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Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 32

अपडेट-32

दुसरे दिन सुबह जय जल्दी ही उठकर तैयार होकर अकेला स्वामी रामानंद के आश्रम जाने ले लिये रवाना हो गया। जय ने कीसी को नही बताया था की वो आज स्वामीजी से सब बाते करेगा। जय अकेला सुबह 9 बजे आश्रम मे पहुच गया। आश्रम मे जाने के बाद जय ने वोलंटीयर्स को पुछा की स्वामीजी को मिलना है तो उसे कुटिर मे ले जाया गया। कुटिर मे अंदर जाने के बाद थोडी ही देर मे उसे वोही सरबत दिया गया जिसे पीने के बाद आज कइ दिनो के बाद जय को एक अलौकिक आनंद की अनुभुति प्राप्त हो रही थी और उस का चीत अचानक शांत होने लगा। थोडी ही देर मे स्वामीनी ने प्रवेश किया और जय के सामने आकर बैठ गये। जय का स्वामीजी के साथ पहलीबार एकांत मे मिलना था। क्युकी वो जो बात करने आया था उस मे एकांत चाहिये था। फिर भी दो तीन वोलंटीयर्स तो थे ही, इसिलिये जय को अभी भी थोडी जिजक हो रही थी। जैसे जय का मन पढ लिया हो वैसे अचानक स्वामीजी ने अपने वोलंटीयर्स को एकांत की सुचना दी और सब धीरे धीरे बाहर चले गये और स्वामीजी और जय दोनो अकेले थे अब कुटिर मे। स्वामीजी ने आंखे बंध की और कुटिर मे पुर्णत: खामोशी छाइ हुइ थी।

 

कुछ वक़्त शांत रहने के बाद बडी श्रद्धा से जय ने स्वामीजी को प्रणाम किया और पुछा,” स्वामीजी, आप की आज्ञा हो तो मै कुछ बाते करने आया हु।

 

स्वामीजी ने धीरे धीरे आखे खोली और जय की आखो मे आखे डाल दी जैसे कोइ सम्मोहक शक्ती काम कर रही थी और एक अजब का ठंडापन जय महसुस कर रहा था। जय की आखे भारी हो चली और स्वामीजी की आवाज गुंज उठी,”बच्चे सही वक़्त पर आये हो। इश्वर ने तुजे सही कार्य के लिये सही वक़्त पर भेजा है। हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे।

 

जय को बडा आश्चर्य हुवा की यहा आने का तो उसने कीसी को बताया ही नही था, फिर भी स्वामीजी को कैसे पता चला की वो यहा आज ही आनेवाला है। फिर उसको पुरानी बाते याद आयी और सोचा की स्वामीजी तो इस ब्रह्मांड को पुरा जान सकते है तो उस के बारे मे कैसे नही जानेंगे। जय ने बडी आश्था से हाथ जोडे और आगे कहा,” स्वामीजी, मै अपने लिये नही अपने दोस्तो की जान की रक्षा के लिये यहा आया हु। पता नही मुजे क्यु ऐसा लगता है की वे लोग भटक गये है।

 

स्वामीजी ने मंद मंद मुमुस्कुराते हुवे कहा की,”बच्चे ऐसा कौन है जो दुसरो को भटका सके ? हमारे हाथ मे तो सिर्फ कार्य करना लिखा होता है। फल कदापी हमारे हाथो मे नही होता। कभी कभी जो हम सोचते है वो वास्तविकता होती ही नही और जो हमे दिखाइ नही देता वो कटु वास्तविकता हो सकती है।

 

जय बडी धीरजता से सुन रहा था क्युकी उसे बिलकुल बीच मे बोलने को मन नही हो रहा था। ये स्वामीजी की वाणी का प्रभाव था। लेकिन जय तो अपने दोस्तो के लिये आया था, इसिलिये उसने फिर से स्वामीजी को पुछा,” आप की बात सही है स्वामीजी, पर मेरे कुछ दोस्तो ने ऐसा कुछ कर दिया है एके उसकी जान को शायद खतरा है।

 

स्वामीजी अचनाक जोर से हस पडे और बोले,” बेटे, मृत्यु से डर रहे हो या वर्तमान से?”

 

जय कुछ समजा नही और आखे फाड फ़ाड के देखता ही रहा। थोडी देर के बाद फिर से स्वामीजी की आवाज गुंज उठी,” एक बात बताओ जय, तुमने समाधी ट्रस्ट क्यु अपनाया?”

 

जय ने जवाब दिया,”स्वामीजी आज विश्व मे एक समाधी ट्रस्ट ही है जो बच्चो को अच्छी  तालीम दे रहा है, पढाइ मे योगदान दे रहा है और साथ साथ हर एक मनुष्य को अपनी पहेचान दे रहा है। जिस का जो भी मुल्य हो उसे अपने आप से परिचय करवा रहा है। मै भी अपने आप को पहेचान ने के लिये ही यहा समर्पित हुवा हु।

 

स्वामीजी,” आप अपने आप से परिचेत होकर फिर क्या करते हो?”

 

जय,”स्वामीजी, अगर हमे हमारे ही पहेचान हो गयी तो फिर हमे कुछ सिखने की जरुरत ही नही रहती है न। क्युकी अगर हम हमे ही पहेचान लेते है तो हमारा उद्देश्य हमे प्राप्त हो जाता है और उस उद्देश्य के लिये ही हम जीते है और अपना जीवन सार्थक करते है।

 

स्वामीजी,” और तुम्हारा उदेश्य क्या है जय?, तुम्हारा कर्तव्य क्या है?”

 

जय कुछ पल शांत रहा और जवाब दिया,”मेरा उद्देश्य मेरे माताजी की सेवा है और वो जो कहे वोही मेरा उदेश्य होगा, कर्तव्य होगा।

 

स्वामीजी,”और तुम्हारी माताजी क्या चाहती है?”

 

जय,”मेरे पिताजी नही है और मेरी माताजी कहती है की मेरा जन्म कुछ विश्वकल्याण के लिये हुवा है, खुद आपने भी एक्बार मेरे लिये कुछ ऐसा ही बोला था, लेकिन मै आज तक अपने आप को जान नही पाया हु की मुजे क्या करना है?”

 

स्वामीजी,”जय, तो पहले अपने आप को जानो, तुम आज इसिलीये नही आये हो की तुम्हे अपने दोस्तो की परवा है, देखो ये बहुत सुक्ष्म प्रक्रिया है, क्युकी मन की गती सब से तेज है। मनुष्य अपने मन को जाने इस के पहले तो गाडी छुट जाती है। इसिलिये मै तुम्हे आज अपने आप से परिचय करवा रहा हु। तुम्हारे मन मे पिछले कइ दिनो से जो अशांति चल रही है उसकी वजह ही तुम्हारा उद्देश्य की प्राप्ति करना है। क्युकी आज वर्तमान मे तुम अपने उदेश्य प्राप्त करने से बहुत करीब चुके हो।

 

जय एक चित होकर सुन रहा था। स्वामीजी ने फिर आखे बंध कर ली और अचानक दुर से आकाशवाणी हो रही हो वैसी स्वामीजी की आवाज गुंजने लगे,”जय, शायद एक मनुश्य होने के नाते, अथवा चित अशांत होने की ववजह से तुम अपने उदेश्य को जान नही पा रहे हो। बेटे विश्व कल्याण का अर्थ क्या होता है? जुल्म सहना भी तो गलत ही हुवा ना।

 

अचानक ये बात सुनकर जय से रहा नही गया और उसने बीच मे ही पुछ लिया,” स्वामीजी, क्या आप सबकुछ जानते है जो मेरे दोस्त कर रहे है उस के बारे मे?”

 

स्वामीजे ने थोडी देर तक कुछ बोलने के बाद धीरे धीरे अपनी आखे खोली और बताया,” बच्चे, मेरा आशिर्वाद लेकर ही उन सब ने ये कार्य शुरु किया है।

 

जैसे बोम्ब विस्फोट हुवा हो ऐसा शोर जय के दिमाग मे उठा और कान मे सुन ने की शक्ति ना रही हो वैसा ही हाल जय का हुवा जब ये शब्द जय ने सुने। जय को बडा अजीब लगा और सोच रहा था की क्या एक धर्मगुरु नवयुवानो को ऐसे कार्य मे आशिर्वाद दे सकते है जो बिल्कुल एक बदला हो, एक नीजी बदला हो, एक वास्तविकता की पराकाष्ठा हो।

 

अभी जय कुछ आगे सोचे उस के पहले स्वामीजी ने दुसरा विस्फोट कर दिया और पुछा,”जय, कलकत्ता गये थे मिली से मिलने के लिये?”

 

अचानक मिली का नाम सुनते ही जय की आखे फटी रह गयी और उसने स्वामीजी के सामने देखा, एक सम्मोहन था उसकी आखो मे। जैसे स्वामीजी की आखे तीर की तरह उसके ह्रदय मे चुभ रही थी और जय का चेहरा हामे घुम रहा था।

 

जय ने बडी अधीरता से पुछ ही लिया,” स्वामीजी हम गये थे लेकिन वहा हमे बताया गया की मिली वहा से चली गइ है और कीसी को पता नही है की वो कहा है?”

 

स्वामीजी ने आखे खोली, लेकिन पहलीबार जय ने स्वामीजी की आखो मे करुणता देखी और वो बोल उठे,”बेटे हम जानते है।

 

जय को अचानक वो सब बाते याद गइ और बोला,”स्वामीजी मेरे दोस्तो ने उसे देखा है और मै इसिलिये गया था की वो कौन है क्युकी उसका चेहरा.....

 

जय आगे बोले उसके पहेले स्वामीजी ने बताया,”उस का चेहरा बिल्कुल अपनी माताजी पर गया है सुनंदादेवी पर।

 

जय को आज पाच मीनीट मे ये तीसरा झटका लगा था। उसका चेहरा तंग हुवा और कुछ समय तो वो बोल ही नही पाया और फिर बोला,” स्वामीजी ये आप क्या कह रहे है? इसका मतलब मिली मेरी बहन है। मेरी फुफी की बेटी।

 

स्वामीजी ने आखे फिर बंध की और करुणता मे अपना सिर हीलाया और फिर बोले,”हम जानते है जय, पहले नही जानते थे लेकिन साजन ने हमे यहा आकर पुछा और बताया की मिली जैसी ही चेहरेवाली लडकी का फोटो तुम्हारे घर मे है तो हमने चितशक्ति से पुरा रहस्य जान लिया। इसिलिये तो हमने कहा की हम तुम्हार इंतेजार कर रहे थे। क्युकी साजन और आप के कुछ दोस्त ने जो मिशन शुरु किया है उसका जड ही ये लडकी मिली है।

 

ये तीसरा झटका था और जय का सिर चकराने लगा और उसने अधीरता से पुछ लिया,” क्या? स्वामीजी ये आप क्या कह रहे है? क्या म...म...मिली की वजह से? साजन और बाकी सब ने क्रांति शुरु की है? इसक मतलब मिली की जान को खतरा है? क्या मिली ज़िंदा है या नही?”

 

उतावलेपन से जय आधा खडा हो उठा था। स्वामीजी ने उसे शांत रहने को इशारा किया तो जय कुछ सेकंड्स मे स्वस्थ होकर आगे सुन ने के लिये बेताबी से इंतेजार करने लगा। स्वामीजी थोडी देर के बाद आगे बोले,”तुम सही नतीजे पर पहुचे हो। मिली तुम्हारी बहन है। लेकिन हमारी बेटी जैसी है।

 

जय,”और मेरी फुफी कहा है, मिली की माताजी ?

 

स्वामीजी,”वो अब इस दुनिया मे नही है। हमने छोटी सी मिली को कलकता की गंदी गालियो से बचकर अपने आश्रम ले आये थे और साधिका के रुप मे तैयार किया था।

 

जय,”किया था मतलब? अब मिली कहा है?”

 

स्वामीजी,”खेंगारसिह के पास बेटे।

 

ये चौथा झटके से जय की आखे फटी रह गयी थी, क्युकी उसने न्युज पेपर मे पढा था की खेंगारसिह राजस्थान के होम मिनिस्टर है।

 

जय कुछ सोचे उस के पहले पिछले कुछ मिनिट्स मे स्वामीजी ने उस को चौथा झटका दिया था। जय ने फिर भी पूछ लिया,”स्वामीजी, मेरी बहन वहा क्या कर रही है?”

स्वामीजी,”राजस्थान के वर्तमान परिस्थितियो मे वहा के नेताओ ने हमे जोर डाला था की हम उसके लिये प्रचार करें और उसको सत्ता हासिल करने मे सहयोग करे, लेकिन हमारा ये मिशन नही है। इसिलिये उन लोगो ने हमारी बेटी जैसी साधिका को किडनेप कर लिया है।

 

और इस पाचवे विस्फोट ने जय को पागल सा बना दिया और जय एक्दम से खडा हुवा और गुस्से से लाल हो चुका था। लेकिन स्वामीजी ने उसे बैठने का इशारा किया और आगे बोले,”बच्चे तुम चिंता मत करो हमारे होते हुवे मिली को कुछ नही होगा। क्युकी मिली खुद इतनी पहुची हुयी साधिका है की परमात्मा उसकी रक्षा कर ही रहा है। बल्की जो भी कुछ हो रहा है वो मिली की मदद से ही हो रहा है।

 

अब ये छठ्ठा विस्फोट सुन ने के लिये जय का मन अशांत हो उठा था और जय अवाचक बन के बैठा था,”स्वामीजी मै अभी भी कुछ समज नही पा रहा हु। एक तरफ मिली उसकी क़ैद मे है, दुसरी तरफ आप बिलकुल शांत तरीके से मुजे समजाने की कोशिश कर रहे है की मै बिलकुल चिंता नही करु। आप कहना क्या चाहते है, करना क्या चाहते है ?”

 

इसबार स्वामीजी कुछ देर तक आखे मीचे बैठे रहे और जय अधीरता से उस के जवाब की राह देख रहा था। कुछ पल के बाद स्वामीजी ने आखे खोली और बोले,”बेटे, साजन और कुछ दोस्तो ने क्रांति का मिशन इसिलिये शुरु नही किया क्युकी वो अपना नीजी बदला ले सके, बल्की वो समाधि ट्रस्ट के मिशन को अच्छी  तरह पहेचानते है। हम चाहते है की आनेवाला हिंदुस्तान मे अच्छे लीडर्स हो जो इस देश का ही नही बल्की पुरे विश्व का कल्याण करे और हम आज तुम्हे तुम से परिचय करवा रहे है की तुम्हारा जन्म ही इसिलिये हुवा है। हमने पहले भी कहा था की तुम जरुर समाधि ट्रस्ट को जरुर अपनाओगे, क्युकी हमे हमारे गुरुओ से संकेत मिल चुका था। हमे अत्यंत खु़शी हो रही है की समाधि ट्रस्ट का मुल हेतु आज सिध्ध होने जा रहा है। शायद शुरुआत तुमसे होनी थी। इसिलिये मिली जैसी साधिका का अपहरन भी हमारे लिये विचलित होने की घटना नही है। क्युकी इस विश्व मे जो भी घटना घटित होते है उसके पिछे कुछ ना कुछ अच्छाइ छीपी  होती ही है। ये अलग बात है की साजन और उसके दोस्त मिली के बारे मे कुछ नही जानते और ही तो कभी उनलोगो ने तुम्हारा नाम लिया है। वे लोग मेरा आशिर्वाद इसिलिये लेने आये थे की समाधि ट्रस्ट के दो साधक भी उन लोगो के साथ है और जो भी अभी तक हुवा है वो केवल मिली की सहायता से ही हुवा है। आगे तुम जब तुम्हारे दोस्तो से मिलोगे तब सब पता चल जायेगा तुम्हे। क्युकी वे लोग मिली का कुछ अनर्थ कर ही नही सकते। लेकिन तुम्हारा जन्म ही शायद इसिलिये हुवा है की इस मिशन की आगेवानी तुम्हे करनी है। कोइ भी मनुष्य बीना कोइ वजह से कुछ नही करता। इसीलिये यह घटना घटित हुयी है की मिली जो तुम्हारी बहन है उसका अपहरन किया गया है और उसे बचाना और राजस्थान के कपटी सत्ताधिशो की शान ठिकाने पर लाना विश्वकल्याण का तुम्हारा पहला मिशन बननेवाला है।इतना कहकर स्वामीजी बिलकुल शांत हो गये।

कुछ पल के लिये जय शुन्य हो गया और फिर धीरे धीरे जय का चित बिलकुल ठंडा होता गया। अचानक अच्छी सुगंध का माहोल वहा छा गया। चन्दन की खुश्बु छाने लगी। जय ने आखे बन्ध कर ली बल्की उस की आखे अपने आप ही भारी हुयी और बन्ध हो गयी। उसकी आखो के सामने फिर से वो अन्धेरा छा गया, एक औरत की छाती फिर से दिखाइ देने लगी और फिर धीरे धीरे एक साधु दिखाइ दिये, फिर आगे उस के सामने एक अलौकिक प्रकाश छा गया। सफेद रंग का प्रकाश और जैसे जय पर आशिर्वाद की बारिश हो रही थी और स्वामीजी ने जय के सिर पर हाथ रखा जैसे की परमात्मा की वाणी बरस रही थी की,”जय, उठ और अपनी आत्मा को जगा, तेरे आगे धर्मयुध खडा है और तु ऐसे बैठे बैठे देख नही सकता। तुजे लडना होगा। तेरे लिये नही तो विश्व कल्याणॅ के लिये तुजे लडना होगा। तुजे लडना ही होगा।“

 

जय महेसुस कर रहा था की जैसे क्रिष्न अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे थे, जैसे क्रिष्ना अर्जुन को धर्मयुद्ध एक लिये आज्ञा दे रहे थे। जय का चित जो कइ दिनो से अपने अप से लड रह था वो इलकुल शांत हो चुका थाऔर मन मे अत्मजाग्रुती की भावना शायद प्रकट हो चुकी थी। जय की आखो से ऐसे ही आसुओ की धारा बह रही थी और मन मे द्रढ संकल्प बन चुका था की आज से वो धर्मयुद्ध शुरु कर रहा है। वो खडा हुवा और स्वामीजी का आशिर्वाद लेने के लिये जुका और साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। फिर स्वामीजी के शब्द उस के कानो पर पडे,”तुम्हारा कल्याण हो, तुम्हारे हर जगह फतेह हो बच्चे। पुरी कायनात तुम्हारे साथ है। जाओ और जग कल्याण का कार्य आरंभ करो।“

जय धीरे धीरे पिछे कदमो से कुटिर से बाहर नीकलने लगा। अब उसे अपने माताजी को पुछने की भी जरुरत नही थी। क्युकी राजेश्वरीदेवी के आदेश अनुसार उसने समाधि ट्रस्ट को दुबारा टेस्ट भी कर लिया था और मिली के बारे मे भी जान लिया था। आज उसको अपने उद्देश्य की प्राप्ती हो चुकी थी। आज्ञा तो उसे राजेश्वरीदेवी और गुरुजी दोनो तरफ से मिल चुकी थी। बस अब युद्ध के लिये तैयार था, बडी क्रुतज्ञता से वो कुटिर से बाहर नीकला। कुटिर से अंदर गया हुवा जय का पुनर्जन्म वाला जय कुटिर से बाहर नीकला था।

अब जो होनेवाला था, जो घटनाये होनेवाली थी वो जय की जिन्दगी को बदलनेवाली तो थी ही लेकिन साथ मे कइ जिन्दगी दाव पे लगनेवाली थी। जय ने जो भी सोचा, जो भी समजा था, उस मे बिलकुल गलती की गुंजाइश नही थी।

 

बस एक ही गलती की थी जय ने की अपने आप को जीवन मे पहेलीबार जीवन समजा था और सम्पुर्ण मानव मान लिया था। अगर बच्चा बनकर कम से कम एक बार अपनी मा राजेश्वरीदेवी को पुछ लिया होता या तो फोन कर लिया होता या स्वामीजी की कुटिर से बाहर नीकलते वक़्त अपनी आखे खुल्ली रखी होती तो......

...तो शायद अभी भी इतिहास बदल सकता था। लेकिन कुदरत है न फिर से एक और चाल चली थी जय की जिन्दगी मे। लेकिन जैसे स्वामीजी ने कहा न की कोइ भी घटना ऐसे घटित नही ह्ती। उस के पीछे कुछ न कुछ उद्देश्य जरुर रहता है। लेकिन कौन सा उद्देश्य....कौन जाने कहा????

 

*****

 

 

 

 

 

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6 Comments

वैभव

27-Mar-2022 09:13 AM

हर पार्ट की तरह इसमे भी लास्ट में सस्पेन्स छोड़ दिया आपने पढ़ कर अच्छा लगा।

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PHOENIX

27-Mar-2022 09:15 PM

Thank you

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Rohan Nanda

22-Mar-2022 07:21 PM

Intresting

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PHOENIX

22-Mar-2022 08:14 PM

Thanks

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Marium

08-Mar-2022 12:54 AM

Bahut achi kahani h sr apki

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PHOENIX

08-Mar-2022 01:05 AM

Thanks

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