Sonia Jadhav

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मेरी अना- भाग 14

भाग 14

अनिकेत अपने माता पिता से अना के बारे में बात करना चाहता था लेकिन फिर रुक गया यह सोचकर कि अभी-अभी तो नई नौकरी लगी है, अभी बात करना ठीक नहीं।थोड़ा समय रुककर बात करनी चाहिए। कुछ दिन देहरादून में बिताकर वो दिल्ली लौट आया था।

अनिकेत का ऑफिस नोएडा में फिल्म सिटी में था। सारे न्यूज़ चैनल के ऑफिस वहीँ बने हुए थे। अनिकेत  पहले से भी अधिक व्यस्त हो गया था। आधे से ज्यादा समय उसका ऑफिस से बाहर ही बीतता था ख़बरों की तलाश में, उनकी रिपोर्टिंग करने में। सभी न्यूज़ चैनल्स के बीच होड़ थी सबसे पहले खबर को अपने चैनल पर दिखाने की। हर खबर ब्रेकिंग न्यूज़ ही कहलाती थी।
पत्रकार के लिए मौसम का कोई महत्व नहीं था। उसका काम हर घटना को हर परिस्थिति में लोगों के सामने लाना होता था। कभी-कभी तेज धूप में, बारिश में खड़े रहकर लाइव रिपोर्टिंग करनी पड़ती थी तो कभी-कभी घटनाओं को सही तरीके से लिखकर उन पर रिपोर्ट बनानी पड़ती थी।
अना का काम दिखने में जितना आकर्षक दिखता था, वास्तविकता में उतना था नहीं। सुंदर दिखना और मुस्कराकर बात करना उसके काम की पहचान थी। फ्लाइट में सबको नियमों से अवगत कराना, सभी यात्रियों की सुविधाओं का ख्याल रखना और एमरजेंसी लैंडिंग की वक़्त अपनी जान की परवाह ना करते हुए यात्रियों की सुरक्षा का पहले ध्यान रखना….यह सभी कुछ अना को ट्रेनिंग के दौरान सिखाया गया था। अना फ्लाइट पर जाते वक़्त लाल रंग की घुटनों तक की चुस्त स्कर्ट के साथ सफ़ेद शर्ट और उसके ऊपर लाल रंग का कोट पहनती थी। बहुत सुंदर लगती थी वो एयरहोस्टेस की यूनिफार्म में।

अनिकेत और अना दोनों अपने-अपने व्यस्त दिनचर्या में से बड़ी मुश्किल से वक़्त निकाल पाते थे एक दूसरे से बात करने के लिए। अना की ड्यूटी दिल्ली- मुंबई वाले रूट पर थी। अनिकेत भी उसी फ्लाइट में था, मुंबई जा रहा था ऑफिस के काम से। अना अपने काम में व्यस्त थी।

अनिकेत अना को ख़ामोशी से निहार रहा था। उसे अना खूबसूरत के साथ-साथ बेहद आकर्षक भी लग रही थी लाल रंग की चुस्त स्कर्ट में। अनिकेत पाँच साल बाद देख रहा था अना को। उसकी स्कूल वाली अना अब पूरी तरह बदल चुकी थी।

अनिकेत को बड़ी  मीठी लग रही थी उसकी आवाज जब वो सभी यात्रियों को सीट बेल्ट बांधने के लिए कह रही थी और इमरजेंसी लैंडिंग के बारे में दिशा निर्देश दे रही थी। अनिकेत मन ही मन सोच रहा था…..काश! इस फ्लाइट में वो और सिर्फ अना होते। अनिकेत बस अना को ही निहारा जा रहा था लेकिन अना को इस बात का जरा सा भी आभास नहीं था कि अनिकेत भी इसी फ्लाइट में है।

दिल्ली से मुंबई का फ्लाइट का सफर मात्र दो घँटे का था। मुम्बई पहुँचते ही सभी यात्री बारी-बारी से उतर रहे थे। अना और बाकि एयरहोस्टेस सभी यात्रियों को प्यार से विदा कर रहीं थी। सबके जाने के बाद अनिकेत सबसे आखिरी में उठा फ्लाइट से उतरने के लिए। अना का ध्यान अभी भी अनिकेत की ओर नहीं गया था। अनिकेत ने उतरते हुए अना की तरफ जब देखा तो अना कुछ सेकण्ड्स के लिए उसे देखती ही रह गयी। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये सपना है कि सच। वो सिर्फ अनिकेत ही कह पायी। तभी अनिकेत ने कहा….कन्वेयर बेल्ट के पास तुम्हारा इंतज़ार करूँगा। यह कहकर अनिकेत फ्लाइट से उतर गया।

अना की एयरहोस्टेस मित्र निशा ने बड़ी उत्सुकता से पूछा….. इतना हैंडसम लड़का कौन है अना?
अना अभी भी हैरान थी अनिकेत को देखकर। तभी निशा ने उसे चिकोटी काटी और फिर से पूछा…… तेरा बॉयफ्रेंड है क्या?
नहीं, वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।

कन्वेयर बेल्ट से अपना बैग लेने के बाद अनिकेत वहीँ बैठकर अना का इंतज़ार कर रहा था। पाँच साल का इंतज़ार इतना लंबा नहीं लगा था, जितना आज कुछ मिनटों का इंतज़ार करना भारी लग रहा था। मन में कई विचार उमड़ रहे थे। एक मन कर रहा था अना को देखते ही सीने से लगाने का और एक मन डर रहा था कहीँ अना उसके इस तरह से करीब आने का बुरा ना मान जाए। मन इन सभी विचारों में उलझा हुआ था कि अना आ गयी और झट से अनिकेत के सीने से लग गयी।

निशा दूर से अनिकेत और अनाहिता को यूँ एक दूसरे में सिमटा हुआ देख रही थी। अना की आँखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे और अनिकेत अपने हाथों से उसके आँसु पोछ रहा था। दोनों के बीच इतना प्यार देखकर निशा के मुँह से बरबस ही निकल गया….काश! मैं भी अनाहिता की तरह खुशकिस्मत होती। काश! मेरी जिंदगी में भी कोई अनिकेत होता।

अनिकेत की मीटिंग थी बहुत ज़रूरी, वो बैग होटल में छोड़कर मीटिंग के लिए चला गया और अना अपने घर। आज अना इतनी खुश थी कि उसका चेहरा ख़ुशी के मारे चमक रहा था। घर पहुंचते ही अना सीधे अपने कमरे में चली गयी। वो नहीं चाहती थी कि माँ उसका चेहरा देखकर उसकी खुशी की वजह समझ जाए। आज अनिकेत सिर्फ उसके दिल में नहीं था, वो प्यार बनकर उसके पूरे शरीर में बह रहा था।

अनिकेत के सपने देखते-देखते कब अना की आँख लग गयी पता ही नहीं चला। कुछ देर बाद फोन की घँटी से अना की आँख खुली तो देखा अनिकेत का फोन था।
अनिकेत की आवाज सुनते ही अना की नींद झट से खुल गयी….. अना मुझे समुन्दर देखना है, तुम जल्दी  से मरीन ड्राइव आ जाओ। मेरे पास आज और कल का ही दिन है। परसों मुझे वापिस दिल्ली के लिए निकलना है।

अनिकेत की दिल्ली जाने की बात सुनकर अना का दिल उदास हो जाता है। वो भारी मन से कहती है… हाँ, ठीक है तुम्हें आधे घँटे में मिलती हूँ।

अना को तैयार होता देख माँ ने इतना ही कहा…. ज्यादा देर मत करना, घर समय से आ जाना।

अना ने कहा…..माँ मैं अनिकेत से मिलने जा रही हूँ।

जानती हूँ अना, तेरे चेहरे की ख़ुशी बता रही है कि तू अनिकेत से मिलने जा रही है।

अना हैरानी से…..आपको कैसे पता माँ?

तेरी माँ हूँ, तेरी बातें तब से समझती हूँ जब तू मेरे गर्भ में थी। अपना ख्याल रखना, तुम दोनों के रिश्ते को किसी की नज़र ना लगे।

अना अपनी माँ को प्यार से गले लगा लेती है और अनिकेत से मिलने के लिए निकल जाती है। अनिकेत मरीन ड्राइव पहुँच चुका होता है। शाम के छह बज गए थे। युवा प्रेमी जोड़े, पिकनिक मनाते परिवार, जॉगिंग करते लड़के-लड़कियां, छोटे बच्चे एक दूसरे के पीछे भागते हुए, लगभग सभी आयु के लोग समुन्दर की उफनती हुई लहरों का आनंद ले रहे थे। समुन्दर को देखते हुए  घड़ी की टिकटिक की परवाह किए बिना यहाँ घण्टों वक़्त बिताया जा सकता था। मुम्बई में एक बड़ी खास बात है यहाँ लोगों की इतनी भीड़ है कि आप कभी अकेला महसूस कर ही नहीं सकते। अकेलापन काटता भी होगा तो वो घर के भीतर काटता होगा, घर के बाहर नहीं।

अनिकेत बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहा था अना का, टकटकी लगाए सड़क की ओर देख रहा था।
तभी अना जीन्स-टीशर्ट पहने हुए, आँखों में धूप का चश्मा लगाए टैक्सी से नीचे उतरी। दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए, अनिकेत ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और दोनों खाली जगह देखकर बैठ गए। दोनों ही खामोश थे, समझ ही नहीं आ रहा था बात कहाँ से शुरू करें।

काफी देर तक वे चुपचाप समुन्दर को निहारते रहे, तभी अनिकेत ने धीरे से कहा…..एयरपोर्ट पर तुम दौड़कर मेरे सीने से लग जाओगी, मैंने सोचा नहीं था।

अना ने समुन्दर को देखते हुए कहा…….सोचा तो मैंने भी नहीं था।

पाँच साल का इंतज़ार रंग लाया अना। तुमने हमारी यादों की फ़ेहरिस्त में एक याद और जोड़ दी। मुझे हमेशा याद रहेगी हमारी यह पहली मुलाकात।

यह सुनकर अना के गोरे गालों का रंग सुर्ख लाल हो गया था। अनिकेत बस बार-बार अना को ही निहारा जा रहा था।

अनिकेत मुझे निहारना बंद भी करो अब, मुझे अजीब लग रहा है।

मुझे तो बिल्कुल भी अजीब नहीं लग रहा अना, बल्कि मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है। अनिकेत ने धीरे से हाथ अना के कंधे पर रख दिया। अना के गुस्से से देखते ही झट से हटा लिया।
सॉरी अना…… मैं शायद ज्यादा भावुक हो रहा हूँ इस समय।

अना जोर से हँसने लगी और अपना सिर अनिकेत के कंधे पर रख दिया।
अनिकेत ने अना के कान में धीरे से कहा….मेरी अना

तुम्हें अजीब नहीं लगता अना हम पांच सालों से साथ हैं, फिर भी हमने कभी एक-दूसरे को आइ लव यू नहीं कहा।

जिस दिन, जिस पल तुमने मुझे "मेरी अना" कहकर पुकारा था अनिकेत, उस दिन  मुझे लगा जैसे खुद पर से मेरा अख्तियार खत्म हो चुका है, लगा जैसे अब सिर्फ तुम्हारा अधिकार है मुझ पर।

तुम्हारा मुझे "मेरी अना" कहना आइ लव यू से ज़्यादा खूबसूरत है। "मेरी अना" ये दो शब्द मेरे शरीर, मेरी आत्मा को तुमसे जोड़ते हैं अनिकेत। "मेरी अना" के आगे आइ लव यू बहुत छोटा शब्द है।

पता है तुम्हें अना हमारा रिश्ता बहुत अलग है। हमारे बीच शुरू से ही अलग तरह का लगाव था एक दूसरे के प्रति। कैसे कहूँ, हाँ जैसे  माँ कभी अपनी संतान को आइ लव यू नहीं कहती अपना प्यार जताने के लिए। माँ और बच्चे के बीच प्यार दिखता है, उन्हें अपना प्यार साबित करने के लिए आइ लव यू नहीं कहना पड़ता। उसी तरह तुम्हारा प्यार मुझे तुम्हारे खतों से महसूस होता था अना, जिस तरह तुम मेरी फ़िक्र करती थी, मुश्किल समय में मुझे हौसला देती थी, उन सबमें मुझे तुम्हारा प्यार महसूस होता था अना। मुझे पता था तुम मुझसे प्यार करती हो और तुम्हें पता था मैं तुमसे प्यार करता हूँ।

अना की आँखों में नमी थी, उसे अपने प्यार पर गर्व था। अनिकेत बार-बार उसके बालों को चूम रहा था। अना को अच्छा लग रहा था अनिकेत के साथ वक़्त गुजारना। लेकिन घर जाने का समय भी हो रहा था।  तभी अना ने पूछा….कल की क्या योजना है तुम्हारी अनिकेत?

कल दोपहर के बाद फ्री हूँ अना। ऐसा करते हैं कल लंच साथ करते हैं।
हाँ ठीक है, मेरी भी कल छुट्टी है। परसों सुबह मुझे ड्यूटी ज्वाइन करनी है।

अनिकेत देर हो गयी है अब हमें चलना चाहिए।

ह्म्म्म ठीक है अना।

अना जाने के लिए उठती है तभी अनिकेत उसका हाथ पकड़कर प्यार से कहता है…. मेरी अना

" मैं नहीं समझना चाहता प्रेम क्या होता है, क्योंकि जो समझकर किया जाए वो प्रेम कहाँ होता है।

मैं बस पुकारना चाहता हूँ तुम्हारा नाम अनगिनत बार
तुम्हारे नाम की मिश्री को जिव्हा पर महसूस करना चाहता हूँ हर बार।

मैं जीना चाहता हूँ हर पल तुम्हारे साथ
कभी सीने में छिपकर तुम्हारे, कभी यूँ ही बिना बात के झगड़कर तुमसे
जितनी भी साँसे हैं मेरे नसीब में, मैं बस वो तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूँ।

मेरे लिए प्रेम का अर्थ हो "तुम"
मेरे नाम से जुड़ा तुम्हारा नाम,
सहेजकर रखता है मुझे तुम्हारे प्रेम में।"

अना चलो शादी कर लेते हैं। अनाहिता रावत से अनाहिता शर्मा बनने का समय आ गया है।
शादी की बात सुनकर अना की आँखों में ख़ुशी के ढेरों जुगनू जगमगाने लगे थे।

अनिकेत और अना आँखों में आने वाले कल के सुनहरे ख़्वाब लिए अपने-अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाते हैं।


❤सोनिया जाधव

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5 Comments

Sandhya Prakash

22-Mar-2022 01:22 PM

Behad khoobsurat kahani

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Karan

05-Mar-2022 11:50 PM

बहुत खूबसूरत कहानी

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Inayat

05-Mar-2022 01:43 AM

Behtarin

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