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रहस्य मरूभूमि का-भाग -- अंतिम भाग(उपन्यास लेखन प्रतियोगिता )



रहस्य मरुभूमि का

-अंतिम भाग-


अब तक आपने पढ़ा हँसालिका के अचानक हुए हमले को विमल सहन नहीं कर पाता और पीछे गिर जाता है।
जिससे वहां पर स्थित फूलों का गमला टूट जाता है।
उसी  फूलदान के टूटे हिस्से से विमल हँसालिका के लंबेबालों को काट देता है..
अब आगे...

क्रूर मायाविनी की चीखें वातावरण में गूंज रहीं थीं। अब तक अपने मायाजाल में सबको फँसाने वाली मायाविनी खुद ही अपने मायावी जाल में फँस चुकी थी।

उसके लंबे बालों में ही उसके प्राण सन्निहित थीं।
बालों के कट जाने से मायाविनी की शक्तियाँ समाप्त हो गईं थीं।
उसके मरते ही उसका जादुई लोक बम और बारुद की तरह फटने लगा था।

मायाविनी  जोरों से चिंघाड़ती हुई काले धुआं में बदलकर गायब होती जा रही थी।

वहां पर उपस्थित लोग  जो विमल पर हमले कर रहे थे,सभी मायाविनी के तंत्रजाल से मुक्त हो गए थे लेकिन सब मायाजाल टूटने से बेहोश हो गए  थे।
उनमें  एक विमल के पिता भी थे।

महलों के दरवाजों और खिड़कियाँ  खुदबखुद चटककर टूटती जा रही थीं।
चारों तरफ से धड़ धड़ गिरने की आवाजें आ रही थी।

विमल को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे! 
उस दुष्ट मायाविनि ने सारा साम्राज्य अपने मायावी शक्तियों पर बनाया था।
  अब उसके मरते ही उसका तंत्रजाल अब खत्म होता जा रहा था।

विमल  कभी बेहोश पड़े लोगों को देखता ,कभी पीछे खड़े अट्टालिकाओं की श्रृंखलाओं को ध्वस्त होते हुए।

जैसे जैसे राजमहल के शीशे, चटकते जा रहे थे,पूरा वातावरण खिलने लगा था।ऐसा लग रहा था कि हवा वहां पर फिर से बहने लगी हो।

~~~

थोड़ी देर में सुबह का आगाज होने लगा।सूरज की किरणें धरती से टकराईं तो सबकुछ साफ दिखाई देने लगा।

विमल बहुत ही हैरान था कि वहां न तो कोई राजमहल था और न ही कोई उसके सबूत।
बस उछाड़े मारता समुद्र और उसके तट पर फैले मीलो मील बालू के मैदान।
एकबार विमल खुद भी भ्रमित हो गया।

अगर वो सभीलोग और उसके पिता  जो मायाविनी के चँगुल में थे ,वे सभी वहां पर  नहीं होते तो विमल को लगता कि वह कोई बहुत ही भयानक स्वप्न देखा है।

लेकिन वहां उपस्थित सभी लोग साक्षी थे इस सच्चाई का।

जब सूरज की रौशनी उन सबपर पड़ती है तो, जो लोग बेहोश थे उन सभीको अब होश आ जाता है।

उन्हें  लगता है कि बरसों तक लंबी नींद से जागे हैं।सब अपनेआप को जादुई चंगुल से मुक्त पाकर बहुत ही खुश होते हैं।किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि मायाविनी मारी गई है।
सब उसके भय से भयभीत थे कि कहीं फिर से  वह वापस न आ जाए और उनको फिर से पकड़ न ले।

विमल अपने पिता से मिलकर बहुत खुश होता है।

विजय जी,विमल के पिता अपनी आपबीती सुनाने लगते हैं।
विमल सुनकर हैरान हो जाता है।
बिल्कुल वही   कहानी विजय जी सुनाते हैं जो विमल के खुद के साथ घटा था।
..वही रेत के बवंडरों के साथ..अचानक ही...मायाविनी के चंगुल में फँस गए थे !!,

बस फर्क यही था कि विजय जी के पास जादूगर रतनसेन का दिया आईना  और स्वामी जयदेव जी का इत्र उनके साथ नहीं था।
क्रूर पिशाचिनी ने अपनी आँखों से इंद्रजाल रचकर विजय जी को अपने मायाजाल में फँसा लिया था।
वह और बाकी सभी एक भ्रम जाल में जी रहे थे।

विजय जी और बाकी लोग अपनी कहानी सुना ही रहे थे कि अचानक विमल को अपने बैग और आईने की याद आती है।
विमल अपना बैग कमरे में छोड़कर आया था।अब वहां किसी महल नहीं  का कोई नामोनिशान तक नहीं था।
विमल अपने बैग को खोजने लगता है।

उसका बैग उसी प्रकार से उसी रेत में पड़ा था।
विमल दौड़कर अपना बैग उठाता है और जल्दी से उसे खोलकर वह आईना निकालकर देखता है।

आईना को सहीसलामत देखकर विमल बहुत खुश होता है।

विमल--,,हैलो...!,गुडमॉर्निंग।,,

विमल सभीलोगों को बतलाता है कि इसी आईने के कारण वह आज इस मुकाम तक पहुंचा है।

आईना चुप ही रहता है।भीड़ के सामने वह कुछ नहीं बोलता।

सभी मौजूद लोग आईने को धन्यवाद देते हैं।

उसी समय लाठी टेकते हुए जादूगर रतनसेन आ पहुंचता है।
विमल उसे देखकर बहुत हैरान होता है।

वह बोलता है--,,बाबा,आप यहां?,,

रतनसेन--,,हाँ,बेटे मैं यहां ..!तुम्हें धन्यवाद कहने आया हूँ।
बेटा...आज मैं और ये सारे लोग बस तुम्हारी बदौलत हैं। अगर तुम न होते तो....न जाने कब तक परछाई बनकर घूमते रहना पड़ता।
...बहुतबहुत धन्यवाद तुमको ..।,, रतनसेन हाथ जोड़कर बोला।

विमल--,,यह आप क्या कह रहे हैं बाबा..!,धन्यवाद तो आपको..आपके दिए आईने के कारण ही आज मैं यहां तक पहुंचा हूँ।,,

रतनसेन--,,ह्म्म्म...!, सही बात है।मैनै तो कहा ही था कि यह कुछ मदद अवश्य ही करेगी।..
पर अब विदा लेने का समय आ गया है।आईने को अब मुझे दे दो..! मुझे थोड़ा जल्दी है..,अब उसका कार्य पूर्ण हो गया है।

विमल--( दुखीहोकर)--ओह..!!,यह मेरा मित्र मुझे छोड़ जाएगा..!!,बाबा। अब आप कहाँ जाएंगे।,,

रतनसेन--,,बस अब बची जिंदगी अपने पूजापाठ में बिताऊंगा।,,

विमल--,,बाबा,आपसे कभी मिल सकता हूँ।,,

रतनसेन--,,हांहां...,बिल्कुल बेटा,जब चाहो,तब मिल सकते हो... मैं तुम्हें पता बताता हूँ..लेकिन यह किसी को नहीं बताना..
अच्छा अब मैं चलता हूँ...अलविदा।,,

रतनसेन विमल से अपना आईना लेकर चला जाता है।

विमल उन्हें जाते हुए देखता है।
अब उस सुनसान रेत पर विमल समेत आठ-दस लोग मौजूद रहते हैं।

विमल सोचता है कि उस अज्ञात स्थान से बाहर कैसे निकला जाए !

..उसी समय आर्मी और सर्ववाइवल टीम के क्रू मेंबर्स विमल को ढूढते हुए वहां आ पहुंचते हैं।
मायाविनि के  मिटते ही उसके जादुई माया का भी अंत हो जाता है।

विमल के माइक्रो कैमरे का नेटवर्क फिरसे शुरू हो जाता है।
विमल के साथ इतने लोगों को देखकर  और उन सबकी आपबीती सुनकर क्रू मेंबर्स के होश उड़ जाते हैं।

न तो वहां कोई राजमहल ही था और न ही कोई सच्चाई..यकीन करनेवाला कोई भी तथ्य नहीं था,पर
विमल के अचानक गायब होने और उस अज्ञात स्थान पर मौजूदगी और इतने सारे लोगों की सच्चाई यह अहसास दिला रही थी कि क्या ऐसी शक्तियाँ सचमुच में हैं।

विज्ञान से ऊपर या अलग भी कोई विज्ञान है।तंत्र और माया पर भ्रम उत्पन्न करके एक दुनिया बनाकर बर्बरता पूर्वक उनपर शासन करना ।

और फिर दुश्मनी की वजह बस अपनी नफरत।

उस टीवीचैनल को एक नया मसाला मिल गया।वे लोग अपने अगले ट्रिप की तैयारी भी कर लिए।
नए एपिसोड में ऐसी ही मायावी शक्तियों की खोज और  उन सभी पीड़ितों के अनुभव पर अध्ययन करेंगे और फिल्म बनाएंगे।

सबसे हैरानी की बात तो विमल के साथ हुई थी।

रेत के बवंडरों के साथ उड़कर विमल अचानक मायावी तंत्रजाल में कैसै पहुंच गया।
और तो और उसका नेटवर्क बिल्कुल बंद होकर खुदबखुद शुरू भी हो गया।

रोजइन  विमल को गले से लगाकर रोए जा रही थी।
यह अचंभा हुआ था कैसै...यह आश्चर्यजनक था।


इतने बड़े ब्रेकिंग न्यूज़ के बाद  सरवाइवलिंग टीम को अपना प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा।

अब वो सबलोग वापस दिल्ली लौटने की तैयारी कर रहेथे।

~~

इधर ग्रेटरनोएडा में
रमाजी ,राधिका जी और पूरे परिवार वालों को इसबात का यकीन नहीं हो रहा था कि विजय जी जीवित हैं और घर लौट रहे हैं।

फोन पर इस सच्चाई को सुनकर रमाजी खुशियों से भरकर रोने लगीं।

लोगों की बधाइयां मिलनी शुरू हो गईं।
उन्होंने विमल से कहा--,,बेटा,तू तो सुपर सर्वावाइवलिस्ट है...गुमशुदा पिता को जीवित घर ले आया!,,

उन्हें गुरुजी स्वामीजयदेव जी बातें याद आने लगीं,जो उन्होंने कहा था --,, बच्चों पर थोड़ा विश्वास कर लेना चाहिए।,,

शिल्पी और रुचि दोनों की खुशियोंका ठिकाना ही नहीं था।
पुष्पेंद्र भी यह सुनकर बहुत ही आश्चर्यचकित था।उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।
वह बारबार अपनी मम्मी और रमाजी से पूछकर खुद को सांत्वना दे रहा था।

सारीबातें सुनकर वह भी फौरन अपने परिवार के साथ विमल और विजय जी के स्वागत के लिए दिल्ली आने के लिए निकल गया था।

शिल्पी बोली--,,मामी,शायद मामाजी ही विमल को बुलाया करते थे,तभी वह बारबार एक ही सपने देखता था।
कहीं न कहीं कोई बहुत बड़ा रहस्य छुपा है,इस सबके पीछे।,,

रमाजी--,,जो भी हो..जय कान्हाजी मेरी भक्तिऔर विश्वास की लाज रख ली।,,

राधिका--(रोते हुए ) मेरा भाई जिंदा वापस आ रहा है..बस ...हे प्रभु,सही सलामत घर तक पहुंचा देना।..जय स्वामीजी!,,

रमाजी की नजर सामने टंगी दीवारघड़ी पर जाती है।वह बोलती हैं

ओहो..बारह बज गए ....बस तीन घंटे...वो लोग पहुंचने वाले होंगे...जल्दी जल्दी रंगोली तुम सबलोग बना लो।

...अब पुष्प बेटा भी पहुंचने वाला होगा।
फिर वो लोग भी पहुंचते ही होंगे।
मीडिया,प्रशासन सबलोग आएंगे।

..अब मुझे सबके स्वागत की तैयारी कर लेनी चाहिए।,,

रमाजी आरती की थाली सजाने लगीं।

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समाप्त
स्वरचित और मौलिक
लेखिका--सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
सर्वाधिकार सुरक्षित
©®
#उपन्यास लेखन प्रतियोगिता


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2 Comments

बहुत खूबसूरत कहानी लिखी है आपने, पढ़ कर अच्छा लगा।

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Ashant.

22-Mar-2022 01:08 AM

Khoobsurat khani

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