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दस्तक

दस्तक!


क्या बात है कि तन्हा, हर रात गुजरती है
हर रात को दिल में, तेरी बात गुजरती है,
मैं इंतेज़ार में हूँ, कब लौट कर आएगा तू
दस्तक दे मेरे द्वारे, ये आँखें राह तकती है।

तू जबसे गया है, सब बिसर गया हूँ
सब गुजर गया बस मैं ही ठहर गया हूँ
कभी तो आएगा लौटकर, ये सोचता हूँ
इंतेज़ार की इंतेहा है, अब बिखर गया हूँ।

उम्र लंबी है इंतज़ार की, अपनी छोटी लग रही है
अब किस्मत भी मेरी मुझको, खोटी लग रही है
तरस गईं हैं ये अंखिया,  अब तो दरस को तिहारे
एकटक निहारे जा रहीं, पत्थर कोई मोती लग रही हैं।

किसी दिन दस्तक तू दे, दुबारा दिल पर मेरे
अब होता नहीं इंतज़ार, सुन लो दिलबर मेरे
जिस दिन भी आएगा, बाँहो में भर लूंगा तुझे
जुदा न होना फिर कभी, अब मिलकर तू रे।

अब तो मेरी, इक पल में  सदियां गुजरती हैं
संभालता हूँ, मगर ये अंखिया कहाँ ठहरती हैं
मैं इंतेज़ार में हूँ, कब लौट कर आएगा तू
दस्तक दे मेरे द्वारे, ये आँखें राह तकती है।



#MJ
©मनोज कुमार "MJ"



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20 Comments

वाह बन्धु वाह 👌👌👌👌 बहुत ही बेहतरीन रचना रची है आपने 👌👌👌👌

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शुक्रिया मित्र

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Renu Singh"Radhe "

21-Jun-2021 06:23 PM

बहुत सुंदर रचना

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धन्यवाद जी

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Mukesh Duhan

21-Jun-2021 01:11 PM

Beautiful ji

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Thanks

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