेटा बर्बाद है, अगर पुलिस में उसके खिलाफ मैंने शिकायत कर दी तो उसका बेकार भविष्य और बेकार हो जायेगा। इतना कहकर प्रभाकर ने झट से फोन काट दिया।
प्रभाकर के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी। माना अना उसकी बेटी थी लेकिन उसने उसके अहंकार को चोट पहुंचाने की गलती की थी। ऐसे कैसे माफ़ कर देता वो अना को? गलती की थी अना ने अपने पिता के खिलाफ आवाज़ उठाकर, सजा तो उसे मिलनी ही थी।
अना ने अपने आपको कुछ देर के लिए कमरे में बंद कर लिया था। इस समय उसकी आँखों में अपने पिता के लिए नफरत के सिवाय कुछ नहीं था।
उसे इस बात का गहरा दुख था उसके पिता ने एक बार भी प्यार से पूछना जरुरी नहीं समझा। ऐसा भी कुछ गलत नहीं लिखा था अनिकेत ने और ऊपर से माँ पर हाथ उठा दिया। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो उसके पिता नहीं, सिर्फ एक अहंकारी पुरुष थे जिन्हें स्त्री से चोट खाना मँजूर नहीं था, फिर चाहे वो चोट उन्हें अपनी पत्नी से मिली हो या बेटी से। अंत में थीं तो दोनों स्त्रियां ही।
उसकी आँखों से आंसू बहे जा रहे थे, अनिकेत का चेहरा नज़रों के सामने बार-बार आ रहा था। वो परेशान हो रही थी यह सोच-सोचकर कि अनिकेत पर क्या गुज़र रही होगी। पहले ही उसके रिश्ते अपने पिता से अच्छे नहीं, अब ना जाने क्या-क्या सुनना पड़ रहा होगा अनिकेत को उसके कारण।
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे नन्ही सी पौध को किसी ने वृक्ष बनने से पहले ही रौंद दिया।
अना और अनिकेत के बीच अनकहा "अनकहा" ही रह गया। ना अब कभी अना के लिए मुम्बई में मानसून ही आएगा, ना कभी अनिकेत के लिए देहरादून के पहाड़ अना की मुस्कुराहट से जगमगाएंगे।
भा
अना और अनिकेत की दोस्ती को प्रभाकर की नजर लग चुकी थी लेकिन अना भी हार मानने वालों में से नहीं थी। अगले दिन उसने कॉलेज पहुँचते ही अनिकेत को फोन लगाया लेकिन अनिकेत ने फोन उठाया नहीं। पहले तो फोन बजता रहा और फिर बंद हो गया। मन में ख्याल आया कहीं अनिकेत का फोन उसके पापा ने जबरदस्ती उससे छीन तो नहीं लिया ना या फिर अनिकेत उससे इतना नाराज़ है कि वो उससे बात करना ही नहीं चाहता है?
फिर अना को लगा उसे अनिकेत को समय देना चाहिए, क्या पता अनिकेत का कोई खत आ जाए। लेकिन खत के आने के रास्ते को तो उसके पिता प्रभाकर ने पहले ही बंद कर दिया था। समझ नहीं पा रही थी वो अनिकेत से कैसे बात करे। उसका मन अनिकेत को लेकर बहुत घबरा रहा था। अनिकेत अंतर्मुखी स्वभाव का था। उसे जज़्बातों को सीने में कैद करने की आदत थी।
अना ने काफी सोचने के बाद यह निर्णय लिया कि कुछ समय के लिए उसे अनिकेत से बात करने की कोशिश को विराम लगा देना चाहिए। वो अनिकेत को सम्भलने का वक़्त देना चाहती थी और कुछ हद तक खुद को भी।
आज कॉलेज से क्लास बंक करके वो मरीन ड्राइव चली गयी थी कुछ समय अपने साथ एकांत में गुजारने के लिए। मुम्बई में एक समन्दर ही था जो उसके व्यथित मन की पीड़ा को हर लेने में सक्षम था। समुन्दर की चढ़ती-उतरती लहरों को देखना अना को बहुत अच्छा लगता था। घण्टों वो समुन्दर की लहरों को देखते हुए बिता देती थी। अगर जिंदगी में कुछ सुकून देता था अना को या तो वो समुन्दर था या फिर अनिकेत के खत।
अपने पिता के इस रूप को वो बचपन से देखती हुई आ रही थी, वैचारिक मतभेद, बहस, झगड़ा उसके बचपन का हिस्सा रहा है। पर उसके पापा इस हद तक गुजर जायेंगे, इसका उसे अंदाजा नहीं था। उसे सजा देने के लिए वो अनिकेत का जीवन बर्बाद करने को तैयार हो गए थे। कितनी बुरी तरह बात की थी उन्होंने अनिकेत के पापा से। अना के पापा ने अना और अनिकेत के भविष्य की सारी संभावनाएं ख़त्म कर दीं थी। कुछ नहीं बचा था अब अना के पास समेटने के लिए सिर्फ अपने एयरहोस्टेस बनने के ख्वाब के सिवा।
अना के पास समुन्दर था और अनिकेत के पास पहाड़। अनिकेत को ज़रा सा भी अंदाजा नहीं था कि अना को लिखा उसका एक खत उसकी जिंदगी में इतना बड़ा तूफ़ान ला देगा। वो अपने कमरे में बैठा डायरी में कुछ लिख रहा था कि तभी उसके पिता अविनाश शर्मा ने चिल्लाते हुए तेजी से उसके कमरे में प्रवेश किया और बिना कुछ पूछे अनिकेत के मुँह पर थप्पड़ मार दिया। अनिकेत स्तब्ध था अपने पिता की इस प्रतिक्रिया पर, वो समझ नहीं पा रहा था अपने चेहरे पर पड़े थप्पड़ का कारण। आँखों से आंसू गिर रहे थे।
उसकी मम्मी के चेहरे पर पापा के लिए गुस्सा था और वो कह रहीं थी अनाहिता सिर्फ अच्छी दोस्त है अनिकेत की और इसके सिवा कुछ नहीं। थप्पड़ मारने से पहले कम से कम उससे पूछ तो लेते, जवान बेटे पर कोई इस तरह हाथ उठाता है क्या?
कैसी माँ हो तुम कविता जो अपने बेटे की गलत हरकतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही हो। ठीक ही कह रहा था वो प्रभाकर रावत…. पढ़ाई करने की उम्र में पढ़ाई ना करके अनिकेत उस लड़की को खत लिखने में अपना समय बर्बाद कर रहा है। विज्ञान की पढ़ाई में इसी कारण इसका दिल नहीं लगा और उस लड़की अनाहिता के चक्कर में यह ग्याहरवीं में फेल हो गया। नाक कटा दी एक तो हमारी इसने ग्यारहवीं में फेल होकर और ऊपर से आर्ट्स लेकर। ये सब कम था कि जो उस लड़की के प्यार के चक्कर में मजनू बनकर खत लिख रहा है।
प्रभाकर रावत ने धमकी दी है अगर फिर से उसकी बेटी अनाहिता को खत लिखा या फोन किया तो वो तेरी पुलिस में शिकायत कर देगा और एक बार पुलिस में शिकायत हो गयी तो तेरी जिंदगी बर्बाद हो जायेगी। पुलिस सच और झूठ का फैसला तो बाद में करेगी, लड़की को परेशान करने के लिए तुझे जेल में बंद कर देगी। आज से अनाहिता तेरे लिए मर चुकी है और तू उसके लिए।
अनिकेत चुपचाप खड़ा था लेकिन अंदर ही अंदर गुस्से की आग में जल रहा था। ग्यारहवीं में फेल होने की, पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने की शर्मिंदगी कम थी क्या, जो अब यह सब भी उसे सहन करना पड़ रहा था। जिस अना की दोस्ती उसके लिए प्रेरणा थी, आज उसे उससे चिढ़ हो रही थी। उसके मन में बार-बार यह सवाल उठ रहा था कि आखिर अना ने अपने पिता को समझाया क्यों नहीं, क्यों नहीं रोका अपने पिता को उसके पिता को यूँ धमकाने से? वो तो बहुत साहसी समझती थी खुद को, जब साहस दिखाने का वक़्त आया तो क्यों खामोशी ओढ़ ली?
कितनी मेहनत कर रहा था वो अपने पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए, उसकी सारी कोशिशों पर अना की खत लिखने की जिद ने पानी फेर दिया। इस वक्त उसे अपने पिता से ज्यादा अना पर गुस्सा आ रहा था।
अगले दिन अनिकेत सुबह-सुबह ही माल देवता के लिए निकल गया था सिटीबस में। माल देवता देहरादून से 18 किलोमीटर की दूरी पर था। प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ, चारों तरफ पहाड़ और उनसे गिरते छोटे-छोटे झरनों का संगीत अनिकेत को हमेशा से अपनी ओर आकर्षित करता था। आज इन्हीं पहाड़ों के पास आया था वो अपने मन की बात कहने के लिए। पहाड़ उसे आज़ादी देते थे खुद को अभिव्यक्त करने की। एक ख़्वाब देखा था उसने….. जिंदगी में अपना मुकाम हासिल करने के बाद वो अना के साथ यहाँ आयेगा और जोर से पुकारेगा उसका नाम….अना, मेरी अना। पहाड़ों में दूर-दूर तक गूंजेगा मेरी अना। लेकिन अब ये सपना कभी पूरा नहीं हो पायेगा अना सिर्फ तुम और तुम्हारे पिता के कारण। अनिकेत ने गुस्से से ज़ोर से एक पत्थर नीचे खाई में फैंका और चिल्लाकर कहा….सब खत्म हो गया अना, अब ना मैं कभी तुम्हें खत लिखूंगा और ना ही तुमसे फोन पर बात करूँगा। मेरे पापा ने मेरे फ़ेल होने पर भी मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया लेकिन आज तुम्हारे कारण उन्होंने मुझे थप्पड़ मारा। मेरी जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण अब मेरा लक्ष्य है। मेरे सपनों में, मेरी जिंदगी में अब तुम अपनी जगह खो चुकी हो। अना तुम सिर्फ अनाहिता हो अब मेरे लिए….एक गुजरा हुआ कल।
अनिकेत और अना के बीच अनकहा अब अनकहा ही रह जायेगा।
Preeta
13-Feb-2022 10:40 PM
फॉन्ट थोड़ा छोटा है।
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Seema Priyadarshini sahay
10-Feb-2022 04:08 PM
बहुत ही सुंंदर और लयबद्धता है कहानी में
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