लेखनी- कविता-देखा नहीं जाता -21-Feb-2022
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✍️देखा नहीं जाता✍️
ऐसा बचपन देखा नहीं जाता,
रोता-बिलखता व सिसकता,
मेले-कुचले अधनंगे कपड़ों में,
बचपन जीत वो अभावों में,
सड़क किनारें फुटपाथ पर,
गुजर-बसर करता हुआ,
कोई दुध को तरसता,
कोई भूख को तरसता,
कोई माँ के आँचल को तरसता,
ऐसा बचपन देखा नहीं जाता,
शिक्षा पाने की उम्र में,
स्कूलों में जाने की बजाय,
घर-खेत और फैक्ट्रियों में,
वो करता हैं मज़दूरियाँ,
बचपन बना बाल बधुआ मजदूर,
पीढ़ी दर पीढ़ी यूहीं सह रहा हैं,
अपने अनुभवों में जी रहा हैं,
वो अपने आक्रोश को पी रहा हैं,
तभी तो मासूम बन रहें हैं बाल अपराधी,
ऐसा मंज़र देखा नहीं जाता,
अभावों में जीता हुआ ,
ऐसा बचपन देखा नहीं जाता !!
✍🏻 वैष्णव चेतन"चिंगारी" ✍️
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा
11/05/020
Arman
01-Mar-2022 11:58 AM
बहुत ही सुंदर रचना
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Lotus🙂
25-Feb-2022 02:48 PM
Behtarin
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Ali Ahmad
22-Feb-2022 01:51 AM
👌👌👌
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वैष्णव चेतन"चिंगारी"
22-Feb-2022 03:40 PM
🙏🙏🙏🙏
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