नंदनवन का दर्द
नंदनवन का दर्द
आज नंदन वन में बहुत गहमा गहमी थी, सभी सुबह से ही तैयारी में जुटे हुए थे। होते भी क्यों नहीं, आज जंगल के महाराज शेर सिंह ने एक महासभा जो बुलाई थी।
पिछले पांच दिनों से हरियल तोता और रंगा सियार घर घर जा कर सबको महाराज का पैगाम जो दे रहे थे।
पूरे जंगल में ही उत्सव का सा माहौल था, सभी छोटे बड़े जानवर उत्सुकता से इस महासभा में जाने की तैयारी में जुटे हुए थे।
11 बजते बजते सभी जंगल के बीचों बीच निर्धारित स्थान पर इकट्ठा हो चुके थे।
सब अपनी अपनी अटकलें लगा रहे थे, ना जाने आज महाराज कौन सा नया ऐलान करने वाले हैं।
चीकू खरगोश, कट्टो गिलहरी, हाथी काका, भालू मामा, चतुर लोमड़, लंबू जिराफ, कालू तेंदुआ, बिल्ली मौसी, रंगा सियार, हरियल तोता अपने अपने विचार रख रहे थे।
उधर पेड़ पर बैठा काना कव्वा, भूरा उल्लू, राज हंस, बतख इत्यादि भी कुछ कुछ बोल रहे थे।
कुल मिला कर चारों ओर एक कोलाहल मचा हुआ था।
कुछ देर बाद राजा शेरसिंह के मुख्यमंत्री चीतानंद अपने सलाहकार मोती बंदर और हंसमुख चिम्पांजी के साथ आ गए।
चीतानंद ने जोर से गरज कर सभी जानवरों का स्वागत किया और साथ ही ऐलान भी, महाराज शेर सिंह और महारानी शेरनी जी कुछ ही देर में सभा में पहुंचने वाले हैं।
आप सब लोग थोड़ा शांत हो जाइए, आज हम सब यहां एक खास मुद्दे को लेकर विचार विमर्श करना चाहते हैं।
चीतानंद की धीर गंभीर वाणी सुन कर सारे जानवर खामोश हो गए और उत्सुकता से महाराज शेर सिंह और उनकी महारानी का इंतजार करने लगे।
तभी चतुर सियार ने अपनी चितपरिचित वाणी में एक जोरदार हुआं हुआं से महाराज के आने का संकेत दिया। सभी जानवर महाराज के स्वागत में खड़े होकर अपनी अपनी बोली में महाराज की जय घोष करने लगे।
पूरा नंदन वन उनकी इस जयघोष से गूंज उठा।
सामने बने ऊंचे आसन पर छलांग लगा कर महाराज और महारानी ने अपना स्थान ग्रहण किया और फिर जोर से दहाड़ कर महाराज शेर सिंह और महारानी ने सबके जयघोष का धन्यवाद किया।
चीतानन्द के इशारे पर सब शांत होकर महाराज के बोलने की प्रतीक्षा करने लगे।
महाराज शेर सिंह ने आगे बढ़ कर अपनी धीर गंभीर वाणी में बोलना शुरू किया।
"प्यारे नंदनवन वासियों, उम्मीद है आप सभी लोग सकुशल होंगे।
साथियों आज हम सब यहां एक गंभीर मुद्दे पर बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं।
जैसे आप सब जानते हो हमारे पूज्य पिताजी और दादाजी के समय में नंदन वन एक हरा भरा और विस्तृत विशाल वन था, जिसमे तरह तरह के पेड़ पौधे,नदियां, तालाब, झरने और हजारों किस्म के जीव जंतु हमेशा से रहते आए हैं।
पर अब पिछले कुछ समय से हमारा ये प्यारा सा वन, हमारा ये घर दिनो दिन छोटा होता चला जा रहा है। हमारे गुप्तचरों ने हमे बताया है कि मानवों की बढ़ती संख्या और उनकी बढ़ती जरूरतों की वजह से हमारा ये घर धीरे धीरे समाप्त होता जा रहा है।
अगर हमने अभी से ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाले समय में नंदन वन का नामों निशान ही मिट जायेगा।
दरअसल नंदनवन ही नहीं दुनिया के बहुत से ऐसे जंगल हैं जो मनुष्य के लालच और उसकी छोटी सोच की वजह से कम होते चले जा रहे हैं।
जानते हो, 1990 से आज तक पूरी दुनिया के करीब 420 मिलियन हेक्टेयर जंगल खतम हो चुके हैं। हमारी ये पृथ्वी जिस का 30% से ज्यादा हिस्सा जंगल थे वो तेजी से घट रहे हैं।
आप सभी को जान कर हैरानी होगी 2019 में करीब 30 फुटबाल मैदान के बराबर जंगल हर एक मिनट में इंसानों द्वारा तबाह कर दिए गए।
ऐसे में सोचो अगर आज और अभी से हमने कदम नहीं उठाए तो इसका कितना भयंकर परिणाम होगा।
क्या आप सब अपने इस घर को बरबाद होने दोगे।
नहीं...... कभी नही..... ये जंगल हमारा घर ही नहीं हमारी माता और पिता भी है, हम इसे मिटने नहीं देंगे.... सभी जानवर करतल ध्वनि से बोल पड़े, इसके साथ ही सब आपस में भी बात करने लगे।
शांत हो जाओ, चीतानंद दहाड़ कर बोला, महाराज की बात ध्यान से सुनो सब।
पूरी सभा में खामोशी छा गई।
देखो अगर हम अपने इस घर को बचाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमको जानना होगा की नुकसान कहां से हो रहा है और हम उसे कैसे रोक सकते हैं, शेरसिंह ने कहा।
आप सभी लोग जानकार हो इसलिए बारी बारी से अपनी जानकारी सबके साथ साझा करो, महाराज शेरसिंह बोले।
जी महाराज, अगर इजाजत हो तो मैं कुछ बताना चाहूंगा, मोती बंदर बोला।
हां तुम तो इंसानों को बहुत करीब से जानते हो, तुम और हंसमुख तो उनके पूर्वज ही माने जाते हो, वैसे भी तुम बहुत बार शहर भी आते जाते हो, इसलिए मुझे लगता है इस विषय पर तुम्हारे और हंसमुख के विचार हम सभी को अच्छी जानकारी देंगे, महाराज शेर सिंह बोले।
जी महाराज, मैं आप सभी को अपनी पूरी जानकारी देने की कोशिश करूंगा,मोती बोला।
इंसानों की बढ़ती आबादी, जंगलों के विनाश का सबसे बड़ा कारण है। ज्यों ज्यों इंसानी आबादी बढ़ती जा रही है, उनकी अनाज की जरूरतें भी बढ़ती जा रही हैं, इसलिए वो लोग अधाधुंध पेड़ों को काट कर ज्यादा जमीन पर अनाज उगाने की कोशिश में लगे हैं।
दूसरी तरफ एक बड़ा हिस्सा पशु पालन के लिए जंगलों को साफ करके उसमे बड़े बड़े चारागाह बनाना चाहता है, इसलिए भी बहुत से जंगल काट दिए जाते हैं।
और तो और हुजूर आज भी 2.6 बिलियन के करीब लोग जंगल काट कर उसकी लकड़ी का इस्तेमाल खाना बनाने या फिर घरों को गर्म रखने में करते हैं।
बहुत सी जगह जंगल इसलिए भी काटे जा रहे हैं क्योंकि इंसानों के घरों में लकड़ी का फर्नीचर और काफी सारा सामान लकड़ी से ही बनाया जाता है।
और कहीं सड़कों, बस्तियों के विस्तार के लिए भी जंगल काट दिए जाते हैं। और तो और बहुत जगह क्यूंकि जंगलों में खनिज और दूसरे मूल्यवान पदार्थ जैसे तेल, हीरे, सोना , जस्ता या फिर लोहा जमीन में होता है तो उसे पाने के लिए भी इंसान जंगल काट देता है।
दुनिया में लाखों हेक्टेयर जंगल हर साल आग की भेंट चढ़ जाते है, जिसकी वजह भी कहीं न कहीं इंसानों की गलतियां या फिर दूसरे कारण होते हैं। याद है न दो साल पहले अपने नंदन वन में भी ऐसी ही भीषण आग लगी थी, जिसमे हजारों पेड़ों के साथ साथ हजारों मासूम जानवर भी बेमौत मारे गए थे, और इस सब का कारण था किसी इंसान द्वारा जला कर छोड़ी गई आग।
इसके अलावा भी हर साल नदियों में बाढ़ आती है, जो मीलों जंगलों में तबाही मचाती है और बहुत से हमारे साथियों को जलसमाधि भी देकर जाती है।
मोती, सांस लेने के लिए रुका।
पर मोती भैय्या, बाढ़ आने में इंसान का क्या योगदान, जरा खुलासा कर के बताओगे, चीकू खरगोश बोला जो बड़े ध्यान से मोती की बातें सुन रहा था।
मैं बताता हूं, हंसमुख आगे बढ़ कर बोला।
हां हंसमुख भैया आप ही बताओ वैसे भी आप मुझ से बड़े हो, मोती बोला।
हम्म, हंसमुख अपने मुस्कुराते हुए अंदाज में बोला, बाढ़ आने के बहुत से कारण हैं।
जंगलों के काटने से किसी भी स्थान का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिसकी वजह से कहीं कम तो कहीं ज्यादा बारिश होती है, इसका सीधा सा मतलब है कहीं सूखा पड़ता है तो कहीं बाढ़ आती है।
पेड़ों के कटने से जमीन का कटाव भी शुरू हो जाता है, ज्यादा पेड़ होने का मतलब हैं ज्यादा बारिश का पानी जमीन में रिसाव होना, यानी की पेड़ अधिक पानी को जमीन के अंदर सोखने में भी मदद करते हैं।
इंसानों की वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है, उनके घरों में जलने वाला ईंधन, उनकी गाड़ियों, उद्योगों से फैलने वाला प्रदूषण, वातावरण में हानिकारक गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड का ज्यादा उत्पादन कर रहा है, दूसरी तरफ पेड़ कम हो रहे हैं, ये तो सब जानते हैं पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को सोख कर वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। तो सोचो घटते जंगल और बढ़ते प्रदूषण का दुष्परिणाम यानी हानिकारक गैसों का ज्यादा बढ़ जाना।
इन खतरनाक गैसों की वजह से पृथ्वी का तापमान भी बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से मौसमों के संतुलन पर भी बहुत फर्क पड़ रहा है।
याद है न पहले सर्दियां, सितंबर से लेकर मार्च तक रहती थी, पर अब देखो ना दिसंबर के आखिर में आती हैं और फरवरी तक गायब।
जानते हो जब जंगल काटे या लकड़ियां जलाई जाती हैं तो बजाय कार्बन सोखने के वो वातावरण में कार्बन बढ़ा देते हैं। जंगलों के कटने से 15% से भी ज्यादा ग्रीन हाउस गैस पैदा होती है, हंसमुख एक गहरी सांस लेते हुए बोला।
समझ गया हंसमुख भैया, चीकू मुस्कुराता हुआ बोला।
हाथी दादा ने आगे बढ़ कर कहा, मैं भी कुछ कहना चाहता हूं।
हां हां.... हाथी दादा आप तो हम सबसे बड़े हैं, आप भी कुछ कहिए, महाराज शेर सिंह बोले।
जी महाराज, दुनिया के करीब 1.25 बिलियन लोग जंगलों पर अपनी जीविका, रहने के घर, खान पान सुरक्षा और ईंधन के लिए निर्भर हैं और तो और करीब गांव में रहने वाले 20% यानी करीब 750 मिलियन लोग तो रहते ही जंगलों में हैं। पर फिर भी इंसान अपने लालच में अंधा होकर बजाय जंगलों को बचाने के उनका विनाश करने में लगा हुआ है।
यहां तक कि उसे मालूम है उसके इसी लालच की वजह से बहुत से वनस्पति और जीव जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं।
अब हमको ही लो, हमारे दांत के लिए हर साल हजारों को मारा जाता है, शेर चीतों की खाल के लिए शिकार किया जाता है, बेचारा गैंडा उसके बालों से बने सींग के लिए उसे मार डाला जाता है।
वहीं चंदन जैसी लकड़ी को चोरी से काट कर बेचा जाता है।
इंसान भूल जाता है प्रकृति ने ये धरती हम सभी के रहने के लिए बनाई है और सब के रहने से ही प्रकृति का संतुलन है, वरना देखो ना पिछले कुछ सालों में, तूफान, बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी इत्यादि कितनी सारी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ती ही जा रही हैं।
यदि हम ऐसे ही अपने जंगलों को खोते रहे तो शीघ्र ही ये धरती किसी भी प्राणी के रहने लायक नहीं बचेगी। वैसे भी ग्लोबल वार्मिग की वजह से ग्लेशियर खत्म होते जा रहे है, समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है, जमीन ऊसर होकर रेगिस्तान में बदल रही है, नदियां इत्यादि प्रदूषित हो रही हैं।
विश्व के कई देशों में पीने के पानी की समस्या विकट होती जा रही है।
ज्यादा दूर क्यों जाएं, अपने नंदनवन में ही कितनी झीलें और तालाब नदियां इत्यादि अब सूख चुकी है। और इस सब के लिए जिम्मेदार हैं ये प्रकृति का दोहन और घटते वन।
महाराज शेर सिंह ने आगे बढ़ कर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
अच्छा अब ये बताओ हम सब को करना क्या होगा।
जी महाराज, मैं कुछ कहूं, भालू मामा बोले।
हां हां कहिए, महाराज शेर सिंह बोले।
महाराज, इसका सीधा सा उपाय है, हमें एक तरफ पेड़ों को नष्ट होने से बचाना है और दूसरी तरफ नए पेड़ ज्यादा से ज्यादा लगाने होंगे।
मुझे लगता है, इस काम में कट्टो गिलहरी का योगदान सराहनीय रहा है। हर साल ये और इसके परिवार वाले जहां तहां बीज छुपा देते हैं और फिर भूल जाते हैं इसलिए हर साल बहुत सारे फलदार पौधे नंदनवन में उग आते हैं।
सभी ने तालियां बजा कर कट्टो का अभिवादन किया।
महाराज मुझे लगता है, नंदनवन के बहुत सारे पक्षी भी इस काम में अपना सहयोग देते हैं, बहुत सारे पंछी फल का बीज खा जाते हैं और फिर अनकी बीट में बीज जहां तहां गिरते हैं और उग जाते हैं।
मुझे लगता है चूहों और छछुंदर को भी गिलहरी और पक्षियों की मदद करनी चाहिए।
हमें नदियों, तालाबों के किनारे पर बहुत से पेड़ लगाने चाहिए जिस से उनकी संख्या भी बढ़ेगी और बाढ़ की रोकथाम भी होगी।
साथ ही हिरण, चीतल, हाथी काका जैसे शाकाहारी जानवरों को ध्यान रखना होगा की वो छोटे पौधों को पनपने दें और उन्हें न चरें, ताकि समय के साथ वो बड़े पेड़ों में तब्दील होकर जंगल की शोभा बढ़ा सकें।
इसके अलावा हमको एक खास दल का निर्माण करना होगा जो समय से पौधों की सिंचाई का काम करे ताकि नन्हे पौधे धूप में न मुरझाएं।
हमे नंदन वन में एक प्रतियोगिता भी रखनी चाहिए, जिसमे अधिक पेड़ लगाने वाले प्राणी को वन श्री का पुरुस्कार दिया जाए।
हम जरूरतों को तो नहीं रोक सकते पर अधिक पेड़ लगा कर और सभी को इस दिशा में जागरूक करके जरूर आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी इस मातृभूमि को रहने के लिए एक उत्तम स्थान बना सकते हैं, भालू मामा ने अपना वक्तव्य खतम किया।
अंत में महाराज शेर सिंह ने सबका धन्यवाद किया और कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं भी की।
1. कट्टो गिलहरी को उसके योगदान के लिए वन श्री का पुरुस्कार दिया गया।
2. चीतानंद और हंसमुख की अगुवाई में वृक्षारोपण का एक वृहद कार्यक्रम बनाने की घोषणा की गई।
चतुर लोमड़ और उसके परिवार को सिंचाई का काम सौंपा गया
3. हाथी दादा और भालू मामा को वन आरक्षण का कार्यभार संभाल दिया गया।
इस तरह से नंदनवन को एक बार फिर से हरा भरा और विस्तृत करने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।
यही नहीं काना कव्वा, हरियल तोता और भूरे उल्लू सहित सभी पक्षियों को आसपास के जंगलों, गावों, शहरों में भी यह संदेश पहुंचाने की जिम्मेदारी संभाली गई।
महाराज शेर सिंह को पूरा यकीन है कि सभी जानवर और इंसान जंगलों को बचाने में अपना सहयोग जरूर देंगे।
समाप्त
आभार – नवीन पहल – १९.०२.२०२२ ❤️❤️🙏🏻🙏🏻
# वार्षिक कहानी प्रतियोगिता हेतु
Astha Singhal
25-Feb-2022 07:54 AM
बेहद खूबसूरती से आपने कम हो रहे जंगलों की समस्या का निदान बताया। आपकी कहानी पढ़कर एक बार फिर चंपक पढ़ने का मन हो आया।
Reply
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
24-Feb-2022 11:50 PM
वाओ सर😍 इस जंगल के टॉपिक पर आपने एक बोरिंग सा लेख लिखने की जगह, इतनी क्यूट स्टोरी लिखी🥰🥰 एक एक जानवर का नाम तक बड़ा प्यारा है। और सभी जानवरो ने बडे अच्छे से जंगल की सारी समस्याएं बताए और समाधान पर भी लग गए👌👌 एक बालकथा के रूप में आपने ये कहानी पेश करके काफी अच्छा किया। इससे जिन शहरियो को इस बारे में नही पता, उन्हें काफी अच्छे से पता लगेगा। आपने कहानी के माधयम से ही लेख का सारा ज्ञान दे दिया😂 वैसे ये कहानी लिखने के लिये गूगल बाबा की काफी हेल्प लेनी पड़ी होगी आपको🤔🤔
Reply
Zakirhusain Abbas Chougule
20-Feb-2022 12:22 AM
बहुत खूब
Reply
नवीन पहल भटनागर
20-Feb-2022 12:57 PM
शुक्रिया
Reply