नज़राना इश्क़ का (भाग : 35)
विक्रम और जाह्नवी अंदर जाते हुए डॉक्टर से मिलकर उनसे निमय के बारे में बात की। डॉक्टर्स के हिसाब से अगर उसकी रिकवरी इतनी ही तेजी से होती रही तो फिर उसे तीन से चार दिन के भीतर डिस्चार्ज मिल जाएगा, पर उसे संभलकर रहना होगा, क्योंकि फिर जरा सी चूक उसे इससे भी बुरी हालत में ला देगी। दोनो निमय के जल्दी ठीक होने की कामना करते हुए उसके पास पहुँचे। निमय और फरी बिल्कुल चुपचाप से बैठे हुए थे, यह देखकर दोनों को बेहद हैरानी हुई।
"चलो फरु..! अब तो मिल न अपने दोस्त से..!" मुस्कुराते हुए विक्रम बोला।
"थैंक यू भाई..! आप सच में बहुत अच्छे हो!" फरी ने उसे देखते हुए मुस्कुराकर कहा।
"काहे का थैंक यू और काहे का अच्छा? कौन सा इसका दोस्त नहीं है..! और अच्छा किस एंगल से लग रहा ये..!" जाह्नवी, विक्रम को बड़ी बड़ी आंखे कर देखते हुए मुँह बिचकाकर बोली।
"हाँ तो अभी आज नहाया नहीं तो क्या हुआ..!" विक्रम ने उसे देखकर गंदा सा मुँह बनाया।
"मुझे पता था आपने झूठ बोला है जब आपने कहा कि आप नहा धोकर रेडी बैठे हैं।" फरी छोटी बच्ची की तरह खिलखिलाते हुए बोली।
"बहने सच में सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं निमय! मुझे सच में तुमसे सहानुभूति है..!" विक्रम मुँह लटकाकर निमय की ओर देखता हुआ बोला।
"हें…!" जाह्नवी और फरी दोनों चौंकते हुए आँखे फाड़ फाड़कर विक्रम को घूरने लगीं। यह देखकर निमय की हंसी छूटने को आ गयी।
"अच्छा चलो अब जाकर नहा लेना!" निमय ने धीरे से हँसते हुए कहा।
"बिल्कुल! तुम भी संभलकर रहना, यहां खून पीने वाले मच्छर बहुत हैं।" विक्रम जाह्नवी की ओर तिरछी नजरों से देखता हुआ बोला।
"उसकी फिक्र तुम न करो विक, ऑलरेडी बहुत वीक होते जा रहे हो, मच्छर को भी तुम पर रहम आ जायेगी।" जाह्नवी ने मुँह बिचकाया।
"अच्छा तो हम चलते हैं।" विक्रम हँसते हुए बोला। "चलो फरु!"
"जी भाई!" कहते हुए फरी उसके पीछे जाने लगी। "अपना ख्याल रखियेगा निमय जी, आपको मैं बाद में कॉल करूँगी!" उन दोनों से विदा लेते हुए फरी ने जाह्नवी की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा। फिर वे दोनों चले गए, जाह्नवी निमय के पास आकर बैठ गया।
"क्या हुआ?" निमय उसको ऐसे चुपचाप बैठे देखकर बोला।
"कुछ नहीं!" जाह्नवी ने मुस्कुराते हुए कहा। "अच्छा दिखा तो तेरा सूजन कैसा है?" जाह्नवी ने उसके हाथ से चादर हटाया।
"अब ठीक हो गया है पागल! बस हल्का सा दुख रहा है।" निमय अपने हाथ को बड़े गौर से देखते हुए बोला, सूजन अब काफी कम हो चुकी थी।
"डॉक्टर ने कहा है कि तीन चार दिन के भीतर ही डिस्चार्ज मिल सकता है, पर तुझे अपना ख्याल रखना होगा।" जाह्नवी ने कहा।
"मेरे पास तू है ना मेरा ख्याल रखने को…! और क्या चाहिए!" निमय ने मुस्कुराते हुए कहा, जाह्नवी के चेहरे पर लंबी मुस्कान फैल गयी।
"और कोई भी है..! जो मेरे न होने पर तेरा अच्छे से ख्याल रख सकती है।" जाह्नवी ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।
"कौन?" निमय ने बड़े आश्चर्य से पूछा।
"मेरी भाभी और कौन! अब तू तो लाएगा नहीं ढूंढ के, मुझे ही ढूंढना पड़ेगा न!" जाह्नवी ने तंज कसते हुए कहा।
"ठीक हो जाने दे फिर बताता हूँ तेरा…!" निमय उसको घूरता हुआ बोला।
"तो जल्दी से ठीक हो जा ना!" जाह्नवी लंबी सांस भरते हुए मुस्कुराई।
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इसी तरह सभी निमय का प्रतिदिन ख्याल रखते, विशेषकर जाह्नवी और फरी तो अपना सारा ध्यान उसी पर रखते, विक्रम हर रोज फरी को लेकर हॉस्पिटल आता, फिर निमय और फरी खूब सारी बातें करते, वे चारों हॉस्पिटल में होते हुए भी वहां किसी पार्टी हॉल जैसा माहौल बना देते थे। इसका बेहद सकारात्मक प्रभाव हुआ निमय की हालत में तेजी से सुधार आने लगा, हालांकि जाह्नवी, फरी और विक्रम के हो-हुल्लड़ ने उसे कभी बोर नहीं होने दिया पर हफ्ते भर बस बेड पर पड़े रहना बेहद कष्टदायी होता है। निमय और फरी अब तक काफी घुल मिल गए थे, निमय के प्रति उसकी इतनी अधिक परवाह कही न कही यह दिखा रही थी कि वह भी निमय को दिल से अपना मानने लगी थी। निमय अब धीरे धीरे उठना बैठना और चलना सीख रहा था, बहुत मेहनत कर आखिरकार वह फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो गया। आखिर वह दिन भी आ गया जब उसे हॉस्पिटल से रिहाई यानी कि डिस्चार्ज मिल गया। विक्रम, फरी और जाह्नवी साथ उसे अपनी कार से घर तक छोड़ने गया और फिर उसे ख्याल की हिदायत देकर दोनो घर चले गए।
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विक्रम के घर पर..!
अगले ही दिन फरी अपना सामान पैकिंग कर जल्दी जल्दी तैयार होने लगी, अब तक फरी को उस घर ने अपना लिया था। वैष्णव जो कि बहुत ज्यादा बात तो नहीं करता था पर अक्सर फरी के साथ टाइम बिताया करता था, उसे उसकी पसंद की सारी चीजें पूछ पूछकर लाया करता था। सिद्धार्थ जो कि हर किसी पर भरोसा नहीं किया करते थे, उन्होंने भी उसे अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया था। फरी को भी यहां से लगाव होने लगा था पर न जाने क्योंकि उसका ईमान जवाब दे रहा था, वह किसी दूसरे के सहारे नहीं जीना चाहती थी, उसे खुद के भरोसे ही रहना था, मगर यह बात वो विक्रम और बाकी सबको कैसे समझाए यह उसकी समझ से परे था। रजनी ने जब उसे पैकिंग करते देखा तो तेजी से उसके कमरे में चली आयी।
"ये क्या कर रही हो बेटा? कहीं जाना है क्या?" रजनी ने चकित होते हुए प्यार से पूछा।
"जी माँ!" फरी उनकी ओर देखते हुए मुस्कुराकर कहा।
"कहाँ? कोई जरुरी काम है क्या?" रजनी ने बड़े प्यार से पूछा।
"जी! बाबा का कॉल आया था, उन्होंने बताया कि मैं जहां रहती थी, बड़े साहेब ने उसकी पूरी प्रोपेर्टी ही खरीद ली। अब मुझे वहां से सामान हटाकर दूसरे जगह रूम लेकर शिफ्ट करना होगा!" फरी ने सामान्य स्वर में कहा।
"बड़े साहब? कौन?" रजनी को जैसे कुछ भी समझ नहीं आया। "तुम्हारे पापा?" रजनी ने उसकी आँखों में झांका, जो कि नम हो चुकी थी।
"वो इंसान मेरे पापा नहीं हैं माँ! उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल कर मुझे गाली मत दीजिये।" फरी ने सिर झुकाए हुए कहा, उसके स्वर में आक्रोश और दुःख का मिश्रण था।
"पर तुम्हें दूसरा रूम क्यों लेना है? ये रूम तुम्हारे लिए छोटा है क्या? मैं वैष्णव को कह देती हूँ, वो तुम्हारा सामान यहां शिफ्ट करवा लेगा।" रजनी ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।
"ऐसा नहीं है माँ! यह घर और आपका दिल बहुत। बड़ा है, पर मुझे बिना किसी सहारे के जीने की आदत रही है!" फरी ने नजरें झुकाये धीमे स्वर में कहा।
"तो फिर आदतें बदल ली जाती हैं बेटा! अगर आज उसने इस जगह को खरीद लिया तो कल उस दूसरी जगह को भी खरीद सकता है जहां तुम रहोगी! और फिर यह चलता रहेगा, बताओ कब तक भागते हुए जीना चाहती हो?" रजनी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर समझाते हुए कहा।
"मैं भागना नहीं चाहती माँ! पर मुझे भी लड़ाई के लिए हथियार चाहिए, मुझे अपनी माँ के साथ हुए नाइंसाफी का एक एक हिसाब लेना है, मुझे भागना नहीं है पर….!" कहते हुए फरी बेहद भावुक हो गयी।
"तो अपनी इस माँ के आँचल को अपनी ढाल बना लो न! और हथियार तुम्हें ढूंढना नहीं है, खुद बनना है बेटा! बस बहुत भाग चुकी तुम, अब तुम्हें यहीं रहना है, अपनी इस माँ के दिल में..!" कहते हुए रजनी ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया।
"माँ…!" फरी की आँखों से आँसू उतर आए, वह सबकुछ भूलकर रजनी के गले लग गयी। इस वक़्त उसे बेहद सुकून महसूस हो रहा था।
"मम्मा..! फरु को नीचे भेज, उसको अपना बाकी सामान लेने के लिए जाना था न?" विक्रम नीचे से चिल्लाता हुआ बोला। वह कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था।
"तुझे कैसे पता?" रजनी ने पूछा।
"वही तो कह रही थी कि आज उसे अपने रूम पर जाना है। अच्छा बताओ वो तैयार हुई कि नहीं…!" निमय ने अपनी शर्ट का ऊपरी बटन लगाते हुए कहा।
"अहं…..!" फरी की ओर देखते हुए रजनी ने 'न' कहना चाहा।
"हाँ! भाई मैं तैयार हूं, दो मिनट रुकिए फिर चलते हैं।" फरी ने उन्हें बीच में ही रोक कर मुस्कुराते हुए कहा।
"ठीक है…!" कहते हुए विक्रम अपने रूम में चला गया।
"तुम बहादुर हो बेटा! मैं तुमसे तुम्हारी मर्ज़ी को नहीं छिनूँगी..! तुम्हें अगर ऐसा लगे कि हम तुम पर उपकार कर रहे तो तुम हरेक चीज की कीमत अदा कर सकती हो, पर याद रखना, भले ही करुणा अपने हिस्से का सब लेकर चली गई, लेकिन अब तुम मेरी भी बेटी हो, इस परिवार का हिस्सा हो… अगर तुम हमें अपना मानती हो तो तुम्हें पता होना चाहिए कि यहां तुम्हारा अधिकार है। अगर तुमने इससे इनकार किया तो सबका बहुत दिल दुखेगा, और वैष्णव वो तो पागल है, बचपन से बहन के लिये जिद कर रखा उसने, जब बड़ा होने पर उसे समझ आया कि मैं माँ नहीं बन सकती और उसे बहन नहीं मिल सकती तो वो उदास होता गया, टैब से ही वो ऐसा होता गया, कम बातें करना, बस काम से काम उसकी आदत बन गयी। पर जब से उसे तुम मिली हो वो काफी खुश रहने लगा है, उसकी बचपन से एक ही ख्वाहिश रही है कि वह अपनी बहन के कदमों में इस दुनिया की सारी खुशियाँ लेकर रख दे। वो तुम्हारें साथ बहुत खुश रहता है..! हम सब के अपने कारण होते हैं बेटा, जिन्हें तुम स्वार्थ भी कह सकती हो, पर अब तुम्हारे ऊपर कोई आंच भी आई तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। उस नीच पापी को जितना करना था उसने किया, उसने तो अपने नाम और वंश का गौरव धूमिल कर दिया, पर अगर उसने अब अपनी हद पार की तो ठीक ढंग से जवाब मिलेगा।" रजनी ने लंबी साँसे छोड़ते हुए उसके सिर पर हाथ फिराकर कहा।
"मैं समझती हूँ माँ! थैंक यू..! मैं आप सबका दिल नहीं दुखा सकती पर अपने उसूलों के खिलाफ भी नहीं जाना चाहती..!" फरी निगाहें झुकाएं हुए बोली।
"वक़्त और हालात के साथ उसूल बदल लिए जाते हैं बेटा! माना तुमने बहुत कुछ सहा, हर साल शहर बदलती भागती रही, पर तब तुम अकेली थी, अब तुम्हारे पास परिवार है और अगर परिवार के किसी एक सदस्य को तकलीफ हो तो वो पूरे परिवार की तकलीफ होती है। मैं फिर भी सारे फैसले तुम पर ही छोड़ती हूँ!" राजनी ने बड़े प्यार से समझाते हुए कहा।
"जी माँ! मैं आपकी सारी बात मानूँगी। अगर आपने मुझे इस काबिल समझा है कि मुझे आपके दिल में जगह दिया है तो मैं भी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूँगी।" फरी हौले से मुस्कुराते हुए बोली, रजनी ने उसके आंसुओ को अपने आँचल से पोंछ दिया।
"बेटी को दिल में जगह दिया नहीं जाता पागल, बेटियां तो परिवार की आत्मा होती हैं, बेटी से ही घर में रौनक होती है।" रजनी ने उसे बड़े प्यार से पुचकारा।
"आप बहुत अच्छे हो माँ!" फरी अचानक ही फिर से रजनी के गले लग गयी। रजनी उसके बालों में प्यार से हाथ फिराते हुए, दूसरे हाथ से पीठ सहलाने लगीं।
"फरु..! चलो अब…!" विक्रम नीचे से चिल्लाया।
"जी भाई..! अभी आती हूँ, बस दो मिनट..!" फरी, रजनी से अलग होते हुए बोली।
"कब से तो बस दो ही मिनट हो रहा, पता है इस दो मिनट के चक्कर में बचपन में कितना मार खाया है..!" विक्रम तेजी से सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आते हुए बोला।
"आती हूँ न भाई! वैसे भी आपके दो मिनट, महीने से कम थोड़े होते होंगे..!" फरी मुँह टेढ़ा करते हुए बोली, यह देखकर रजनी की हंसी छूट गयी, तीनों एक साथ नीचे उतरे।
क्रमशः...
Seema Priyadarshini sahay
16-Feb-2022 04:24 PM
बेहतरीन लिखा सर
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मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:15 PM
Thank you so much ma'am ❤️🤗
Reply
Pamela
15-Feb-2022 01:28 PM
👌👌
Reply
मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:16 PM
Thank you
Reply
Arman Ansari
12-Feb-2022 01:33 AM
बेहहतरीं कहानी
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मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:16 PM
Thank you so much ❤️😀
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