साहित्य
साँच को न आँच लगे मानकर लिखिए तो।
सत्यमेव जयते की सार साहित्य है।
वेदनाओं का समग्र सार जो समा चुकी है।
ऐसी भाव सरिता की धार साहित्य है।
देश जो लिखो तो कुछ रहे न अशेष भाव
माटी की सुंगध की फुहार साहित्य है।
युद्ध मध्य सैनिकों के उर में जो ओज भरे।
ऐसे वीरताओं की बौछार साहित्य है।
बंध बंध बंधन में बंधकर शब्द शब्द
बांधते हैं वेदनाएं बांधती है भावना।
आपके लिए भले ही रम्य राग लेखनी है
किंतु मेरे लिए है ये धवल दुलारना।
वासनाओं से परे जो प्रेम सोचते रहो तो
वर्ण वर्ण को वरण होती है आराधना।
निजता के भाव को जो लांघकर देखिए तो।
सौम्यता के शीर्ष हैं साहित्य की ये साधना।
©®दीपक झा "रुद्रा"
Shnaya
09-May-2022 06:13 PM
Nice 👍🏼
Reply
Anam ansari
07-May-2022 11:49 PM
Good
Reply
Neha syed
07-May-2022 11:48 PM
👏👏
Reply