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ज़िन्दगी गुलज़ार है

१३ अगस्त – कशफ़

कॉलेज से फ्री होने में बहुत थोड़ा अरसा रह गया है और फिर मुझे अमली ज़िन्दगी का आगाज़ करना होगा. ये सोच कर ही मुझे वहशत होती है कि मुझे वापस अपने घर जाना होगा और जब तक कोई जॉब नहीं मिलती, वहीं रहना होगा. वहाँ की किसी भी चीज़ से मुझे अपनाइयत नहीं है, पर अभी तो मुझे फाइनल सेमेस्टर का मरहला (मंज़िल, पड़ाव) तय करना है. ज़ारून मुझसे माज़रत (माफ़ी मांगना) करने के बाद कॉलेज से गायब हो गया था और मैं बहुत मुतमइन (बेफ़िक्र) थी, मगर अब वो फिर से कॉलेज आने लगा है और मेरी सारी ख़ुशी रुखसत हो गई है. मैं खौफज़दा हूँ कि कहीं वो फिर पहले जैसी हरक़त ना करे.

कितना मुश्किल होता है, हम जैसे लोगों का इज्ज़त से रहना, मगर मुझे अपने और अपने खानदान के लिए इज्ज़त हासिल करनी है, हर कीमत पर और ये इज्ज़त मुझे किसी के साथ नेकी करके नहीं मिलेगी, इज्ज़त सिर्फ रुपये से मिलती है. दूसरे लोग शायद नेकी करके उसके बदले इज्ज़त की ख्वाहिश करें और हो सकता है खुदा उन्हें इज्ज़त दे भी दे, मगर मुझे किसी नेकी के बदले खुदा नई आज़माइश तो दे सकता है, इज्ज़त नहीं. अगर खुदा मेरे साथ अच्छा सुलूक नहीं करता, तो मैं भी किसी के साथ अच्छा सुलूक नहीं करूंगी. यहाँ जो लोग गुनाह करते हैं, सिर्फ वही ऐश और मज़े करते हैं. नेकी करने वाले तो सिर्फ धक्के खाते हैं और मैं अब धक्के खाना नहीं चाहती.

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2 Comments

Radhika

09-Mar-2023 04:29 PM

Nice

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Alka jain

09-Mar-2023 04:15 PM

शानदार

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