लेखनी प्रतियोगिता -15-Feb-2022
ओस की बूँद
बूँद-बूँद ओस की एक अरमान जगाती है,
कभी पत्तों पर तो कभी घास पर नजर आती है।
खिल कर सूर्य की किरणों संग मोती सी बिखर जाती है,
दे शीतलता मन को मेरे तन शीतल कर जाती है।
क्षण भंगुर है यह जलबिंदु निशा का आलिंगन करती है,
गुनगुनाती धूप संग न जाने कहा चली जाती हैं।
कोमल कमसिन होती हैं ये मिहिका की बूँदे,
महक उठे प्रकृति इनसे स्पर्श मात्र से छू हो जाती हैं।
गम हो या हो खुशी हरदम जीने की सीख सिखाती हैं,
पानी से ही सब जीवित हैं पानी का महत्व बताती हैं।
आए जहाँ में तो जाना भी है हरदम हमको सिखलाती हैं,
क्या रखा इस राग द्वेष में प्रीत की खुशबू फैलाती हैं।
रात्रि जल की ये बूँदे कहती जीवन चक्र ये जन्म मरण से चलता है,
आता है जो काम किसी के वही अमर कहलाता है।
श्वेता दूहन देशवाल
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
Mukesh Duhan
16-Feb-2022 03:08 PM
Nice ji mam
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Shrishti pandey
16-Feb-2022 12:28 PM
Very nice
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Punam verma
16-Feb-2022 09:07 AM
Nice
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