Anu koundal

Add To collaction

बचपन

समाज से दूर ,
अनोखा है वह जहान ।
जहाँ न समझदारी,
 न अक्ल का कोई काम।
 गंदगी में भी मदमस्त रहना,
 यही तो है बचपन का नाम।

 न चिंता कामकाज की 
 किसको पड़ी मिजाज़ की,
 सुबह से निकले भूले भटके ,
ना फ़िक्र किसी अंजाम की ।

भविष्य की न कोई चिंता,
 न किताबों से ताना-बाना था।
 यही तो है बचपन,
 जो बड़ा ही सुहाना था।


"अनु कौंण्डल"

   24
8 Comments

Marium

01-Mar-2022 04:34 PM

Nice

Reply

Madhu Koundal

23-Feb-2022 09:31 AM

बहुत अच्छा

Reply

Punam verma

23-Feb-2022 09:30 AM

Very nice

Reply