मेरी अना- भाग 8
भाग 8
अना बी. ए इंग्लिश ऑनर्स के प्रथम वर्ष की पढ़ाई में व्यस्त हो गयी थी। लगभग तीन महीने बीत चुके थे ना अनिकेत के खत ही आए ना ही उसका फोन। कई बार अना ने उसे फोन किया पर हर बार घँटी बजती और फिर फोन बंद हो जाता। वो समझ गयी थी कि अनिकेत उससे बात नहीं करना चाहता। एहसास था उसे अनिकेत की नाराजगी का लेकिन एक बार तो दोस्ती की खातिर अनिकेत को अना को अपनी बात कहने का अवसर तो देना ही चाहिए था।
बिना कुछ कहे-सुने इस दोस्ती का ऐसा अंत हो जायेगा, ऐसा अना ने कभी नहीं सोचा था। अना के लिए वो भी उन लड़कों में से था जिन्हें रिश्ता जोड़ने और तोड़ने में चंद सेकंड का समय लगता था और वो उन बेवकूफ लड़कियाँ में जो नए नवेले रिश्ते में उम्र भर का साथ तलाशने लगतीं है। अना का भ्रम भी टूट गया था और अब अनिकेत को स्मृतियों में छोड़ वर्तमान में जीने लगी थी।
अना के कंधों पर अपने ख़्वाबों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी थी। उसे अपने घर से बाहर निकलकर आसमान में उड़ना था। जंग तो वैसे भी छिड़ चुकी थी घर में, बस अब इस लड़ाई को जीतना जरुरी था। अना और अनिकेत ने अपने-अपने ख़्वाबों को पूरा करने की जिम्मेदारी उठा ली थी। दोस्ती खाक हो चुकी थी, प्यार की चिंगारी जलने से पहले ही बुझ चुकी थी, अब कुछ नहीं बचा था समेटने के लिए। दोनों अपनी-अपनी राह पर आगे बढ़ चुके थे।
अनिकेत ने बारहवीं में 85% लाकर अपने माता पिता को स्तब्ध कर दिया था। उसके पिता को समझ नहीं आ रहा था वो क्या प्रतिक्रिया दें? बेटे के आत्मविश्वास को तोड़ने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सहानुभूति के दो शब्द बोलने के बजाय हमेशा उसके आत्मसम्मान को धिक्कारा था।
वो चाहते हुए भी अनिकेत को गले नहीं लगा पाए। एक दीवार सी थी दोनों के बीच जिसे तोड़ना फिलहाल असम्भव सा था। अनिकेत की मम्मी ने उसके पास होने पर उसकी मनपसंद खीर पूरी बनायी थी।
अनिकेत खुश था परीक्षा के परिणाम से लेकिन यह खुशी अधूरी थी अना के बिना। दिल चाहता था उसे फोन करना लेकिन उसके पिता की धमकी ने उसे रोक रखा था। अना उसकी सबसे करीबी दोस्त, उसका सम्बल थी। वो और भी शायद बहुत कुछ हो सकती थी, लेकिन भगवान हर दुआ मँजूर कर ले, ऐसा कहाँ होता है? अना से नराजगी अपनी जगह थी और बाकि के जज़्बात अपनी जगह।
अनिकेत ने अना के प्रति अपनी इस नाराजगी को फिलहाल पोषित करने का सोचा था। कभी अना के उत्साहवर्धक शब्द उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे, आज उसके प्रति अपने गुस्से को वो ढाल बनाकर जिंदगी की राह में आगे बढ़ना चाहता था। नहीं सोचना चाहता था अब वो और अना के बारे में, वो सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहता था।
अनिकेत ने दिल्ली के एक कॉलेज में बी. ए पत्रकारिता में दाखिला ले लिया था। उसके पापा का रवैया उसके प्रति बदल चुका था। मन चाहता था अनिकेत को गले से लगाना लेकिन प्रेम को अभिव्यक्त करना इतना आसान कहाँ था? क्रोध को अभिव्यक्त करना जितना आसान होता है, प्रेम को अभिव्यक्त करना उतना ही कठिन।
अनिकेत बेहद शांत स्वभाव का लड़का था। अना के अलावा उसके कोई खास दोस्त नहीं थे। देहरादून से बाहर कभी कदम नहीं रखा था। ऐसे में दिल्ली की आबो हवा के अनुरूप खुद को ढाल पाना शुरुवाती दिनों में अनिकेत को बड़ा मुश्किल लग रहा था। कॉलेज में दाखिले के वक़्त और होस्टल में उसके रहने की व्यवस्था तक उसके मम्मी पापा उसके साथ थे। जाते हुए पापा ने उसे कुछ रुपये दिए थे खर्चे के लिए और साथ ही एक नया फोन और डेबिट कार्ड ताकि जब भी उसे पैसे की जरूरत हो तो वो बेझिझक पैसे निकाल सके और उनका सही उपयोग कर सके।
अनिकेत स्तब्ध था अपने पिता के इस बर्ताव पर। दोनों के बीच कहीं कोई संवाद नहीं था सिर्फ जरूरत की बातों के सिवा। लेकिन उसके पिता के इस बर्ताव ने आज उनके बीच नए रिश्ते की शुरुवात की थी। जाते वक़्त जहाँ माँ बेटे के गले लगकर रो रही थी वहीँ पिता अपने आंसुओ को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। अनिकेत ने जब अपने पिता के पाँव छुए तो उन्होंने कहा… हो सके तो मुझे माफ़ कर देना बेटा।
इतना सुनते ही अनिकेत के सीने में जमी बर्फ पिघलने लगी और वो एकदम से अपने पिता के गले से लग गया। अब पिता और पुत्र दोनों खुलकर रो रहे थे। सारी शिकायतें, सारी अपेक्षाएँ आंसूओं की धारा में प्रवाहित हो रहीं थी। कुछ था शेष तो सिर्फ प्रेम जो केवल स्वीकार करना जानता था बिना किसी शर्त के।
अनिकेत के माता पिता जा चुके थे, अब वो दिल्ली में अकेला था। अनिकेत ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स से बी ए पत्रकारिता में दाखिला लिया था। हॉस्टल में उसके साथ कमरा शेयर करने वाले छात्र का नाम विकास झा था जो बिहार से था। रोहन देखने में साधारण कद काठी का पतला दुबला लड़का था। जबकि अनिकेत का व्यक्तित्व आकर्षक था। देखने में चाहे दोनों का व्यक्तित्व एक दूसरे से भिन्न था लेकिन स्वभाव दोनों का ही अंतर्मुखी था।
कॉलेज का पहला दिन….अनिकेत और विकास दोनों ही घबराए हुए थे रैगिंग को लेकर। लेकिन रैगिंग के नाम पर कुछ ज़्यादा हंगामा नहीं हुआ। विकास को गाना गाने के लिए कहा गया। पहले तो वो मना करता रहा पर सीनियर्स की जोर जबरदस्ती पर जब उसने गाना शुरू किया तो सबने अपने कान बंद कर लिए और उसे गाना बंद करने के लिए कहा गया।
अनिकेत को पेड़ को अपनी गर्लफ्रेंड मानकर प्रोपोज़ करने के लिए कहा गया। उसने कहा उसकी कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही है और उसे प्रोपोज़ करना नहीं आता है। सबके उकसाने पर भी अनिकेत स्थिर ही रहा। आखिर में उसने यही कहा कि ना उसे नाचना आता है ना गाना, अगर सबकी रजामंदी हो तो वो एक स्वरचित कविता सुना सकता है।
सभी ने कविता सुनने के लिए हामी भर दी।
अनिकेत कविता सुनाने लगा….
"मेरे शब्द कहीं खो गए हैं,
शून्य से जड़ हो गए हैं।
बिस्तर पर मृत पड़े जज़्बात
उठना चाहते हैं,
कागज़ पर दो कदम चलना चाहते हैं।
लेकिन शब्द है कि मिलते ही नहीं,
मृत होते जा रहे हैं कहीं ना कहीं, मेरी आत्मा की तरह
देह मरती है अक्सर, आत्मा का मरना कभी ना सुना होगा,
होता है कई बार ऐसा भी देह तो जीवित रहती है, लेकिन आत्मा मर जाती है।
कितनी भयावह होती होगी यह स्थिति,
जब जज़्बातों की भरमार तो होती है भीतर,
पर उन्हें अभिव्यक्ति नहीं मिल पाती है।
कभी-कभी दिल को सिर्फ ख़ालीपन की अनुभूति होती है, भीतर भी और बाहर भी।
ख़ाली आंगन में शब्दों की उपज कहाँ होती है?
बंजर पड़े मन पर सिर्फ पत्थर और दरारें ही दिखती हैं,
आंसुओं की बारिश भी वहां नहीं होती है।
हाँ होता है ऐसा भी कभी-कभी जिंदगी में,
जब भावनाएं और शब्द खो जाते हैं।
और मेरी डायरी के पन्ने फिर से यूँ ही खाली रह जाते हैं, मेरे मन की तरह।"
कविता खत्म हो चुकी थी और सभी शांत भाव से अनिकेत को देख रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सीनियर्स को कविता अच्छी लगी भी नहीं? तभी सीनियर्स के समूह से पाखी ने तालियां बजानी शुरू की और फिर उसे देखकर सभी तालियां बजाने लगे।
पाखी ने कहा…. तुम्हारी कविता में एक अलग तरह का दर्द था, झूठ कहा तुमने अभी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही। सभी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगे और अनिकेत को छेड़ने लगे।
अनिकेत ने जवाब में इतना ही कहा….मोहब्बत के अलावा और भी गम हैं जमाने में। मेरी जिंदगी का मकसद मोहब्बत में मजनू बनने का नहीं है।
पाखी और उसकी सहेलियां अनिकेत के व्यक्तित्व पर मंत्र मुग्ध हो गईं थी। थोड़ी ही देर में सब अपनी-अपनी क्लास के लिए चले गए। जाते-जाते पाखी ने अनिकेत को अपना परिचय दिया और उसके समक्ष दोस्ती का हाथ बढ़ाया जिसे अनिकेत ने ख़ामोशी से स्वीकार कर लिया।
❤सोनिया जाधव
Inayat
14-Feb-2022 10:33 PM
खूबसूरत लेखन है आपका
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Seema Priyadarshini sahay
12-Feb-2022 03:36 PM
बहुत खूबसूरत
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