ये कैसी मज़बूरी - लेखनी प्रतियोगिता -18-Feb-2022
येकैसी मज़बूरी
उफ़ ये कैसी मज़बूरी है
आदमी की आदमी से दूरी है
धनी राज कर रहे महलों में
निर्धन तड़प रहे सड़कों पर
कटते महल बनाने वाले हाथ
देता नहीं कोई उनका साथ
क्यों भाग्य में लिखी मज़दूरी है
उफ़ ये कैसी मज़बूरी है।
पाँवों में फटी बिवाइयाँ
दुखते हाथों में छाले हैं
उस झोपड़ी में बसे हुए
बहते जहाँ से नाले हैं
खाने को है सूखी रोटी
नसीब ना होती दालें हैं
मुँह खोलने पर उनकी
उधेड़ी जाती खालें हैं
हृदय द्रवित हो जाता है
देख दुर्दशा श्रमिकों की
न जाने क्यूँ इस दुनिया में
आज भी इंसानियत अधूरी है
उफ़ ये कैसी मज़बूरी है।
खून चूसकर निर्बल का
कराते उनसे अपना गुणगान
करते मूर्ति पूजा और दान
पंडितों को खिलाते पकवान
भूखा तड़पता गरीब बालक
बिलख बिलखकर निकलते प्राण
ऐसे अत्याचारी को
समाज में मिलता है सम्मान
न जाने मानवता पर
कौन चलाता छूरी है
उफ़ ये कैसी मज़बूरी है।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तरप्रदेश
Abhinav ji
19-Feb-2022 09:20 AM
Nice
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Dr. Arpita Agrawal
19-Feb-2022 01:31 PM
Thanks Abhinav ji
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Shrishti pandey
19-Feb-2022 08:39 AM
Nice one
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Dr. Arpita Agrawal
19-Feb-2022 01:30 PM
Thanks Srishti ji
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Punam verma
19-Feb-2022 07:59 AM
Nice
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Dr. Arpita Agrawal
19-Feb-2022 08:07 AM
Thanks पूनम जी
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