अंतर्द्वन्द्व
अंतर्द्वंद्व
कभी सोचता हार गया मैं,
कभी सोचता जीत गया।
हार-जीत के द्वंद्व युद्ध में,
समय सुनहरा बीत गया।
ह्रदय सदा निर्देशन देता,
पोछो आंसू मत बहने दो।
मर्यादा को मर्यादा की,
मर्यादा में ही रहने दो।
है हृदय बताओ टूटी वीणा,
गीत भला क्या गाएगी।
यदि आंसू का सागर हो,
दो-चार लहर तो आएगी।
बार-बार तुम क्यों कहते हो,
युवा भावना होती अंधी।
तुम क्या जानो यही भावना,
मेरी प्रीति सगी संबंधी।
ये भाव जहां भी जाते हों,
इनको सलिला बन बहने दो।
इनकी नियति यही संभवतः,
इन्हीं व्यथा ही कहने दो।
- सतेन्द्र नाथ चौबे
ऋषभ दिव्येन्द्र
25-Jun-2021 06:55 PM
मर्यादा को मर्यादा की , मर्यादा में ही रहने दो.... ❤️❤️❤️❤️ जबरदस्त लिखा है आपने जबरदस्त 👌👌👌👌
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Satendra Nath Choubey
11-Jul-2021 08:02 AM
शुक्रिया ऋषभ जी
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Niraj Pandey
25-Jun-2021 04:58 PM
वाह👌👌
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Satendra Nath Choubey
11-Jul-2021 08:03 AM
धन्यवाद पाण्डेय जी
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Swati chourasia
25-Jun-2021 04:53 PM
Very nice 👌
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Satendra Nath Choubey
11-Jul-2021 08:03 AM
धन्यवाद स्वाति जी
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