नज़राना इश्क़ का (भाग : 40)
"हाय फरी जी!"
निमय मैसेज करके काफी देर तक रिप्लाई आने के इंतेज़ार में बैठा रहा। दिन ढल चुका था, निमय ने आज छत चढ़ने में कुछ ज्यादा ही मेहनत कर दी थी, फरी की पूरी कहानी सुनने के बाद उसका उसके प्रति लगाव और अपनापन और अधिक बढ़ गया था। आज फरी उसकी नजर में एक रियल हीरो की तरह थी, जिसने अपनी पूरी लाइफ अपने अपनो के खिलाफ अकेले ही जंग लड़ी और फिर भी कभी अपने मुस्कान को कम नहीं होने दिया। उसका दिल भरा जा रहा था कि कहीं उसने उसके पुराने जख्मों को कुरेदकर गलत तो नहीं किया! उसके मन में ख्यालों के झोंके आ रहे थे, अब तक जवाब न आने के कारण उसके मन में डर और नकारात्मक विचारों की गणना में वृद्धि होती जा रही थी। सभी खा पीकर सोने चले गए, जाह्नवी ने उसके उदास चेहरे को नोटिस किया पर उसे लगा शायद फरु के चले जाने की वजह से आशिक़ का मुँह लटका होगा, इसलिए वह बिना कुछ पूछे अपने कमरे में चली गयी।
निमय के दिल की हालत अब वैसी हो गयी थी जैसी तेज आँधी के बाद जंगल की हो जाती है, वह जैसे उखड़ा बिखरा पड़ा था, जो कि उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। उसे लग रहा कि शायद वह जरूरत से ज्यादा सोच रहा है, बहुत ज्यादा ओवर रियेक्ट कर रहा है पर कही न कही उसकी इस सोच को आशंकाओं ने दबा दिया था। वह बुरी तरह से बेताब होने लगा, उसने कॉल करने की सोचा पर फिर उसे लगा कि ये सही नही होगा, उसने विक्रम को मैसेज किया।
"हाँ बोल हीरो कैसा है?" उधर से विक्रम ने पूछा।
"कुछ नहीं, बढ़िया हूँ यार!" निमय काफी देर तक सोचने के नाड जवाब दिया।
"ये तो मैंने पूछा ही नहीं कि क्या कर रहा है हाहाहा..!" विक्रम ने उसके जवाब को देखकर पूछा।
"अरे बस कर न यार, इतना डिटेल कौन देखता है, लगता है जानू का पूरा असर हुआ पड़ा है सब पे..!" निमय ने मुँह बना लिया। वह फरी के बारे में बात करना चाहता था पर अब वह पूछ ही नहीं पा रहा था।
"उसका असर तो सब पे हुआ है निम्मी! तू सबसे पहले उसी के इंफ्लुएंस में आया हुआ लगता है..!" विक्रम ने हंसते हुए कहा।
"शुक्र मना कि यहां हम दोनों बात कर रहे हैं, वरना अब तक तेरा क्या हाल हुआ होता..!"
"मेरा जो होता देख लेता, पर अपना सोच..! तेरे पास तो बोलने के लिए मुँह और चलने के लिए पैर ही नहीं बचते हाहाहा…!"
"तो क्या हुआ! टाइप करने के लिए हाथ की जरूरत होती हैं..!" निमय बड़े ही एटीट्यूड के साथ बोला।
"जा भाई..! तुम दोनों भाई बहनों से कोई न जीत सकता, मैं चला खाना खाने, तू भी आ जा..!" विक्रम ने मानो हार मान ही ली।
"ठीक है तू जा भाई, तुझे पता है कि मैं खा चुका हूँ।"
"तू कुछ भूल तो नहीं रहा है ना?" विक्रम ने ऐसे कहा, जैसे वह निमय के मन को टटोलना चाहता हो।
"तेरे खाने में मैं क्या भूलूंगा…! तू जा खा ले भुक्कड़…!" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाकर बोला।
"वाह जी, मुझसे पहले खाना तो जनाब ठूंस लेते हैं और भुक्कड़ मुझे कहा जा रहा है… सच में भगवान ये दुनिया अब हम जैसे शरीफों के रहने लायक नहीं रही..!" विक्रम ने ऐसे कहा मानों रोते हुए भगवान से शिकायत कर रहा हो।
"तू और शरीफ…? जा खाना खा ले वरना आंटी जी तेरी सारी शराफत निकाल देंगी…!" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा।
"हुंह तू और तेरी आंटी..! चैन से जीने नहीं देते मुझे मासूम को, कल मैं अपनी आंटी से शिकायत करूँगा..!" विक्रम ने भी मुँह बनाया।
"जा जा बोल दे…!" निमय ने चिढ़ाते हुए कहा।
"हाँ! जा ही रहा, वरना तेरी आंटी का मेरा जान खाना तय है…!" विक्रम ने फिर सड़ा सा फेस बनाया।
"राधे राधे वीक…!"
"जय श्री कृष्ण मंथ..!" कहने के साथ विक्रम ऑफलाइन हो गया। निमय फिर से फरी के मैसेज का इंतजार करने लगा, उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था, वह रह रहकर फोन की स्क्रीन ऑन करके देखते रहता, हरेक नोटिफिकेशन पे चौंककर फोन चेक करता, मानों फरी का ही मैसेज हो।
"हेलो निमय जी..!" थोड़ी देर बाद फरी का मैसेज आया, यह देखकर निमय को बेहद सुकून मिला।
"हाय..!" निमय ने लंबी साँस छोड़ते हुए मैसेज किया।
"सॉरी न! वो माँ के साथ किचन में काम करने लगी थी, और फोन रूम में ही रह गया था। इसलिए टाइम से रिप्लाई नहीं कर पाई प्लीज बुरा मत लगाइएगा…!" फरी ने पूरा रीज़न एक्सप्लेन करते हुए बताया।
"आप कैसी हो फरी जी?" निमय ने बाकी सब पर ध्यान न देते हुए पूछा, इस वक़्त वह भावुकता से भरा हुआ नजर आ रहा था।
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आप कैसे हो?" फरी ने मुस्कुराकर पूछा।
"मैं भी एकदम ठीक हूँ!" निमय ने जवाब दिया, पर उसके मन में जैसे कुछ अलग ही चल रहा था, उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि भावनाओ के आवेश में वह भावुक हो रहा है या फिर रूड..!
"नाराज हो मुझसे?" फरी ने सीधा सवाल किया।
"नहीं फरी जी…!" निमय ने रिप्लाई किया पर अब भी उसके दिमाग में कुछ अलग ही चल रहा था। "सॉरी..! मैं आपके पुराने जख्मों को फिर से हरा नहीं करना चाहता था पर.. आई एम रियली वेरी सॉरी फरी जी..!"
"हे…! क्या हुआ है आपको? मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं ठीक हूँ एकदम.. अब आप प्लीज ऐसा बिहेव मत करो, केवल आप ही हो जिससे मैं बिना झिझक के सबकुछ बोल सकती हूँ, इवेन जो बात मैं किसी से नहीं कह सकती वो भी आपसे बोल दिया करती हूँ। बस इस बात को इसलिए नहीं बता रही थी क्योंकि मुझे डर था कि आप कहीं ऐसे रिएक्शन न दें, दुखी न हो जाएं.. आप समझते नहीं हो बात को..!" फरी ने नाराजगी जताते हुए, बड़े प्यार से डांटते हुए कहा।
"सॉरी फरी जी..!" निमय बस इतना ही कह सका।
"हाँ! यही बोल लो आप, इसीलिए तो दोस्त हो आप मेरे, और सॉरी बोलो, अभी इतना कम है और हर्ट कर लो…!" फरी किसी छोटी बच्ची की तरह बिहेव करने लगी। यह देखकर निमय को बहुत बुरा लगा।
"नहीं फरी जी, मैं आपको हर्ट नहीं करना चाहता, आप सच में बहुत स्ट्रांग और बहादुर हो, मैं जानता हूँ, पागल नहीं तो…!" निमय ने समझाते हुए कहा।
"अच्छा…?" फरी ने आश्चर्य जताया। "और ये फरी जी फरी क्या लगा रखा है आपने, कितनी बार कहा है, फरु बोल लिया करो…!" फरी ने फिर मामूली नाराजगी जताई।
"ठीक है…!" निमय मुस्कुराया।
"क्या ठीक है?" फरी ने आँखे दिखाते हुए पूछा।
"फरु जी…!" निमय मुस्काया।
"सिर्फ फरु..!" फरी ने जिद की।
"सिर्फ फरु..!" कहने के साथ निमय हँसने लगा।
"आप बहुत गंदे हो सच में…!" फरी ने मुँह बना लिया।
"पर मैं तो रोज नहाता हूँ न..!" निमय ने आश्चर्य जताते हुए पूछा।
"फरु… मतलब सिर्फ और सिर्फ फरु… अपने निम की फरु.. निमफरु…!" फरी ने मैसेज किया पर अगले ही पल डिलीट कर दिया।
"फरु मतलब….!" निमय उसका मैसेज देख चुका था, उसकी खुशी दोगुनी होती गयी।
"कुछ नहीं, चलो अब आप सो जाओ…!" फरी ने बात बदलते हुए कहा।
"अच्छा ठीक है फरु…!"
"गुड नाईट निम…!"
"गुड नाईट फरु… राधे राधे..!"
"राधे राधे निम…!"
"हूँ…!"
"अब हूँ क्या जाओ सो जाओ..!"
"हूँ…!"
"फिर से हूँ.. अब क्या सुलाने आऊं?" फरी ने मुँह बनाकर कहाँ।
"हूँ…!"
"लगता है आप न नशे में हो, कब से हूँ हूँ किये जा रहे हो…!"
"नहीं… गुड नाईट फरु..!" कहने के साथ निमय ऑफ़लाइन चला गया।
◆◆◆◆◆
"हे डायरी…!
कैसी हो तुम?
पता है आज मैं काफी ज्यादा खुश हूं, और शायद थोड़ा दुखी भी, फरु के साथ जो कुछ हुआ वह बहुत बुरा था डायरी…! पर वह सच में बहुत बहादुर है, आज वो मेरी नजर में किसी सुपरहीरो से कम नहीं है, वो रियल हीरोइन है, जिसे लड़ना आता है दुनिया से..!
कभी कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे वो भी प्यार करती है मुझसे, फिर डर लगने लगता है कि कही वो बस दोस्त के रूप में परवाह न समझती हो, फिर कुछ उल्टा न हो जाये, मैं उसके इतना पास जाने के बाद उसे नहीं खो सकता डायरी.. किसी भी कीमत पर.. वो अब मेरी ज़िंदगी, मेरी सांस, मेरे जिंदा होने का एहसास बन चुकी है।
आज का पूरा दिन बेहतरीन रहा, दिन भर मैंने उसे नज़र भर के देखा, बातें न होने का मलाल था पर शाम को हमने खूब सारी बातें की, कभी कभी ऐसा लगता है कि काश मैं उसके पास रहता और ये सारा वक़्त रुक सा जाता…! शब्दों में ये कभी बता पाना मुश्किल है कि वो मेरे लिए क्या है, पर अब जो है वो मेरे जीने के लिए बहुत जरूरी है!
आज उसने कहा कि मैं उसे फरु कहूँ, उसने निम-फरु कहा! ये ऐसे ही है जैसे राधे-कृष्णा, सीता-राम, बस अंतर इतना है कि उसने अपना नाम जबरदस्ती पीछे घुसेड़ लिया, पर ये वादा है कि वो हमेशा मुझसे आगे ही रहेगी।
अब ये बेताबी सही नहीं जा रही है डायरी! मन में आता है कि अभी बोल ही दूं कि मुझे उससे कितना प्यार है, पर उसके सामने जाते ही जैसे ये शब्द कहीं दूर चले जाते हैं, गले से बाहर आने की हिम्मत ही नहीं करते, पर मैं ये कहकर ही रहूंगा, उसे बताकर ही रहूंगा कि वो मेरे लिए क्या है! वो मेरी ज़िंदगी है।
मैं अब और देर नहीं करूंगा डायरी! मैं बोलूंगा, मुझे बस बोलना ही है… फिर उसका जो भी जवाब होगा हमें मंजूर होगा।
और बहुत सी बातें हैं डायरी पर मैं सिर्फ फरु की बात ही करना चाहता हूँ।
'उसे बताना है मुझे कि वो मेरी ज़िंदगी है
उसके ही दम से चल रही सांस भी है
वो मेरा ख्वाब, ख्याल, एहसास सबकुछ
वही मेरी आशिक़ी, मेरी बंदगी भी है।'
#निमफरु
गुड नाईट डायरी, चलो अब सोता हूँ।
राधे राधे..!"
निमय अपनी डायरी को टेबल पर रखने के बाद अपने बिस्तर पर पसर गया और ये सोचने लगा कि आखिर वो फरी के सामने अपने दिल की बात कैसे कहेगा, वो उससे अपने दिल की बात कहने वाला है यह सोच सोचकर ही वह बेहद रोमांचित हुआ जा रहा था।
◆◆◆◆
इधर फरी अपने हाथ में डायरी लिए कुछ लिखने बैठी थी, उसके चेहरे पर जमाने भर की खुशी और संतोष नजर आ रहा था, मानों उसने दुनिया जीत ली हो।
"हेलो डायरी!
कैसी हो तुम..!
मैं तो एकदम अच्छी हूँ, पता है आज मैं निमय जी मतलब निम के घर गयी हुई थी, पूरे दिन वहीं रही, मम्मी जी तो एकदम कमाल हैं, सच कहूं तो आज ऐसा लगा जैसे भगवान ने मुझसे एक माँ छीनकर बदलें में दो दो माँ दे दिए हो, वो इतनी प्यारी हैं कि बस पूछो मत.. मुझे यकीन भी नहीं होता मैं आज इतनी सारी बात की।
और आज मैंने निम को सारी बातें बोल दी, मतलब वो नहीं… जो उनको कब से जानना था, महीने भर से, सबकुछ…!
बहुत दिन बाद आज सुकून मिला है, पर मुझे कुछ और भी चाहिए, शायद निम… शायद क्या पक्का ही..! मैं जानती हूँ कि मैं कुछ ज्यादा ख्वाहिश रखने लगी हूँ, ज़िंदगी ने अब जाकर मुझे बहुत कुछ दिया, पर मुझे चाहिए..
ये दिल उनके सामने आते ही जोर से धक धक करने लगता है, एक कसक सी महसूस होने लगती है दिल में… मुझे उनसे अपने दिल की बात कहनी ही होगी.. पर मुझे उनके मुँह से सुनना है, मैं बता नहीं सकती इसका मुझे कितनी बेसब्री से इंतेज़ार है।
'मुझे इंतेज़ार है, आखिर किसी दिन तो वो कहेगा ही.. कि बेपनाह इश्क़ है उसको हमसे..!' अपनी डायरी में लिखते हुए फरी ने अपने चश्मों को उतारकर टेबल पर रख दिया, उसके होंठो पर यूँ मुस्कान खिल गयी थी, मानो मुरझाता हुआ सूरजमुखी का फूल, सूरज के बाहर निकलते ही खिल उठा हो।
उसने फिर कलम उठाया और आगे लिखने लगी "आखिर क्या ये जो कसक है, ये जो दर्द है, यही बाकी रह जाएगा या दोनों जहां की खुशियां होंगी नजराना इश्क़ का!"
दुनिया की सारी प्रेम कहानियां अधूरी रह जाएं ऐसा जरूरी तो नहीं है ना डायरी.! हमारी कहानी मुकम्मल होकर रहेगी, बस कान्हा जी से प्रार्थना है कि वे मेरे निम को सिर्फ मेरे नाम ही लिख दें..!
छोड़ो, ऐसा लगता है जैसे मैं तुम्हें पका रही हूँ, पर तुम अब भी मेरी बेस्ट फ्रेंड हो डायरी, बस निम और जानू के बाद…!
गुड नाईट डायरी.. निम को तो कब का सुला दिया, पता नहीं क्या सोच रहे होंगे वो कि ये कितनी पागल लड़की है, लास्ट मैसेज देखा भी नहीं उन्होंने…! चलो मैं भी सो जाती हूँ।
राधे राधे…!"
डायरी बंदकर फरी ने उसे वापिस हैंडबैग में रख लिया और सोने की कोशिश करने लगी।
क्रमशः…..
सिया पंडित
21-Feb-2022 04:42 PM
Nice story
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मनोज कुमार "MJ"
23-Feb-2022 10:15 PM
Thank you so much ❤️
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