वार्षिक प्रतियोगिता हेतु कहानी
विधा : लेख
शीर्षक : प्रर्यावरण और शहर
हजारों एकड़ में फैली हमारी पृथ्वी कितनी खूबसूरत सुंदर है ..! शहर हो या गांव प्रर्यावरण हमारे जीवन में बसता है ..! ऐसा रुप है जिसके बिना जीवन सम्भव नहीं ..!
कहीं तराई में निकलती कल कल नदियां कहीं हिमालय में सौंदर्य ,कहीं पठार ,कहीं मैदान ।
सैकड़ों वर्षों से निरंतर अपना अनुपम प्रेम उड़ेल रही है निस्वार्थ भाव से ।
यों तो हमारे इर्द-गिर्द सैकड़ों जंतुओं और जानवरों के स्पीशीज हैं ,उन सबको पाल रही हमारी पृथ्वी निस्संदेह कर्तव्य परायण है..।
हम कितने तथ्य जानते हैं ,इस धरती और प्रर्यावरण के बारे में, क्योंकि,दोनों ही एक दूसरे के पूरक हों ।
कभी प्रर्यावरण पेड़ में बसता है तो, कभी हरी पत्तियों में .. सूर्य से रौशनी लेता है और कार्बन डाइऑक्साइड और जड़ों से अवशोषित जल और महत्वपूर्ण खनिज लवण या तत्व की सहायता से भरे पेड़ों का भोजन बनाने में सहायक होता है । जिस प्रक्रिया में भोजन बनता है उसे फोटोसिंथेसिस कहते हैं । हरा रंग पत्तियों में एक पिगमेंट के कारण होता है जिसे 'क्लोफिल 'कहते हैं । जो पेड़ खुद अपना भोज्य बनाते हैं वह स्वपोषी ( autotrophs) कहलाते हैं ।
हरे पेड़ों से आक्सीजन का प्रवाह बहुत अच्छी मात्रा में होता है । मनुष्य और जानवरों के लिए आक्सीजन( O2) एक जीवन की इकाई है ।
आज की स्थिति में हमारे असीमित हरे जंगल आबादी की भेंट चढ़ गए हैं तो, हम प्रर्यावरण के विकास की राह से भटके गए हैं । क्या सच में हम अपनी प्रथम नागरिकता से वंचित नहीं हो गए हैं । जैसे कि हम जानते हैं कि ,हमारे जीवन का उद्देश्य है आस पास वातावरण को सुरक्षित रखना और प्रकृति से प्रेम करना ..!
कभी जंगलों में आदि काल का मानव निर्भर रहता था , वह अपने जीवन के आवश्यक संसाधनों को वहीं से पूरा करता था । चाहे आग चकमक पत्थरों से पैदा करना, वृक्षों की छाल से कपड़े पहनना , नदी के किनारे कृषि करना ,गुफाओं में रहना प्रर्यावरण ही मानव का चिर काल से मित्र रहा था । पेड़ों से फल फूल चुनना , जानवरों को घरेलू उपयोग में लाना तभी सम्भव हो पाया जब प्रर्यावरण समीप था ।
आदि ,से लेकर अनादि तक प्रकृति का पान मनुष्य ने सुविधा के हिसाब से किया है ।
आज इसका जंगलों का यह हश्र है कि,बड़ी- बड़ी इमारतों के बीच केवल एक ही पेड़ दिखाई देता है ,इसका मतलब है कि हमने अपने लिए कंक्रीट का घर तो खरीदा , परंतु वृक्षों की छत्रछाया से दूर हो गए ।
यह सच है प्रर्यावरण को नुकसान हुआ है तो उसकी कीमत मानव को ही चुकानी पड़ी है ।
कभी बहते स्वच्छ जल मिला करता था ,आज आर. ओ. एक्वा गार्ड ,मिनरल वाटर या बिसलेरी वाटर ने उसकी जगह ले ली है । कारण हमारा नदी के तट पर अत्यधिक मात्रा में जनसंख्या विस्तार , जहां बड़े -बड़े सीवर लाइन बिछाई गई है इसके अलावा वहां गंदगी का आए दिन रेला लगा रहता है ।
नहाना धोना , घरेलू कार्यों का बोझ नदी में किनारे इतना बढ़ जाता है कि समझ नहीं आता हम नदी में स्नान कर रहें हैं या किसी गंदी नाली में ।
" लोगों के अंदर शिक्षा तो है पर चेतना का अभाव है ।"
आए दिन स्वास्थ्य संबंधी विकार दिखाई दे रहें हैं । उनमें स्वांस की परेशानी सबसे मुख्य है । बड़े शहरों में ऑक्सीजन में प्रदुषण के पदार्थ उसकी क्षमता को कम कर देते हैं ,जैसे फैक्ट्री से धुआं निकलकर फेफड़ों में असर होता है और टी.बी.जैसे रोग पनपते हैं ..! दूसरा जब अकार्बनिक यौगिक,नाइट्रेट और सलफर जैसे हानिकारक तत्वों से ऐसिड रेन होती है जिससे हमारे ऐतिहासिक धरोहरों को हानी होती है ..। ऐसिड रेन का असर हमारे स्वास्थ्य पर भी होता है । प्रर्यावरण का सबसे संवेदनशील भाग , स्मॉग कार्बन यौगिक और अन्य जहरीले तत्व के मिश्रण से बना है , इंसान के लिए घातक रोग का न्योता दे रहा है ..! चार पहिया वाहनों व द्वी पहिया वाहन की सड़कों में निरंतर बढ़ना ही इसका कारण है..! ए.सी., जनरेटर से निकलती हानिकारक गैस हमारे वातावरण को दूषित व विषाक्त बना रही है ..।
जहां एक ओर हमारे प्रर्यावरण हमारे प्रेरणा स्रोत रहे हैं , वहीं दूसरी ओर इसकी अनदेखी नहीं कर सकते ..!
धर्म में प्रर्यावरण और पेड़ ---
मान्यता तो सदियों से थी कि सभी पेडों को पूजन हेतू लिया जाता था जैसे आम के पेड़ के पत्ते ,केले के पत्ते और पीपल के पेड़ की पूजा व वट् वृक्षों की अराधना का महत्व !
यहां तक की गौतम बुद्ध जी ने जिस पेड़ के नीचे प्रथम उपदेश दिया वह वृक्ष सदियों से याद किया जाता है वह एक मील का स्तंभ बन गया है अनेकों कहानियां ने उसी छांव में जन्म ली थीं..!
प्रकृति की गोद और प्रर्यावरण ---
प्रत्येक मनुष्य , जानवरों और पादप जंतुओं
का अपना आधार है । वह भी अपने को उचित वातावरण से ढाल लेते हैं उसी को एडेप्टेशन कहते हैं । इसी प्रर्यावरण में एक फूड वेब और चेन भी होती है । पहले वृक्षों द्वारा भोजन बनता है फिर उनको जानवरों द्वारा ग्रहण किया जाता है , फिर इन जानवरों को मांसाहारी जानवरों द्वारा भक्षित किया जाता है । सभी खेल इसी प्रर्यावरण के बीच होते हैं ।
हमने प्रर्यावरण को बदलें में क्या दिया ---
आज हमें सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं देने के बाद हमने प्रर्यावरण को दिया---
१) प्रदूषण
२)हवा में खतरनाक गैसे(सलफर, कार्बन मोनोक्साइड,लेड, CO2,)
३)जल में न्यूक्लियर रसायन,स्लेग , खतरनाक केमिकल और घरों के सीवर को खुली नदियों और रिहायशी इलाकों में नालों पर छोड़ा है ।
४)जंगल में वृक्षों की कटान और हरे चारे की कटान , पशुओं का अधिक मात्रा में चारे का उपयोग ।
५)भूमी अपवर्दन (वृक्षों की कटान से वृक्षों की जड़ों की मिट्टी ढीली पड़ गई और भारी बारिश में उपजाऊ मिट्टी बहा ले जाना, जंगल को भारी नुक़सान )
६) प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक का इस्तेमाल---(हमारे समानों की पैकिंग हो या कोई भी पैकिंग घरेलू उपकरणों या आफिस सभी में पोलिथीन का उपयोग अधिक मात्रा में होना )
७) ओज़ोन लेयर---ओजोन लेयर सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकती हैं । लेकिन , प्रर्यावरण की भारी क्षती के कारण यह बहुत पतली हो गई व छेद से पृथ्वी को नुक्सान हो रहा है ।
८) ग्लोबल वार्मिंग -- यह शब्द नया नहीं ! विश्व पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है । हमारे वातावरण में एक इमेजिन ग्लास हाउस है जो कि , पृथ्वी से दिनभर की गर्म हवा को शोषित कर लेता है और रात को उसे अवशोषित करता है परंतु समय से निरंतर इसका हांस हुआ और तापमान के बढ़ने के साथ यह ग्लास हाउस टूट गया है व कारण ग्लेशियर पिघल रहें हैं अनियंत्रित वर्षा हो रही है और बाढ़ का खतरा बढ़ा है ।
युद्ध --- विश्व अर्थव्यवस्था को देखें तो सम्पूर्ण विश्व न्यूक्लियर जंग में खाने और विकास से अधिक पैसा लगाता है ।चाहे न्यूक्लियर फेक्ट्री हो या कारखाने वहां जो भी केमिकल तैयार किया जाता है उसमें आस- पास रहने वालों की सेहत से खिलवाड़ किया जाता है । अगर हम हीरोशिमा और नागासाकी का उदाहरण देखें जिसमें अमेरिका द्वारा बम को हमलों में कितने लोग हताहत हुए । मारे गए लोग और जो जन्म लेते नवजात शिशु अपाहिज पैदा हो रहे थे । युद्धों से प्रर्यावरण और जान माल की बहुत बड़ी तबाही ही हुई है !
यदि समय रहते होड़ मानसिकता वाले देश ना चेते तो पृथ्वी जैसा खूबसूरत ग्रह से हाथ धो बैठेंगे ..!!
पृथ्वी जन्म लेते हैं वह मां है ।
सूर्य पिता हैं ।
पेड़ पौधे और जानवरों भाई बहन हैं ।
"आओ सबको प्रेम करें यह हमारा परिवार ही है " है ना ..!!
#लेखनी
#लेखनी लेख
#लेखनी लेख
सुनंदा ☺️
Seema Priyadarshini sahay
07-Mar-2022 05:35 PM
बहुत ही बढ़िया लेख है मैम
Reply
Marium
06-Mar-2022 06:16 PM
Nice
Reply