नागफेनी २
अब आगे...
,,राज,अजय,अमन,अनु,रिया,सिमरन,मानव और विकास।
करीब 10 बच्चों का ग्रुप्स सोश्योलॉजी के स्टूडेंट्स का था।जिनमें से 3आए नहीं थे,कारणवश।
पूरी टीम दो ग्रुप्स में बँटी थी। एक गर्ल्स के और दूसरे बॉयज के
टीचर तीन थे।अविनाश शर्मा,नीति अग्रवाल और शोभित कुमार।
,,नागफेनी,, का इतिहास,वहां के लोगों का रहनसहन और भौगोलिक स्थिति सबके बारे में जानकारियां इकट्ठी करके अपना थीसिस तैयार करना..और सबसे अधिक वहां के रहस्यों के लिए रोमांच..!!
स्टूडेंट्स रोमांचित थे नागफेनी के नाम से ही।वह छोटा सा स्थान सबके बीच एक पहेली की तरह खड़ा था एक प्रश्न चिन्ह बनकर।
***
सभी बच्चों को लेकर सभी टीचर्स बस से नागफेनी की तरफ बढ़ने लगे।नागफेनी शहर से बहुत दूर तो नहीं था,बस रास्ते उबड़खाबड़ और पथरीली थी।दूर दूर तक कच्ची सड़क के कारण दो घंटे का सफर चार पाँच घंटों का बन जाता था।
उठापटक करती बस चलती जा रही थी।बच्चों का हुड़दंग मचा हुआ था।बच्चों के साथ टीचर्स भी मजे ले रहे थे।
बाहर ठंडी सुहावनी हवा थी।मौसम भी खुशनुमा था।बरसात के ठीक बाद और सर्दी से ठीक पहले का मौसम न गर्म और न ही सर्द।
बच्चे और टीचर्स मिलकर अंताक्षरी खेल रहे थे।अचानक बस जोरदार आवाज के साथ रुक गई।
,,अरे क्या हुआ..!!,,नीति मैम बोलीं..ओ राजा भैया..ये आवाज कैसी थी?,,
,,कुछ नहीं मैडमजी,टायर पंचर हो गया है।हम अभी ठीक करते हैं।,,बस ड्राइवर राजा भैया बोला।
,,सर,मैडम जी आप सबलोग को बस से नीचे उतरना होगा तभी टायर बदल सकता है।,,
शोभित सर थोड़े उम्रदार थे।सभी बच्चों खासकर यंग लड़कियों को लेकर बीच जंगल में खड़े होना ,उन्हें गवारा नहीं हो रहा था।जंगल से भूत तो नहीं पर लुटेरे या नक्सली न निकल आएं..यही डर था।
उन्होंने जोर से चिल्लाकर बोला--
,,बच्चों..कीप द पेशेंस।बस आधे एक घंटे में तैयार हो जाएगी।आपलोग में से कोई भी इधर उधर नहीं जाएगा।
यह जगह ठीक नहीं है..प्लीज कीप साइलेंस।,,
कॉलेज के स्टूडेंट्स और साइलेंस..!!,खासतौर पर तब जब उन्हें बोला जाए कि शाँति से रहो।
15मिनट भी नहीं बीते थे कि उनके हँसी ठहाके गूंजने लगे।
वहां से नागफेनी बहुत अधिक दूर नहीं था।जहां फर बस खराब हुई थी वह लगभग एक सुनसान सी जगह थी।कच्ची सड़क और दोनो तरफ ऊंचे उगे घासों की कतारें।
दिन ढलती दोपहर के कगार पर था। टीचर्स बच्चों पर निगाहें रखे हुए थे।अविनाश सर कहीं से चाय बनवाकर ले आए थे और सब चाय पी रहे थे।
कोई इस पेड़ की छांव में कोई उस पेड़ की।
अमन और सागरिका दोनो सड़क से उतरकर पतली सी पगडंडियों पर चल रहे थे।सड़क के दोनो तरफ घास की ऊंची ऊंची कतारें लगीं थीं।
अचानक सागरिका जोर से चीख मारकर बस की तरफ दौड़ पड़ी।
सब हैरान हो गए ..!!,,सागरिका..क्या हुआ तुम्हें..क्या हुआ...!!,,
सब उसके पीछे दौड़े।
उसी समय बस ड्राइवर राजा भैया बोला ,,बस ठीक हो गई है सबलोग बस पर बैठ जाईये।,,
आननफानन में जल्दीजल्दी सब बस में बैठ गए और बस तेजी से आगे बढ़ गई।
सभी बस में सागरिका को घेरे बैठे थे।कोई उसका हाथ सहला रहा था तो कोई बाल..।
,,क्या हुआ था सागरिका बोलो..न..अमन उसे पानी पिलाते हुए पूछा.
सागरिका कुछ कहती इस से पहले राजा ने कहा
,,साब,ये जगह ठीक नहीं है...हमेशा ही यहां से गुजरने वाली सवारी यहां पर खराब होती ही है और किसी को कुछ आवाज सुनाई देती है तो किसी को कुछ..!!यहां पर आत्माएं घुमती हैं।,,
,,हाँ,राजाभैया ठीक बोल रहा है सर,मुझे भी खेतों से शेर के दहाड़ने की आवाज़ आ रही थी।मैं दहाड़ सुनकर डर गई थी।,,सागरिका रोते हुए बोली।
राजा-- ,, नहीं साहब,आसपास इतना भी घना जंगल नहीं कि शेर बाघ आ जाए...हाँ हाथी तो आते रहते हैं।
शोभित सर--जब हाथी आ सकते हैं तो बाघ शेर क्यों नहीं? बच्चों,सारी खिडकियां दरवाजे लॉक करो और एकदम पिन ड्रॉप साइलेंस मेंटेन करो।कोई आवाज नहीं आनी चाहिए।हमें कन्फ्यूजन में नहीं रहना है कि शेर था या नहीं,बस सतर्क रहना है।..सो बी केयरफुल..।,,
अभी एक घंटे पहले बस शोरगुल से गुंजायमान था अब सब सिर झुकाए चुपचाप बैठे थे।सिर्फ़ बस के चलने और बीच बीच में बस के हॉर्न की आवाज।कभी पत्तों के सरसराहट कभी हवा की आवाज भी अब सिहरन भर रही थी।
...
रात्रि के लगभग साढे सात आठ के बीच बस नागफेनी पहुंची।नागफेनी गेस्टहाउस में सभी के रहने की व्यवस्था पहले से की हुई थी।
सभी लोग बस से डरे सहमे उतरे।गेस्टहाउस चारों तरफ कंटीले तारों से घिरा हुआ था।पर गेस्टहाउस की बिल्डिंग और बाहर की चारदीवारी के बीच भी लगता था कि एक छोटामोटा जंगल है।इतने घने पेड़ पौधे..कि दिन में भी लोग डर जाए...फिर अभी तो रात है।
दिन का भोजन बना हुआ था।बस में खराबी के कारण दिन का खाना वैसे ही पड़ा था।टीचर्स ने रात्रिभोजन के लिए मना कर दिया।उन्होंने कहा कि सबलोग वही खाना खा लेंगे।
भोजन के बाद सब बच्चे और टीचर अपने अपने कमरों में चले गए।
रिया,सागरिका,सिमरन और अनु अपने ग्रुप टीचर नीति मैम के साथ एक कमरे में और बाकी सभी लड़के और टीचर दूसरे कमरे में।
सभी इतना अधिक डर गए थे कि कुछ और सोचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे थे।
आसमान में चाँद खिला हुआ था,अपितु पूरनमासी नहीं थी,पर रह रहकर कुछ अजीबोगरीब आवाजें रहरहकर गूंजती रहतीं।
यहां के ग्रामीणों को यह सब देखने सुनने की आदत हो,पर इन शहरी नौजवानों के लिए बहुत मुश्किल था..!!
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क्रमशः...
स्वरचित..
पूर्णतः मौलिक..
सीमा..✍️
Shnaya
07-Apr-2022 12:11 PM
Very nice👌
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Abhinav ji
07-Apr-2022 08:07 AM
Very nice
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