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नज़राना इश्क़ का (भाग : 47)





रात गहराती जा रही थी, मगर नींद निमय की आँखों से कोसों दूर थी। कभी कभी सब पाने की कोशिश में इंसान वो भी खो देता है जो उसके पास रहता है। निमय ने अपना फ़ोन अलमारी में रख दिया था।  रह रहकर निमय को बार बार अफसोस हो रहा था तो कभी ये सोचकर थोड़ी राहत पा लेता कि आज नहीं तो कल तो ये होना ही था, पौधा अगर कच्ची उम्र में कुचल दिया जाए तो उतना अफसोस नहीं रहता जितना उसके परिपक्व होने के बाद काट दिए जाने पर होता है।

निमय को रह रहकर फरी का चेहरा, उसकी बातें, उसके साथ बिताए पल याद आ रहे थे, ये पूरा एक दिन उसकी जिंदगी का सबसे लंबा दिन था। आज उसे एक एक सेकंड में सैकड़ो साल जैसा महसूस हो रहा था। उसकी आँखों के सामने से गुजरता हर एक अक्स उसे और कमज़ोर बनाते जा रहा था। इसी कारण से उसका सिर दर्द हद से ज्यादा बढ़ने लगा था मगर कोई परेशान न हो इसलिए वह दवा खाकर सोया हुआ था। बहुत कोशिश करने के बाद भी उसे कोई राहत न हुई, नींद ने जैसे आज न आने का पक्का निश्चय कर लिया था, और खुली आँखों ने बस भयंकर सपने दिखाना बन्द नहीं किया। वह बार बार राधा कृष्ण के बारे में सोचता, उनके प्रेम को जानने की, समझने की कोशिश करता मगर वह इस समय असहाय था, उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी। सिर दर्द के मारे फटा जा रहा था और सीने की जलन बढ़ती जा रही थी, यह जलन बार बार पानी पीने पर भी कम नहीं हो रही थी। उसने अपनी आँखें बंद की और सारी शक्ति प्रेम को समझने की कोशिश में जुटा दी।

'हे राधे! आप तो प्रेम की मूरत हैं। आपने प्रेम की जो मिशाल दी वह अद्वितीय है, मगर यहां मैं मीरा होता जा रहा हूँ, और मुझे विष के प्याले से जाने क्यों डर लग रहा है। मैं नहीं जानता कि मैंने अपने दिल की बात कहकर कोई गलती क्या या नहीं, पर अगर यही तय था तो यह तो होना ही था। फिर भी मुझे इसका अफसोस क्यों हैं? प्रेम में प्रेम से ज्यादा शोक और अश्रु क्यों है? क्या प्रेम में दया और करुणा की अनिवार्यता नहीं है? 

मैंने अपने दिल की हर बात उसे बताई, पता भी नहीं चला कि कब वो मेरे इतने करीब हो गयी कि मुझमें उससे अपने दिल की बात कहने की हिम्मत आ गयी, मैं कई दिन से लगातार कोशिश करता रहा पर उससे कह नहीं पाया। और फिर मैंने जब कैसे भी करके अपने दिल की बात उससे कह दी तो मुझे बेहद सुकून मिला, पर ये सुकून इतना दर्द साथ लेकर आएगा इसका कोई अंदाजा नहीं था। 

राधे! मैंने बचपन से आपको और कन्हैया को एक साथ पूजा है, आपका प्रेम मेरे लिए आदर्श रहा है, आपने हर कठिन राह पर मेरी मदद की है, मुझे चलना सिखाया है। आज भी मुझे रास्ता दिखाओ माँ! मुझे प्रेम सिखाओ… और मुझे इतना निर्भीक बना दो कि चाहे अब ये प्रेम मिले न मिले मैं जीवनभर उससे प्रेम कर सकूं। ये रात बहुत लंबी है माँ… पर बीत ही जाएगी। मुझे बस इतनी ताकत देना कि मैं हर वक़्त मुस्कुरा सकूं, मैं नहीं चाहता कि मेरी बहन पर मेरे इस असफल प्रेम का कोई प्रभाव पड़े..! माफ करना माते.. मुझसे गलती हो गयी.. प्रेम कभी असफल नहीं होता, असफल तो प्रेमी या प्रेमिका होते हैं, पर मैं असफल नहीं होऊंगा मैं हर हाल में, हर दशा में अपने प्रेम को जीवित रखूंगा।' 

निमय को धीरे धीरे ऐसा एहसास होने लगा जैसे उसके सिर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वह लगातार कोशिश कर रहा था, कि खुद के मन को समझा सके। उसे इस वक़्त अपना सिर काफी हल्का महसूस हो रहा था। उसकी आंखें अपने आप बन्द होने लगी, उसकी आँखों के सामने अपना चश्मा चढ़ाते हुए उसी तरह पीले सूट में तस्वीर उभरी, जैसा उसने उसे पहली बार देखा था और देखते ही उसपर फिदा हो चुका था। मगर इस बार वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ, उसके होंठो पर मुस्कान फैल गयी, उसने अपने अंजाम को स्वीकार कर लिया था। थोड़ी ही देर बाद निमय गहरी नींद में खो चुका था।


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सुबह हो चुकी थी। फरी आज बेहद उत्साहित नज़र आ रही थी। उसे अपने बाबा से दिल की सारी बात कहकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। बाबा ने कभी उसे माँ-बाप की कमी नहीं खलने दी, उन्होंने फरी माँ जैसा प्यार और पिता जैसा कड़ा अनुशासन और संस्कार दिया था। फरी ने अपनी माँ को कभी अपनी यादों से मिटने नहीं दिया पर बाबा से भी उसका लगाव प्रगाढ़ था। वह कोई भी काम करने से पहले बाबा को जरूर बताती थी। 

फरी उठते ही छत पर गयी जहाँ उसके बाबा कसरत कर रहे थे। इतनी उम्र में भी उनके फिट रहने का यही राज था। बाबा को कसरत करते देख फरी मुस्कुराई, बाबा भी उसे देखकर मुस्कुरा उठे।

"तो तुम ये बात उसे कब बता रही हो?" बाबा ने हँसते हुए पूछा।

"कैसे बताऊं? उसका फोन ऑफ आ रहा है और जाह्नवी जी बोला तो शायद वो बताना ही भूल गयीं।" फरी ने अपना सिर खुजाते हुए कहकर ऊँचे वाले होंठ को डांट से दबाया।

"अजीब बात है! ऐसा कौन करता है?" बाबा ने कंधे उचकाते हुए पूछा।

"पता नहीं बाबा..! मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आता..! पता नहीं क्या चल रहा है उनके दिमाग में…!" फरी की आवाज से उसकी उदासी झलक रही थी।

"ये क्या बिट्टू? सीधा उसके घर जाओ और बोल दो जो बात बोलनी हैं। आप भला क्यों डर रही हो उससे.. वो तो बड़े साहब जैसा खतरनाक भी नहीं होगा न..!" बाबा ने हँसते हुए सुझाव दिया।

"बाबा आप भी न…!" कहते हुए फरी मुँह बनाकर बैठ गयी।

"हाँ भई क्या चल रहा इधर…! हमको तो भूल ही जाते लोग..!" तभी विक्रम छत पर आता है बोला, उसके पीछे पीछे वैष्णव भी सुबह की ताजी हवा खाने चला आया था पर वह अपने स्वभावानुसार शांत ही रहा।

"आपको तो कोई भूलना चाह के भी नहीं भूल पायेगा भाई…!" फरी ने मुँह टेड़ा करते हुए कहा।

"अच्छा इतना भी स्पेशल हूँ क्या मैं?" विक्रम चहकते हुए बोला।

"गंदे हो आप…! भूल जाते हो अपनी बहन को..!" जाह्नवी ने गंदा सा मुँह बनाया। "अच्छे बस विशु भैया हैं..!" कहते हुए फरी वैष्णव के पीछे छिपे गई।

"वाह अब विशु भैया अच्छे और हम गंदे…! क्या करूँ अब सर्फ एक्सल से धो लूँ क्या खुद को..!" विक्रम बुरी तरह खिसियाते हुए बोला। यह देखकर वैष्णव भी हँसते लगा, साथ में सभी जोर जोर से हँस पड़े यह देखकर विक्रम झेंप गया। "क्या…!"

"कुछ नहीं…! अब तो तूने मान लिया न कि बहना मेरे से ज्यादा प्यार करती हैं।" वैष्णव ने हँसते हुए कहा।

"सब तो तुझे ही ज्यादा प्यार करते हैं..! मुझे तो कोई पूछता भी नहीं है..।" विक्रम रोनी सूरत बनाते हुए बोला।

"अरे मैं करता हूँ ना..! एकदम तेरी पसन्द की लड़की से शादी कराऊँगा तेरी..!"  वैष्णव ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"बिल्कुल सही कहा भैया, मैंने भी सेम यही सोचा था।" फरी वैष्णव का समर्थन करते हुए हँसकर बोली। यह देखकर बाबा मुँह दबाकर हँसने लगे।

"गजब बेइज्जती है यार…! अपनी तो कोई इज्जत ही नहीं है। मुझे तो रहना ही नहीं है इधर…!" विक्रम मुँह बनाते हुए नीचे उतरने लगा, वैष्णव भी उसके पीछे भागा।


"तो अब क्या ख्याल है?" बाबा ने मुस्कुराते हुए फरी से पूछा।

"मैं तो जा रही हूँ न..!" हँसकर कहते हुए फरी भी उन दोनों के पीछे भागी, बाबा फरी के चेहरे पर खिली मुस्कान देखकर बहुत खुश थे।


◆◆◆

इधर जाह्नवी निमय को जगाने में लगी हुई थी, निमय जागने के काफी देर बाद तक सोने का नाटक करता रहा। 

"ओये उठ जा घोंचू..! फरी और विक्रम आ रहे हैं..!" कहते हुए जाह्नवी कमरे से बाहर जाने लगी।

"क्या…?" निमय चौंकते हुए बोला।

"क्या नहीं हाँ! अब जल्दी से ब्रश वगैरह करके नहा धोकर तैयार हो जा।" इतना जानकर जाह्नवी बाहर निकल गयी।

"राधे राधे… आपकी भी गजब माया है…! रात को सुला दिया और अब…!" खुद से में बुदबुदाता हुआ निमय कमरे से बाहर निकला और कुछ सोचते हुए ब्रश करने लगा।


क्रमशः….


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9 Comments

shweta soni

30-Jul-2022 08:45 PM

Nice 👍

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Ayaansh Goyal

28-Mar-2022 08:33 PM

बहुत अच्छी कहानी है

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Arman

02-Mar-2022 06:22 PM

Achi kahani

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