प्रेमा भाग 11
विरोधियों का विरोध
मेहमानों के बिदा हो जाने के बाउ यह आशा की जाती थी कि विरोधी लोग अब सिर न उठायेंगे। विशेष इसलिए कि ठाकुर जोरावार सिंह और मुंशी बदरीप्रसाद के मर जाने से उनका बल बहुत कम हो गया था। मगर यह आशा पूरी न हुई। एक सप्ताह भी न गुज़रने पाया था कि और अभी सुचित से बैठने भी न पाये थे कि फिर यही दॉँतकिलकिल शुरु हो गयी।
अमृतराय कमरे में बैठे हुए एक पत्र पढ़ रहे थे कि महराज चुपके से आया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। अमृतराय ने सर उठाकर उसको देखा तो मुसकराकर बोले—कैसे चले महाराज?
महराज—हजूर, जान बकसी होय तो कहूँ।
अमृत—शौक से कहो।
महराज—ऐसा न हो कि आप रिसहे हो जायँ।
अमृत—बात तो कहो।
महराज—हजूर, डर लगती है।
अमृत—क्या तनख्वाह बढ़वाना चाहते हो?
महराज—नाहीं सरकार
अमृत—फिर क्या चाहते हो?
महराज—हजूर,हमारा इस्तीफा ले लिया जाय।
अमृत—क्या नौकरी छोड़ोगे?
महराज—हॉँ सरकार। अब हमसे काम नहीं होता।
अमृत—क्यों, अभी तो मजबूत हो। जी चाहे तो कुछ दिन आराम कर लो। मगर नौकरी क्यों छोड़ों
महराज—नाहीं सरकार, अब हम घर को जाइब।
अमृत—अगर तुमको यहॉँ कोई तकलीफ़ हा तो ठीक-ठीक कह दो। अगर तनख्वाह कहीं और इसके ज्यादा मिलने की आशा हो तो वैसा कहो।
महराज—हजूर, तनख्यावह जो आप देते हैं कोई क्या माई का लाल देगा।
अमृतराय—फिर समझ में नहीं आता कि क्यों नौकरी छोड़ना चहाते हो?
महराज—अब सरकार, मैं आपसे क्या कहूँ। यहॉँ तो यह बातें हो रही थीं उधर चम्मन व रम्मन कहार और भगेलू व दुक्खी बारी आपस में बातें कर रहे थे।
भगेलू—चलो, चलो जल्दी। नहीं तो कचहरी की बेला आ जैहै।
चम्मन—आगे-आगे तुम चलो।
भगेलू—हमसे आगूँ न चला जैहै।
चम्मन—तब कौन आगूँ चलै?
भगेलू—हम केका बताई।
रम्मन—कोई न चलै आगूँ तो हम चलित है।
दुक्खी—तैं आगे एक बात कहित है। नह कोई आगूँ चले न कोई पीछूँ।
चम्मन---फिर कैसे चला जाय।
भगेलू—सब साथ-साथ चलैं।
चम्मन—तुम्हार क़पार
भगेलू—साथ चले माँ कौन हरज है?
मम्मन—तब सरकार से बतियाये कौन?
भगेलू—दुक्खी का खूब बितियाब आवत है।
दुक्खी—अरे राम रे मैं उनके ताई न जैहूँ। उनका देख के मोका मुतास हो आवत है।
भगेलू---अच्छा, कोऊ न चलै तो हम आगूँ चलित हैं
सब के सब चले। जब बरामदे में पहुँचे तो भगेलू रुक गया।
मम्मन—ठाढ़े काहे हो गयो? चले चलौ।
भगेलू---अब हम न जाबै। हमारा तो छाती धड़त है।
अमृतराय ने जो बरामदे में इनको सॉँय-साँय बातें करते सुना तो कमरे से बाहर निकल आये और हँस कर पूछा—कैसे चले, भगेलू?
भगेलू का हियाव छूट गया। सिर नीचा करके बोला—हजूर, यह सब कहार आपसे कुछ कहने आये है।
अमृतराय—क्या कहते है? यह सब तो बोलते ही नहीं
भगेलू—(कहारों से) तुमको जौन कुछ कहना होय सरकार से कहो।
कहार भगेलू के इस तरह निकल जाने पर दिल में बहुत झल्लये। चम्मन ने जरा तीखे होकर कहा—तुम काहे नाहीं कहत हौ? तुम्हार मुँह में जीभ नहीं है?
अमृतराय—हम समझ गये। शायद तुम लोग इनाम मॉँगने आये हो। कहारों से अब सिवाय हॉँ कहने के और कुछ न बन पड़ा। अमृतराय ने उसी दम पॉँच रुपया भगेलू के हाथ पर रख दिया। जब यह सब फिर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने लगे—
चम्मन—भगेलुआ बड़ा बोदा है।
रम्मन—अस रीस लागत रहा कि खाय भरे का देई।
दुक्खी—वहॉँ जाय के ठकुरासोहाती करै लागा।
भगेलू—हमासे तो उनके सामने कुछ कहै न गवा।
दुक्खी---तब काहे को यहॉँसे आगे-आगे गया रह्यो।
इतने में सुखई कहार लकडी टेकता खॉसता हुआ आ पहुँचा। और इनको जमा देखकर बोला—का भवा? सरकार का कहेन?
दुक्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गूँगे हो गये। कोई के मुँह से बात न लिकली।
भगेलू—सुखई दादा तुम नियाव करो, जब सरकार हँसकर इनाम दे लागे तब कैसे कहा जात कि हम नौकरी छोड़न आये हैं।
सुखई—हम तो तुमसे पहले कह दीन कि यहॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतैहो। अस भलामानुष कहूँ न मिले।
भगेलू—दादा, तुम बात लाख रुपया की कहत हो।
चम्मन—एमॉँ कौन झूठ हैं। अस मनई काहॉँ मिले।
रम्मन आज दस बरस रहत भये मुदा आधी बात कबहूँ नाहीं कहेन।
भगेलू—रीस तो उनके देह में छू नहीं गै। जब बात करत है हँसकर।
मम्मन—भैया, हमसे कोऊ कहत कि तुम बीस कलदार लेव और हमारे यहॉँ चल के काम करो तो हम सराकर का छोड़ के कहूँ न जाइत। मुद्रा बिरादरी की बात ठहरी। हुक्का-पानी बन्द होई गवा तो फिर केह के द्वारे जैब।
रम्मन—यही डर तो जान मारे डालते है।
चम्मन—चौधरी कह गये हैं किआज इनकेर काम न छोड़ देहों तो टाट बाहर कर दीन जैही।
सुखई—हम एक बेर कह दीन कि पछतौहो। जस मन मे आवे करो।
कहार भगेलू के इस तरह निकल जाने पर दिल में बहुत झल्लये। चम्मन ने जरा तीखे होकर कहा—तुम काहे नाहीं कहत हौ? तुम्हार मुँह में जीभ नहीं है?
अमृतराय—हम समझ गये। शायद तुम लोग इनाम मॉँगने आये हो।
कहारों से अब सिवाय हॉँ कहने के और कुछ न बन पड़ा। अमृतराय ने उसी दम पॉँच रुपया भगेलू के हाथ पर रख दिया। जब यह सब फिर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने लगे—
चम्मन—भगेलुआ बड़ा बोदा है।
रम्मन—अस रीस लागत रहा कि खाय भरे का देई।
दुक्खी—वहॉँ जाय के ठकुरासोहाती करै लागा।
भगेलू—हमासे तो उनके सामने कुछ कहै न गवा।
दुक्खी---तब काहे को यहॉँसे आगे-आगे गया रह्यो।
इतने में सुखई कहार लकडी टेकता खॉसता हुआ आ पहुँचा। और इनको जमा देखकर बोला—का भवा? सरकार का कहेन?
दुक्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गूँगे हो गये। कोई के मुँह से बात न लिकली।
भगेलू—सुखई दादा तुम नियाव करो, जब सरकार हँसकर इनाम दे लागे तब कैसे कहा जात कि हम नौकरी छोड़न आये हैं।
सुखई—हम तो तुमसे पहले कह दीन कि यहॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतैहो। अस भलामानुष कहूँ न मिले।
भगेलू—दादा, तुम बात लाख रुपया की कहत हो।
चम्मन—एमॉँ कौन झूठ हैं। अस मनई काहॉँ मिले।
रम्मन आज दस बरस रहत भये मुदा आधी बात कबहूँ नाहीं कहेन।
भगेलू—रीस तो उनके देह में छू नहीं गै। जब बात करत है हँसकर।
मम्मन—भैया, हमसे कोऊ कहत कि तुम बीस कलदार लेव और हमारे यहॉँ चल के काम करो तो हम सराकर का छोड़ के कहूँ न जाइत। मुद्रा बिरादरी की बात ठहरी। हुक्का-पानी बन्द होई गवा तो फिर केह के द्वारे जैब।
रम्मन—यही डर तो जान मारे डालते है।
चम्मन—चौधरी कह गये हैं किआज इनकेर काम न छोड़ देहों तो टाट बाहर कर दीन जैही।
सुखई—हम एक बेर कह दीन कि पछतौहो। जस मन मे आवे करो।
आठ बजे रात को जब बाबू अमृतराय सैर रिके आये तो कोई टमटम थानेवाला न था। चारों ओर घूम-घूम कर पुकारा। मगर किसी आहट न पायी। महाराज, कहार, साईस सभी चल दिये। यहाँ तक कि जो साईस उनके साथ था वह भी न जाने कहॉँ लोप हो गया। समझ गये कि दुष्टों ने छल किया। घोड़े को आप ही खोलने लगे कि सुखई कहार आता दिखाई दिया। उससे पूछा—यह सब के सब कहॉँ चले गये?
सुखई—(खॉँसकर) सब छोड़ गये। अब काम न करैगे।
अमृतराय—तुम्हें कुछ मालूम है इन सभों ने क्यों छोड़ दिया?
सुखई—मालूम काहे नाहीं, उनके बिरादरीवाले कहते हैं इनके यहॉँ काम मत करो। अमृतराय राय की समझ में पूरी बात आ गयी कि विराधियों ने अपना कोई और बस न चलते देखकर अब यह ढंग रचा है। अन्दर गये तो क्या देखते हैं कि पूर्णा बैठी खाना पका रही है। और बिल्लो इधर-उधर दौड़ रही है। नौकरों पर दॉँत पीसकर रह गये। पूर्णासे बोले---आज तुमको बड़ा कष्ट उठाना पड़ा।
पूर्णा—(हँसकर) इसे आप कष्ट कहते है। यह तो मेरा सौभाग्य है।