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रहस्य मरूभूमि का-भाग 2(उपन्यास लेखन प्रतियोगिता )



रहस्य मरुभूमि का --भाग -2

बाहर बारिश हो ही रही थी।अकेला पन हर दुख का बुनियाद होता है।

रमाजी अपने पति श्रीविजय जी को याद करतीं रोने लगीं थीं।

रुपा का काम हो चुका था। वह घर जाने को तैयार हुई तो रमाजी को रोते देख रुक गई

,,आंटी जी आप रो रही हो, मगर क्यों ?,,

,,नहीं रे..।,,वो कुछ आँखों में चला गया था..प्याज काटा था  न तो उसी का रस..!!,,रमाजी सफाई देती हुई अपनी आँखें पोंछती हुई  बोलीं।

,,अच्छा आंटी जी  दरवाजे बंद कर लेना।अब मैं शाम को आऊंगी।,,

,,ठीक है बेटा।,,रमाजी उठकर दरवाजा बंद करके वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गईं।

बाहर बारिश काफी तेज हो चुकी थी। रमाजी का दिल भी बरस

दोपहर में राधिका यानी विमल की छोटी बुआ और रुचि यानी विमल की बड़ी बहन सभी आने वाले हैं।

,,अब 12:00बजने जा रहे हैं।चंदा  आ जाए तो खाने की तैयारी शुरू करूँ..!!,,

उनका मन कर रहा था कि विमल उठकर उनसे कुछ बातें करे ।थोड़ा हाल चाल सुनाए..पर वो तो घोड़े बेचकर सो रहा है बस...!!
थोड़ी बहुत बातें करने से मन भी हल्का हो जाता है।
..अब कल को नौकरी करने लगेगा तो फिर  कब बात चीत होंगी..

अच्छा है..18-20घंटों के सफर के बाद वह घर पहुंचा है तो आराम तो करेगा ही..!!

रमाजी के मन में कई खयाल आ जा रहे थे।

उसी समय रमाजी की ननद राधिका और बिटिया रुचि आते हैं।

राधिका बंजारा अपार्टमेंट में ही  दूसरी बिल्डिंग में रहती हैंऔर बेटी रुचि का विवाह भी दिल्ली में ही हुआ है।
तीनों बैठक में बैठकर गप्पें करने लगती हैं।

उधर विमल अपने कमरे में एकदम गहरी नींद में सोया हुआ है।

गहरी नींद में वह सपने देखने लगता है...
....
...दूर दूर तक फैला अनंत रेत का समुद्र...हवा के वेग से काँपती हुई रेत राशि काँपती हुई लहरों का ही आभास दे रही हैं।
चारों तरफ रेत ही रेत..उसपर आग उगलता सूरज मानों पल भर में सबकुछ जलाकर भट्टी बना देगा..।
विमल उन्हीं जलते हुए रेत पर खड़ा है...प्यास से उसका कंठ सूखता जा रहा था...।पल भर में रेत की आँधियाँ चलने लगीं।मानो कि आज विमल की समाधि वहीं बन जाएगी..!!
...मुझे बचाओ...!!...मुझे बच़ाओ...!!,,विमल जितना भागना चाहता रेत के दलदल में धँसता जाता..!!
अचानक वह उठकर भागने लगता है।उसके पैरों में शक्ति आ जाती है..और वह बहुत ही वेग से आगे बढ़ता जाता है और अचानक गहरे समुद्र में गिर जाता है..!!
समुद्र का खारा पानी उसके आँख मुँह सबमें चला जाता है....

वह तिलमिलाते हुए उठता है..

,,अर...रे...!! विमल बहुतही ज्यादा चौंक जाता है..।

...मैं तो यहां अपने कमरे में हूं...वो तो एक सपना था।

विमल अपने दोनो हाथों को अपने चेहरे से छुपाकर अपने सपने का मंथन करने लगता है..।प्यास अब तक उसे लगी थी.

तभी ड्राइंगरूम से बुआ और रुचि के हँसने और बातचीत की आवाज सुनाई देती है तो फिर वह फ्रैश होने वाशरूम की तरफ बढ़ जाता है।

***
स्वरचित
सीमा...✍️✨
©®
सर्वाधिकार सुरक्षित

क्रमशः
#लेखनी उपन्यास लेखन प्रतियोगिता


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1 Comments

Ashant.

22-Mar-2022 01:02 AM

Nicely written

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