लश्कर

लश्कर

बढ़ रहा है एक लश्कर

गली गली शहर शहर

शोर बरपा हो रहा है

बरस रहा मौत का कहर।


विध्वंस की जली है ज्वाला

हर तरफ बिखरा हुआ संताप है

रौंदने विद्रोह की वाणी

गगन से बरसती आग है।


कुछ सेकते हैं रोटियां बिखरी हुई इस आग पर

कुछ हठी हैं जो अड़े हैं मातृभूमि की लाज पर

सबकी अपनी मजबूरियां हैं, सबके निहित कुछ स्वार्थ हैं

कौन रोकेगा अब धरा पे पशुता के इस नाच को।


किसको पड़ी है अब यहां पर कोख कितनी उजड़ गई

परवाह इसकी कौन लेगा किस्मत कितनी बिगड़ गई

कौन गिनता है यहां कितने मरे घायल हुए

सब दिखाने में जुटे हैं देश कितने कायल हुए।


होड़ सबमें लग रही नीचा दिखाने के लिए

जोड़ तोड़ चल रही जोर आजमाने के लिए

युद्ध है तो लाजमी कुछ तो नतीजा आएगा

इंसानियत हर दम हारेगी पर देश जीता जायेगा।।


आभार – नवीन पहल– ०२.०३.२०२२ 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


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2 Comments

Dr. Arpita Agrawal

02-Mar-2022 10:47 PM

अति सुन्दर सृजन

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Swati chourasia

02-Mar-2022 08:55 PM

बहुत सुंदर रचना 👌

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