Neeru Nigam

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तुम

तुम क्या  हराओगे उस सिरफिरे को,

जो अपने पैबंदो को खुद ही सिलता है ।


तुम क्या  रूला पाओगे उस पागल को,

जो आंखों में नीर होंठो पर मुस्कान लिये रहता है ।


तुम क्या हरा पाओगे उसके हौंसलों को,

जो पांव में ज़ख्म के बाद भी मंजिल की राह चलता है ।


तुम क्या मिटा पाओगे उसके जीवन से रोशनी,

जो दिया बन जल कर दूसरो के जीवन को रोशन करता है ।


तुम क्या डराओगे उसे लू के थपेड़ो से,

वह तो स्वयं दूसरो के लिए छतरी बन जाता है ।



नीरू


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