तुम
तुम क्या हराओगे उस सिरफिरे को,
जो अपने पैबंदो को खुद ही सिलता है ।
तुम क्या रूला पाओगे उस पागल को,
जो आंखों में नीर होंठो पर मुस्कान लिये रहता है ।
तुम क्या हरा पाओगे उसके हौंसलों को,
जो पांव में ज़ख्म के बाद भी मंजिल की राह चलता है ।
तुम क्या मिटा पाओगे उसके जीवन से रोशनी,
जो दिया बन जल कर दूसरो के जीवन को रोशन करता है ।
तुम क्या डराओगे उसे लू के थपेड़ो से,
वह तो स्वयं दूसरो के लिए छतरी बन जाता है ।
नीरू