नज़राना इश्क़ का (भाग : 39)
अब तक सुबह से शाम होने को चली थी, फरी को एक पल को भी ऐसा महसूस नहीं हुआ जैसे वो किसी और के घर आई हो, जानकी ने उसे बड़े प्यार से खिलाया पिलाया और अपने साथ रखा, निमय बेचारा लाख चाहकर भी फरी से कुछ बोल नहीं पा रहा था। जाह्नवी बहुत कोशिश करती रही लेकिन अपनी मां के सामने उसकी बकबक भी काम न आई। निमय मुँह लटकाकर उनके पास ही में बैठा हुआ था, यह देखकर जाह्नवी को अच्छा नही लग रहा था मगर वह मजे लेना भी नहीं छोड़ रही थी। फरी, जानकी जी के साथ कब इतना घुलमिल गयी उसे कुछ एहसास ही न हुआ, दोनो आपस में खूब सारी बातें करते रहे, निमय को यकीन ही नही हो रहा था कि ये लड़की इतना बोलती भी होगी। तभी हाथ में चाय की ट्रे लिए जाह्नवी अंदर आयी।
"मम्मा चाय!" उसने जानकी जी को चाय पकड़ाते हुए कहा।
"इतनी गर्मी में कौन चाय पीता है?" जाह्नवी की ओर देखते हुए उन्होंने चाय का कप उठाया।
"शाम हो गयी है मम्मा! कमरे से बाहर निकलकर देखो तब तो पता लगे कुछ…!" जाह्नवी बुरा सा मुँह बनाई, फिर सभी बैठकर चाय की चुस्कियां लेने लगे।
"तू आज इतना चुप क्यों है निम्मी?" जानकी जी ने निमय से पूछा, जो चुपचाप चाय पीने में लगा हुआ था।
"अरे कुछ नहीं मम्मा..!" निमय के कुछ बोल पाने से पहले ही जाह्नवी बोली। जानकी, निमय की ओर देखने लगी।
"अब मुझसे झगड़ने वाली तो आज बिजी है! और सब आपस में लगे हुए हैं, मैं बात भी क्या करूँ..!" कहता है निमय बाहर निकल गया, यह देखकर फरी को बेहद बुरा लगा, वह भी कमरे से बाहर निकल गयी। निमय उसे छत पर जाता दिखा।
उन दोनो को जाते देख जानकी भी उठीं, पर जाह्नवी ने उनका हाथ खींचकर बैठा दिया। उन्होंने उससे इशारे से पूछा "क्या हुआ?"
"अब अपने बहू-बेटे की प्राइवेसी भंग ना करो माँ!" जाह्नवी खीखीखी करते हुए बोली।
"क्या मतलब? ये लड़की और निम्मी…!" जानकी जी को बेहद हैरानी हुई, पर जल्दी ही उनकी हैरानी खुशी में बदल गयी, आज का पूरा दिन उन्होंने फरी के साथ बिताया था, उसने एक पल को भी ऐसा महसूस नहीं होने दिया था जैसे वो कोई पराई हो।
"तो क्या? आपको क्या लगता है ऐसे ही कोई लड़की आपसे और मेरे भाई से बात करेगी और मैं कर लेने दूंगी?" जाह्नवी शातिराना अंदाज़ में बोली।
"तो….कब हुआ ये...?" उन्होंने आंखों के इशारे से पूछा।
"अभी कहाँ मम्मा! आपका लड़का सच में आलसी है.. पर यूं समझो मैंने भाभी तो सेलेक्ट कर ली है!" जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए कंधे उचकाए।
"लड़की तो सच में बहुत अच्छी है, जिस तरह से तुम दोनों रहते थे मुझे लगा नहीं था कि तुम इतनी जल्दी बड़ी हो जाओगी। पर ये तो बताओ, निम्मी को वो पसन्द है या नहीं?" जानकी ने धीरे से उसके कान में खुसफुसाया। उनकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी।
"पसन्द..? ना मम्मा ना…! प्यार करता है आपका लाड़ला इनसे, देखा नहीं कैसे बुरा सा मुँह बनाकर निकला है यहां से..! पर भगवान जाने कब उन्हें सद्बुद्धि आएगी और ये मेरी भाभी बनकर मेरे घर…!" जाह्नवी ने दाँत फाड़ते हुए चुपके से कहा।
"और फरी…!" जानकी ने फिर से पूछा।
"उसका कुछ क्लियर पता नहीं, वह इस बारे में मुझसे भी बात करने से कतराती है पर जिस तरह से हर वक़्त भाई की केअर करती रहती है, उससे साफ जाहिर है कि भाई उसे भी पसन्द है..! वैसे भी जिसके लिए कॉलेज की लड़कियां आपस में झगड़ लेती हैं, उसे हाथ से कौन जाने देगा..!" जाह्नवी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तब तो मुझे अभी ही फरी के मम्मी पापा से बात करना चाहिए…!" जानकी जी ने उत्सुकता से कहा।
"फरी के मम्मी पापा नहीं है मम्मा! मतलब मम्मी नहीं है, और पापा को ये पापा नहीं मानती, इसके अलावा उसने कुछ भी नहीं बताया। पर फिलहाल विक की फैमिली ही इसकी फैमिली है।" जाह्नवी ने बताया, यह सुनकर जानकी को बहुत आश्चर्य हुआ।
"ऐसा क्यों?" जानकी ने पूछा।
"पता नहीं मम्मा! सबके पास आप जैसे मम्मी पापा नहीं होते न! तो क्या इस वजह से आप उसे अपनी बहू स्वीकार नहीं करोगी?" जाह्नवी ने अपनी माँ की आँखो में झांकते हुए पूछा।
"बिल्कुल नहीं…!" जानकी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, यह सुनकर जाह्नवी को बेहद हैरानी हुई। "अब से वो इस घर की बहू है, चाहे कोई माने न माने..! किसी के पास कोई चीज नहीं है, इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि उसके पास वह चीज हो नहीं सकती, या वो उसके लायक नहीं है। हीरा भी तो कोयले की खान से निकलता है, इससे उसका मोल कम नहीं होना चाहिए!" जानकी ने लंबी साँसे भरकर हुए कहा। यह सुनकर जाह्नवी की खुशी दोगुनी हो गयी।
■■■■
निमय अपने छत के कोने पर खड़ा होकर आसपास के वातावरण को निहार रहा था, डूबते सूरज को देखना उसे बेहद पसंद था पर आज वह अपनी नजर जैसे जमीन में गाड़े हुए था। उसके आने के साथ ही फरी उसके पीछे पीछे चली आयी, मगर निमय ने उसकी ओर नहीं देखा, वह दीवार के सहारे चुपचाप खड़ा रहा।
"क्या हुआ आपको?" फरी ने बड़े प्यार से पूछा।
"कुछ नहीं! मुझे भला क्या होगा?" निमय ने संवेदनहीन स्वर में उत्तर दिया, यह देखकर फरी को बहुत बुरा लगा।
"मुझसे ये रुखाई क्यों? आपको पता है केवल आप ही हो जिससे कुछ कहने में मैं एक पल भी नहीं सोचती.. जानती हूँ नीचे बात नहीं कर पाई पर…!" फरी का मुँह बन गया था, उसका चेहरा उतर गया।
"मैं रूखा नहीं हूँ, न ही नाराज हूँ…!" निमय उसकी ओर घूमा, उसकी आंखें हल्की लाल हो गयी थी।
"कुछ बातें कहनी नहीं पड़ती निमय जी! कुछ दोस्त आंखों को भी पढ़ लिया करते हैं।" फरी उसे देखकर जबर्दस्ती मुस्कुराते हुए बोली।
"आपको पता है फरी जी, आप बस वही बताती हैं जो उसी दिन होता है, आपने अपने बारे में अबतक नहीं बताया। जितना मैं जानता हूँ आपकी आपके पापा जी से नहीं बनती और …!"
"उन्हें मेरा पिता मत कहिये निमय जी!" फरी की आँखे छलक उठी।
"आखिर क्यों? क्या हुआ है?" निमय से सख्त स्वर में पूछा। उसे फरी के आंसुओं को देखकर गुस्सा आने लगा था।
"कुछ चीज अतीत के गर्त में दबी हुई ही अच्छी लगती हैं निमय जी! बाहर आने के साथ ये वर्तमान को भी जख्मी कर देती हैं।" फरी ने लंबी सांस लेते हुए धीमे स्वर में कहा।
"मगर आप अपने उस जख्म को अतीत में नहीं रख पा रही हैं फरी जी! क्या एक साथी का ये फर्ज है कि वह अपने साथी के दर्द को समझे जाने और दूर करे!" निमय ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा, फरी की पलके भीग चुकी थी।
"कुछ जख्म ऐसे कांटे बन जाते हैं जिन्हें निकालने के चक्कर में चोट और गहरी हो जाती है निमय जी!" फरी उसके आंखों में देखती रही।
"तो फिर यकीन करो कि सारे जख्मो में हिस्से बराबर के होंगे…!" निमय ने उसके कंधे पर हाथ यखकर यकीन दिलाते हुए कहा।
"जाने क्यों ऐसा एहसास होता है जैसे आपसे कोई पुराना राब्ता है..!" फरी बुदबुदाई।
"क्या कहा?" निमय ने कान लगाकर सुनने की कोशिश की पर वह असफल रहा।
"कुछ नहीं…!" फरी ने शांत स्वर में धीरे से मुस्कुराकर कहा।
"मुझे आज सबकुछ जानना है फरी जी, आप मेरे ठीक होने तक ये बात टालती रही हैं, अब देखो मैं ठीक हूँ न, थोड़ा बहुत चल फिर भी लेता हूँ।" निमय ने उसकी ओर देखते हुए कहा।
"आप नहीं मानेंगे न निमय जी..!" फरी ने निमय की आंखों में उसकी अडिगता देखी।
"चांस ही नहीं है फरी जी!" निमय ने मुस्कुराते हुए कहा।
"जाह्नवी जी ने सही समझा था, मैं बहुत अमीर बाप की बेटी हूँ, पर वो इंसान सिर्फ मेरा बाप है, पापा नहीं! उस इंसान से मेरा सिर्फ इतना ही नाता है कि वो गलती से मेरी माँ का पति है। मेरे लिए वो हमेशा बड़े साहब ही हैं, उनका नाम "अभिनव राजपूत" है।" फरी ने बताना शुरू किया। उसके चेहरे पर एक दर्द की लकीर खींच सी गयी।
"व्हाट..? इतने बड़े बिज़नेस टाइकून की बेटी!" निमय की आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी।
"नहीं मैं उस बेसहारी माँ की बेटी हूँ जिसके आखिरी समय में उसका पति उसके साथ नहीं था, उस दिन मैंने उस इंसान को आखिरी बार पापा कहा था, उसके बाद कभी नहीं..! फिर………" फरी निमय को शुरुआत से सबकुछ बताती चली गयी, निमय जितना फरी को जानता गया, उसके दिल में उसके लिए जगह उतना ही अधिक बढ़ती गयी। "...अब मेरे पास विक्रम भाई, वैष्णव भाई, माँ-पापा सब हैं। आप के दोस्त भी मिल गए मुझे, अब कोई गम नहीं है मेरे पास..!" कहने के साथ फरी ने अपनी बात खत्म की, निमय ने अपने हाथों से उसके आंसुओ को पोछा।
"म..मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूँ…!" निमय कई तरह के भावों से घिर चुका था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे।
"मैंने किसी सहानुभूति के लिए ये सब नहीं बताया निमय जी! कन्हैया जितना देते हैं उतना काफी होता है, मैंने केवल अपने सबसे अच्छे दोस्त को अपनी बातें बताई है।" फरी ने जमाने भर की मुस्कान अपने होंठों पर सजाते हुए कहा।
"जानता हूँ फरी जी! आप बहुत बहादुर हो…. काश कि मैं आपसे पहले मिला होता।" निमय बेहद भावुक हो चुका था। उसे फरी पर गर्व महसूस हो रहा था।
"तब तो शायद आज हम दोस्त भी न होते…!" कहने के साथ फरी हँसने लगी, यह देखकर निमय झेंप गया। "क्या हुआ? बस मजाक ही किया था मैंने..!" फरी ने उसके उतरे हुए चेहरे को देखकर कहा।
"पागल हो आप भी!" निमय ने हँसते हुए कहा।
"और आप तो मुझसे भी बड़े पागल..!" फरी ने भी हँसते हुए कहा।
"ओ पागलों के अल्ट्रा मेगा वर्जन्स..! चलो अब नीचे.. यही रात बिताना है क्या?" उनके पीछे से जाह्नवी की आवाज आई, जिसके साथ विक्रम भी खड़ा था।
"देख लो आ जाते हैं बीच में लोग….!" निमय ने मुँह बनाया।
"हाँ तो…! चलो फरु..! अब तक मम्मा का पांच बार कॉल आ चुका!" हंसते हुए विक्रम ने निमय को देखते हुए कहा।
"जी भाई…!" कहने के साथ फरी उसकी ओर बढ़ी, निमय का चेहरा उतर सा गया।
"ऐसे रो क्यों रहा है भाई! घर से जा रही है, तुझसे दूर थोड़े…!" जाह्नवी ने आँख मारते हुए धीमे से कहा, यह सुनकर निमय ने गंदा सा मुँह बनाया, और उसके पीछे भागने की सोचा। पर वह अभी बस धीमे ही चल पा रहा था, थोड़ी ही देर में फरी और विक्रम सभी से विदा लेकर अपने घर को चले गए।
क्रमशः….
Seema Priyadarshini sahay
16-Feb-2022 04:25 PM
वाह, बहुत बेहतरीन
Reply
मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:14 PM
Bahut dhanyawad
Reply
Ekta shrivastava
15-Feb-2022 09:45 PM
Superbbbb 👏👏👏
Reply
मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:14 PM
Thank you so much ma'am
Reply