वार्षिक प्रतियोगिता- लेख- दुर्लभ चीज
दुर्लभ चीज़
हम न जाने दिन में कितनी बार साँस लेते हैं और छोड़ते हैं, यह हमें शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया लगती है, जिसके बारे में कभी दो घड़ी भी ठहरकर सोचते नहीं। साँसों की इस निरन्तरता के कारण ही तो हम जीवित हैं। मैंने साँसों की महत्ता को कभी समझा नहीं था, वैसे भी जो चीज़ आसानी से हमें मिल रही हो, उसकी अहमियत को हम समझते ही कहाँ है।
यह साँसे चलती कैसे हैं? ऑक्सीजन से और ये ऑक्सीजन हमें मिलती है पेड़-पौधों से।
जब मुझे कोरोना हुआ तो मुझे जीवन की अहमियत, अपनी साँसों की अहमियत और साँसों को मिलने वाली ऑक्सीजन की अहमियत समझ में आयी। जब कोरोना के कारण मुझे निमोनिया हो गया, मेरे फेफड़ों में इन्फेक्शन हो गया और एक-एक सांस लेना दूभर हो गया तब मुझे एहसास हुआ कि मरने की बातें करना आसान है, लेकिन जब मौत सामने खड़ी हो तब आप मरना नहीं चाहते, जैसे भी हो जीना चाहते हैं।
मैं ऑक्सीजन के लिए तरस रहा था और ऑक्सीजन का मिलना दुर्लभ हो गया था। मुझ जैसे कई मरीज कोरोना के आई सी यू वार्ड में मौत से लड़ रहे थे और ऑक्सीजन का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन ऑक्सीजन सिलिंडर मिल ही नहीं ले रहे थे, चारों तरफ ऑक्सीजन सिलिंडर की काला बाजारी हो रही थी। ऑक्सीजन सिलिंडर मिलना दुर्लभ हो गया था, जीवन बहुत महँगे दामों पर बिक रहा था।
उस वक़्त मुझे एहसास हुआ कि ऑक्सीजन सबसे जरुरी और सबसे दुर्लभ चीज है। ऑक्सीजन है तो साँसे हैं और साँसे है तो जीवन है। उस दिन वार्ड से कई लोगों की लाशें बाहर गयीं थी और मैं बिस्तर पर पड़ा-पड़ा अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा था। तभी नर्स ने आकर ऑक्सीजन सिलिंडर लगा दिया और मैं बच गया। उस वक़्त मुझे लगा ऑक्सीजन सबसे दुर्लभ चीज है, इसे बचाकर रखना चाहिए।
पूर्णतः ठीक होने के बाद एक जमीन खरीदकर उस पर पेड़ लगाने का निर्णय लिया। अब मैं अपना सारा समय पेड़ों की देखभाल को देता हूँ और प्रकृति के सानिध्य में जीवन यापन करता हूँ।
❤सोनिया जाधव
Seema Priyadarshini sahay
10-Mar-2022 05:24 PM
👏👏वाह मैम बहुत बेहतरीन
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Swati Sharma
09-Mar-2022 03:31 PM
बहुत सुंदर
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