Sunanda Aswal

Add To collaction

वार्षिक प्रतियोगिता हेतु कविताएं


विधा : काव्य
शीर्षक:वृद्धावस्था और एक ठूंठ वृक्ष का ।

देखा सुदूर एक ठूंठ वृक्ष का ,
जर -जर मैदान में अवचेत था ..!

कभी ,बासंतिक छवि का आवरण, 
ओढ़ी थी छठा हरित लचका पर्ण -पर्ण ..!

नव किसलय सुसज्जित सजा हुआ,
पल्लवित सौंदर्य सुगंधित महका था..!

प्रकृति छटा सावन अंक में लिपटी,
शिख से नख तरु की डाली- डाली ..!

पतझड़ के आगमन से पहले वृक्ष ठिठुरा,
रोष ,उसके हीय का पिघला था ..!

रुग्ण देह से गिरने लगे पात-पात,
सूख रहा जल बनता था वाष्प ..!

बदल गई तस्वीर और भाग्य भी ,
पृष्ठ जीवन के पलटे सुनहरे दिन भी ...!

समय के झंझावातों से जा गिरा था,
कभी जो बातें हवा से करता था..!

आज थोड़ा डरा- सहमा है ,
उम्र के पड़ाव का सच गिनता है ..!

रक्त नहीं ,ठूंठ बना हुआ था,
वक्त के हाथों मर्म पहुंचा था ..!

मधुकर बना दिए घरौंदा अपना,
ना रहा उसका अपना सपना ..!

#लेखनी
#लेखनी काव्य
#लेखनी काव्य 
सुनंदा ☺️






   5
3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

10-Mar-2022 05:08 PM

बहुत खूबसूरत

Reply

Lotus🙂

10-Mar-2022 01:36 PM

बहुत खूब

Reply

Dr. Arpita Agrawal

09-Mar-2022 12:17 AM

बेहद खूबसूरत सृजन 👌👌

Reply