कविता - आमदनी

||आमदनी||


आमदनी अठ्ठन्नी और ख़र्चा रूपईया ...

ऐसे ही नहीं कहते हैं भैया ...

आटा , तेल , दूध... सबके दामों ने रुलाया है ,

रुपया – दो रुपया धीरे – धीरे बढ़ते गए सब ,

पर लौट के वापिस कोन्हूँ नाहीं पुराने दाम पे आया है,

आमदनी अठ्ठन्नी और ख़र्चा रूपईया ...

ऐसे ही नहीं कहते हैं भैया ...

डीज़ल , पेट्रोल , गैस के ;  नेताजी ने थामे दाम,

चुनाव की नज़दीकी में राजनीति की यही भाषा है ,

नेताजी ने एक बार फिर एक आस में सबको बाँधा है,

चुनाव ख़त्म और आस भी ख़त्म ,

मँहगाई ने फिर किया षड़यंत्र ,

आमदनी अठ्ठन्नी और ख़र्चा रूपईया ...

ऐसे ही नहीं कहते हैं भैया ...

🌻लेखिका ✍️©®शिवांगी शर्मा
🌻©®Shivangi Sharma - शब्दों के शिखर
🌻स्वरचित , मौलिक व सर्वाधिकार सुरक्षित




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7 Comments

Abhinav ji

17-Mar-2022 11:55 PM

Very nice

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Gunjan Kamal

13-Mar-2022 11:01 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Thank you 🙏🙏❤️❤️😊

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Rohan Nanda

13-Mar-2022 08:46 PM

वाह बहुत बहुत बढ़िया, काफी इफेक्टिव लिखा है।

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Thank you🤗🤗🙏🙏

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