दुर्लभ चीज़
दुर्लभ चीज
सीमा अपने माता-पिता के साथ एक कस्बे में रहती थी। स्नात्तकोत्तर पूर्ण करने के पश्चात उसने पी. एच. डी. करना शुरू किया। एक दिन उसके एक करीबी मित्र ने उसे एक महाविद्यालय में अध्यापन हेतु प्रस्ताव दिया। महाविद्यालय एक ऐसे ग्रामीण क्षेत्र में था जहाँ आने-जाने के लिए सुविधाओं का अभाव था, अतः सीमा के मन में दुविधा थी।
सीमा की माँ ने समझाया कि विद्यालय जहाँ भी हो, जैसा भी हो, एक शिक्षिका का कर्त्तव्य है -छात्रों का सर्वांगीण विकास, चाहें कितनी ही कठिनाइयाँ आएँ, कभी पीछे न हटना। सीमा ने माँ की बात मानकर महाविद्यालय में अध्यापन कार्य प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय पश्चात जब स्वतंत्रता दिवस आने वाला था तो सीमा ने वहाँ की कुछ छात्राओं को समारोह के लिए नृत्य सिखाना चाहा किंतु अगले ही दिन उन छात्राओं के माता-पिता ने आकर प्राचार्य महोदय के सामने सीमा से कहा कि हमारी बिटिया मंच पर खड़े होकर दूसरों को खुश करने यहाँ नहीं आतीं। हमने इनको पढ़ने भेजा है जिससे इनका ब्याह अच्छे घर में हो सके। सीमा उनकी बातें सुनकर स्तब्ध हो गयी। प्राचार्य जी भी स्थिति देखकर कुछ कह नहीं सके। सीमा ने दुखी होकर उस महाविद्यालय को छोड़ने का निर्णय कर लिया। जब सीमा घर पहुँची तो माँ ने उसे परेशान देखकर कारण पूछा। पूरी बात जानकर माँ ने सीमा से कहा कि बेटा दुनिया में अलग-अलग सोच के लोग हैं। तुम्हें उन छात्राओं के विषय में सोचना चाहिए जो इस मानसिकता के चलते आगे नहीं आ पाएंगी। इस सोच से भागने की नहीं बल्कि उसको बदलने की ज़रूरत है। माँ की बात सुनकर सीमा को अपने कर्त्तव्य का अहसास हुआ। अगले दिन सीमा ने उन सभी माता-पिता को बुलवाया और कहा कि मैं भी आपकी बेटी के समान हूँ, क्या आपको लगता है कि एक लड़की होकर मैं किसी लड़की को गलत कार्य करने को कहूँगी। आज मेरे माता-पिता मुझ पर गर्व करते हैं, मुझे एक मौका दीजिए अपनी दूसरी बहनों को आगे लाने का, अगर आपको कुछ गलत लगे तो मैं दोबारा कभी उन्हें किसी कार्यक्रम में भाग लेने को नहीं कहूँगी। बहुत समझाने पर छात्राओं के माता-पिता सीमा को एक मौका देने के लिए मान गए।
सभी छात्राओं ने कड़ा परिश्रम किया क्योंकि उनको ऐसा मौका पहली बार मिला था। 15 अगस्त का दिन आ गया, सभी माता-पिता भी विद्यालय में आ चुके थे। जैसे ही छात्राओं ने देशभक्ति के गाने पर अपना नृत्य प्रस्तुत किया, सभी झूम उठे। लोगों ने बच्चों को शाबाशी दी तथा उनके माता-पिता की भी सराहना की। माता-पिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है किंतु अपने बच्चों का प्रदर्शन देखने के बाद उनकी आँखों में भी खुशी के आंसू थे। उन्होंने सीमा के आगे हाथ जोड़कर अपनी सोच के लिए माफ़ी मांगी। सीमा ने उनसे कहा कि हम बेटियों को आप लोगों के आशीर्वाद तथा प्रोत्साहन की आवश्यकता है जिससे हम समाज में अपनी पहचान बना सकें तथा अपने माता-पिता का नाम रोशन कर सकें। बच्चों के माता-पिता ने कहा कि मैडम जी हमें आप पर पूरा भरोसा हो गया है। आज के बाद हम अपनी बेटियों को भी आगे बढ़ाएंगे। उन छात्राओं ने सीमा को धन्यवाद कहा और गले से लग गयीं। अब उन छात्राओं के चेहरे पर डर नहीं आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था। कुछ समय बाद सीमा की शादी दूर शहर में हो गयी और उसे उस महाविद्यालय को छोड़ना पड़ा। सीमा की शादी को लगभग 10 वर्ष बीत गए किंतु आज भी कोई शिक्षक दिवस ऐसा नहीं गया जब उन छात्राओं ने सीमा को याद न किया हो। उन छात्राओं में कुछ अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यरत हैं। छात्राएँ सीमा से सदैव यही कहती थीं कि आप हमारी ज़िंदगी में एक फरिश्ते की तरह आयीं और हमारी ज़िंदगी बदल दी। सीमा के प्रति उन बच्चों का प्रेम और आदर भाव उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। छात्राओं के चेहरे कर वह आत्मविश्वास और उनके माता-पिता के आँखों के आंसू मेरे लिए ऐसी दुर्लभ चीज थी जिसका मोल कोई नहीं लगा सकता।
अयांश गोयल
नोएडा, उत्तरप्रदेश
Gunjan Kamal
12-Mar-2022 08:30 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Lotus🙂
12-Mar-2022 12:51 AM
बेहतरीन
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