नज़राना इश्क़ का (भाग : 49)
प्रेम कदाचित जीवन की सबसे कठिन परीक्षा का नाम है, जिसमें व्यक्ति के साहस, धैर्य, सहनशीलता की परीक्षा होती है। थोड़ी सी खुशी के लिए ढेर सारा दर्द, हँसते हँसते सहना पड़ता है, और ये दर्द चाहे प्रेमी ने दिया हो या प्रेम ने..! किस्मत हर बार सामने जाते ही मुंह पर दरवाजा बंद कर देती है। चोट किसी और को लगती है और जख्म के निशान अपने दिल पर उभरते हैं। प्रेम सदैव त्याग और समर्पण की अनुशंसा करता है, परंतु मिलन के लिए इससे भी अधिक कठोर शर्ते तय होती हैं। क्योंकि प्रेम पाना उतना सरल बिलकुल नहीं है जितना की किस्से कहानियों में दिखाया जाता है, यह एक ऐसा मोल है जिसमें थोड़े सुकून के बदले दर्द का जखीरा लेना पड़ता है। चाहें प्रेम किसी रिश्ते में हो, उसमें दर्द का होना निश्चित है, असहनीय दर्द जो अंदर तक तोड़ दे, उसके बाद भी अगर किसी की फिक्र की जाए वही सार्थक प्रेम है।
फरी की हालत बिल्कुल सही नहीं थी, वह बस अपने दिल की बात निमय से कहने ही वाली थी, पर उससे पहले ये हादसा हो गया। जाह्नवी की हालत और खराब थी, अब उससे बोला तक नहीं जा रहा था। टैक्सी वाला एक पल को उन दोनों की हालत देखकर घबरा गया, थोड़ी देर बाद उनकी टैक्सी मेवाड़ हॉस्पिटल के सामने रुकी। दोनो किसी तरह से एक दूसरे को सहारा देकर बाहर आई, वहां पर पार्किंग में उन्हें विक्रम की कार दिखी, जिसे देखकर उन्हें थोड़ी राहत सी हुई, दोनो हॉस्पिटल के अंदर की ओर भागी।
■■■■■
"मिस्टर विक्रम! आपके फ्रेंड की हालत काफी गंभीर है।" डॉक्टर जो कि अधेड़ उम्र का था, उसके सिर के काफी बाल सफेद हो चुके थे, आंखों पर बड़ा सा चश्मा लगाए हुए था ने विक्रम को बताया।
"तो आप ये मुझे क्यों बता रहे हैं! जल्दी कीजिये, बचाइए मेरे दोस्त को...!" विक्रम अधिक व्यग्रता में चीखता हुआ बोला।
"शांत हो जाइए मिस्टर विक्रम! और बात को समझने की कोशिश कीजिये, आपको ऐसा लग रहा होगा गोली पार निकल गयी है, परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ है, गोली दिल के बिल्कुल पास से गुजरी है, और हल्की सी चूक भी पेशेंट की जान ले सकती है।" डॉक्टर परेशान स्वर में बोला, उसके माथे पर पसीने की बूंद छलकने लगी जिसे उसने तुरंत ही पोछ लिया।
"तो मैं बाकी हॉस्पिटल्स को छोड़कर यहां क्यों आया? डॉक्टर प्लीज मेरी बात को समझिए, मेरे दोस्त को अगर कुछ हुआ तो….!" विक्रम का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा।
"मैं समझ रहा हूँ पर समझिए, आपकी उत्तेजना और व्यग्रता को मैं समझ सकता हूँ पर यहां काम उत्तेजित होने से नहीं चलेगा..! हल्की सी चूक भी….!"
"और अगर गोली उसके शरीर से नहीं निकाली गई तो ज़हर उसे मार डालेगा डॉक्टर, वी डोंट हैव टाइम टू डिस्कस नाउ! आपको जितना पैसे चाहिए मिलेगा, बस मुझे मेरे दोस्त चाहिए…!" विक्रम टेबल पर पंच मारते हुए कहा।
"बात पैसे की नहीं…!" इससे पहले डॉक्टर अपनी बात पूरा करता, विक्रम उसे घूरकर देखने लगा। "डॉक्टर सुमन कहाँ हैं?" डॉक्टर ने वार्डबॉय को बुलाकर पूछा।
"सर वो तो अभी ही अपने घर के लिए निकली हैं!" वार्डबॉय ने डॉक्टर को बताया।
"शिट! जल्दी से रोको उन्हें, एक इमरजेंसी है।" डॉक्टर बुरी तरह चिल्लाया। वार्डबॉय भागता हुआ नीचे गया, जहाँ डॉक्टर सुमन उसे नीचे वाले मंजिल पर ही मिल गयी।
"मैम..! आपको डॉक्टर अग्रवाल बुला रहे हैं।" वार्डबॉय हाँफता हुआ बोला।
"मैंने अपना काम कर लिया है, और अब मुझे आराम करना है।" कहते हुए डॉक्टर सुमन आगे बढ़ गयी।
"वैट..! एक मिनट डॉक्टर..!" विक्रम सीढ़ियों से उतरता हुआ सुमन की ओर भागा।
"कहिये अब आपको क्या परेशानी है?" सुमन ने उसे घूरते हुए पूछा।
"मेरे दोस्त की हालत बहुत गंभीर है डॉक्टर! प्लीज कुछ कीजिये।" विक्रम हाथ जोड़ते हुए अनुरोध किया।
"सॉरी मिस्टर! बट आई कंम्प्लीटेड माय जॉब!" डॉक्टर ने कहा और नीचे उतरने लगीं।
"डॉक्टर की जॉब कभी खत्म नहीं होती मैम! आई रिक्वेस्ट यू, प्लीज मेरे दोस्त के लिए कुछ कीजिये। आपको जितना पैसा चाहिए मैं आपको दूंगा।" विक्रम ने साम दाम सब आजमाया।
"व्हाट? सॉरी! आइंदा से मुझसे पैसों की बात करने की गुस्ताखी नहीं करना मिस्टर…!" डॉ सुमन गुस्से से बोली, यह देखकर विक्रम सहम गया। "पेशेंट कहाँ है?" विक्रम बस उसका मुँह देखता रहा। "ऐसे मुँह मत देखो, जल्दी से उसके पास चलो…!"
"वो अभी सेकंड फ्लोर पर है…!" कहता है विक्रम नीचे भागा।
"वहां क्या कर रहा है?" व्यंग्य के साथ डॉक्टर भी उसके पीछे नीचे की ओर भागीं। थोड़ी ही देर में वह निमय के पास जा पहुँचे।
"ओ माय गॉड! इसकी हालत तो बहुत क्रिटिकल है!" डॉक्टर ने निमय को एग्जामिन करते हुए कहा।
"सिस्टर..! ये अब तक यहां क्यों है? तुरंत इसकी वाइटल्स चेक करो और इसे ओटी (ऑपरेशन थिएटर) में शिफ्ट करो!" सुमन नर्स पर झल्लाते हुए बोली। नर्स सिर झुकाए खड़ी थी। "सुनाई नहीं दिया आपको? जल्दी से इसे ओटी में शिफ्ट करो और सर्जरी की तैयारी करो!" कहते हुए वे खुद ऑपरेशन थियेटर की ओर बढ़ गयी और सर्जरी करने के लिए प्रीपेयर करने लगी। विक्रम हक्का बक्का सा उसकी ओर देखता रहा फिर चुपचाप जाकर एक चेयर पर बैठ गया, उसके माथे से पसीना छलक रहा था।
थोड़ी ही देर में निमय की सर्जरी शुरू हो चुकी थी। डॉक्टर सुमन और उनके सभी साथी सर्जन की पोशाक में, अपने विभिन्न उपकरणों की सहायता से बड़ी तन्मयतापूर्वक बारीकी से एक एक चीज का ख्याल रखते हुए अपने काम में जुट गए। गोली दिल के बिल्कुल पास से बहुत गहराई तक धँसी हुई थी, उनके पास असावधानी से कार्य करने का कोई अवसर न था।
◆◆◆◆
विक्रम बाहर बैठा हुआ था, वह थोड़ी देर में उठकर इधर उधर देखता और थोड़ी चहलकदमी करने के बाद फिर बैठ जाता, उसके चेहरे पर परेशानी की लकीरें और अधिक गहरी और काली होती जा रही थी। तभी वहां फरी और जाह्नवी आ गयी, उनके चेहरे पर भी बारह बजे हुए थे। उन्होंने विक्रम से इशारे में निमय के बारे में पूछा, विक्रम ने ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा कर दिया। फरी और जाह्नवी दोनों बेजान सी वहीं बैठ गयी, और सफल ऑपरेशन होने की कान्हा जी से प्रार्थना करने लगीं।
करीबन साढ़े तीन घंटे बाद ऑपरेशन थियेटर से डॉक्टर सुमन बाहर निकली। उन्हें बाहर आते देख विक्रम उनकी ओर भागा चला आया, जाह्नवी और फरी भी उसके पीछे ही आ गयी।
"मेरा दोस्त अब कैसा है डॉक्टर?" विक्रम ने भरी आँखों से पूछा।
"ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा, हमने बुलेट निकाल दी है, मगर पेशेंट को कब होश आएगा ये कह पाना थोड़ा मुश्किल है। लगभग चौबीस घंटे अंडर ऑब्जेर्वेशन रखना पड़ेगा,आई होप की उसे जल्दी से जल्दी होश आ जाए, बॉडी से बहुत सारा ब्लड लॉस होने के कारण वह अभी काफी कमजोर हालत में है।" कहते हुए डॉक्टर वहां से आगे बढ़ी।
"क्या हम उससे मिल सकते हैं डॉक्टर..?" फरी ने पूछा, उसकी आंखें एक बार निमय को देख लेने को लालायित हो रही थी।
"नहीं! अभी उसकी सिचुएशन क्रिटिकल है, उसे आईसीयू में शिफ्ट किया गया है। इसलिए जब तक पेशेंट को होश नहीं आ जाता उससे कोई नहीं मिल सकता।" डॉक्टर ने स्पष्ट शब्दों में कहा। सभी मन मारकर रह गए और मन ही मन उसके जल्दी ठीक होने की प्रार्थना करने लगे, अभी भी उनकी हिम्मत घरवालों को कुछ बताने की नहीं हो रही थी। वे आते जाते हर डॉक्टर और नर्स से निमय के बारे में जरूर पूछा करते थे।
"आप ज्यादा परेशान न होइए, पेशेंट को जैसे ही होश आएगा आपको बता दिया जाएगा।" एक नर्स ने उन्हें शांत कराने की कोशिश करते हुए कहा।
■■■■
तकरीबन पांच-छः घण्टे बाद..!
"डॉक्टर! मेरा भाई अब कैसा है?" जाह्नवी अब इंतेज़ार करते करते थक चुकी थी, अभी अभी तो उसका भाई चलना फिरना शुरू किया था, फिर अब ये हो गया। वो निमय के साथ जो कुछ हुआ उसका जिम्मेदार खुद को मान रही थी। उसकी अब भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपने पापा-मम्मी को इस बारे में कुछ बता सके। उसने हस डॉक्टर से पूछा जो अभी आईसीयू की ओर से आ रहा था।
"कौन..?" डॉक्टर ने उसे देखते हुए पूछा।
"निमय.. निमय शर्मा!" फरी अटकते हुए बोली।
"उसकी हालत पहले से बेहतर है।" डॉक्टर ने कहा और वहां से जाने लगा।
"क्या हम उससे मिल सकते हैं..?" जाह्नवी ने करुण स्वर में पूछा, उसकी आंखो में आंसू डबडबा रहे थे।
"नहीं…!" डॉक्टर ने साफ इनकार कर दिया।
"प्लीज डॉक्टर..!" फरी भी हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाई।
"ठीक है, पर कोई एक ही जा सकता है पर सिर्फ देखने बस, वहां मरीज से कोई बात नहीं करनी है।" डॉक्टर से सख्त स्वर में कहा, वह भी उनके आँसुओ को देख पिघल जाता, पर डॉक्टर्स की जिंदगी में यह सब आम था।
डॉक्टर बनना इतना भी आसान नहीं होता, दिल होकर भी बेदिल बने रहना कोई आसान काम नहीं है। मगर डॉक्टर जानते हैं कि दर्द आंसू बहाने से नहीं, जख्म भरने से ही कम होगा।
"तुम जाओ...!" विक्रम और फरी ने जाह्नवी की ओर देखते हुए एक साथ कहा।
"नहीं फरु तुम जाओ..!" जाह्नवी ने फरी से कहा। वातावरण पूरी तरह गमनीन था, तीनों के चेहरे लटके हुए थे, निमय को देखने कौन एक जाए, अब तक यही तय नहीं कर पा रहे थे।
"नहीं जानू…! इस वक़्त तुम्हें उसके पास होना चाहिए!" फरी ने गंभीर स्वर में कहा।
"ये तुम भी जानती हो कि उसे इस वक़्त किसकी जरूरत ज्यादा है! अपनी आँखों में छिपी मिलने की चाहत को मत छिपाओ फरी, ये बात हम दोनों भी जानते हैं, जाओ मिलकर आओ…! और सुनो रोते हुए मत जाना…!" जाह्नवी खुद को मजबूत बनाने की कोशिश करते हुए बोली। फरी अब कुछ नहीं कर सकती थी, थोड़ी देर में वह ग्लब्स, मास्क आदि पहनकर आईसीयू में चली गयी। वहां निमय की हालत देखकर उसकी आँखों में आँसूओं की बाढ़ आ गयी। निमय वेंटिलेटर पर पड़ा हुआ था, उसके सीने पर पट्टियां लिपटी हुई थी, चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क, हाथ में ड्रिप लगी हुई थी। उसका चेहरा पूरी तरह से मुरझा गया था।
"ये सब मेरी गलती है निम! अगर मैं आपको अपने दिख की बात पहले ही कह देती तो आज ऐसा नहीं होता। पर प्लीज अब जल्दी से उठ जाओ, मैं आपको ऐसे नहीं देख सकती। आज का ये दिन ऐसे बीता है जैसे मैं काँटो पर लेटी हुई हूँ, मुझे आपसे सबकुछ कहना है, अब जल्दी से उठ जाओ प्लीज..!" फरी ने निमय को देखते हुए कहा। मगर उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि उसे अब और हालत में देख सके। "हे कान्हा! ये कौन सा सिला दिया है आपने मुझे..! मुझसे हमेशा सब क्यों छीन लेते हो? मेरे निम को जल्दी ठीक कर दो प्लीज प्लीज…!" अपनी आंखें बंद किये, हाथ जोड़कर थोड़ी देर वह वहां रही फिर वहां से बाहर जाने लगी।
"कैसा है अब वह?" बाहर जाते ही जाह्नवी और विक्रम ने उससे पूछा।
"लेटे हुए हैं!" फरी ने सिर झुकाए हुए लगभग रो देने के स्वर में बोली।
"हूँ..! मम्मी पापा आ रहे हैं!" जाह्नवी की नजर भी नीचे गड़ी हुई थी।
"क्या..? उन्हें कौन बताया?" फरी परेशान स्वर में बोली।
"उनसे आखिर कब तक छिपा सकते थे!" जाह्नवी ने सिर नीचे किये ही कहा।
"उसे कब तक होश आया जाएगा?" विक्रम ने फरी की ओर आस भरी दृष्टि से देखते हुए पूछा।
"पता नहीं..!" कहकर फरी धम्म से वही बैठ गयी।
थोड़ी ही देर में निमय के मम्मी पापा वहां आ गए, उनके चेहरे पर परेशानी के भाव थे, जानकी जी के तो रो रोकर बुरे हाल हो गए थे, श्रीराम जी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे।
"कब हुआ ये?" श्रीराम जी ने पूछा।
"सुबह कृष्णा मंदिर के पास! मैं उनसे बात कर रही थी तभी…!" फरी सुबकते हुए बोली।
"ज्यादा परेशान मत हो बेटा! उसके सिर तो साक्षात कन्हैया का हाथ है, वो जल्दी ही ठीक हो जाएगा।" श्रीराम जी ने विश्वासपूर्वक कहा। जाह्नवी जाकर अपने पापा से लिपट गयी। फरी भी जानकी जी के गले लगकर रोने लगी, विक्रम जबड़े भींचकर अपने दर्द को पीता वही बैठा रहा।
"निमय शर्मा को होश आ गया!" वार्डबॉय आवाज लगाते हुए बाहर की ओर आया। यह सुनकर सभी ने राहत भरी सांस ली।
क्रमश:.....!!
shweta soni
30-Jul-2022 08:45 PM
Nice 👍
Reply
Zakirhusain Abbas Chougule
25-Feb-2022 11:41 PM
Bahut khoob
Reply
मनोज कुमार "MJ"
28-Feb-2022 01:45 PM
Shukriya aapka
Reply
देविका रॉय
25-Feb-2022 02:23 PM
चलो सब ठीक है निमय भी ठीक है। अब
Reply
मनोज कुमार "MJ"
28-Feb-2022 01:45 PM
Thank you
Reply