चप्पल हो गयी गुम, छोटा बच्चा हुआ मायूस
गर्मियों की छुट्टिया स्कूली बच्चों के लिए एक वरदान की तरह होती है। दिन भर खेलते रहो। स्कूल का कोई टेन्शन नही। 90 के दशक (ये न समझना कि मेरा जन्म 1990 में हुआ था) के बच्चों की बात करे तो उनके लिए गर्मी की छुट्टिया बिताने का मतलब दिन भर कंचे खेलना, लट्टू नचाना, पतंग उड़ाना, गिल्ली डंडा, छुपन छुपाई, आइस पाइस, कॉमिक्स , चंपक पढ़ना, विडियो गेम भी खेल लिया। मतलब फुल मस्ती । (उस जमाने में माँ बाप हिल स्टेशन घुमाने तो ले नही जाते थे तो क्या करे, न ही बड़े बड़े मॉल, मल्टीपलेक्स और वाटर पार्क थे) । तो भैया ये भी बात है गर्मियों की छुट्टी की। कौन सी क्लास में था याद नही है, पर छोटा ही था।
अब हुआ ये कि भाई साहब गर्मी की सुबह सुबह उठ कर हमारा काम था अपने पास के पार्क में टहलना सुबह- सुबह का मौसम बेहद सुहावना होता है और यही होता है राहत भरा समय। तो मैं अपने 2-3 दोस्तो के साथ चल दिया घुमने को औऱ जा पहुँचा एक पास वाले पार्क में यहाँ पर लगे थे बहुत सारे झूले। सीसा, झूला , एक कोई चकरी थी, फिर स्लाइडर। तरह तरह के गेम का आनन्द उठाने के बाद हम घर जाने को तैयार हो रहे थे। तभी मेरी नजर पार्क के पास पड़े बालू के ढेर पर पड़ी। और हमारी तो बाँछे खिल गयी। चलो आज बालू से भी खेल लेते है। घर बनायेगे। मैं ठहरा सिविल का खतरनाक स्टूडेंट। मेरा एक ही काम था। जब भी बालू का कोई ढेर दिखता तो मैं उसमें एक सुंरग बना देता। एक साइड से बालू हटाओ फिर दूसरी तरफ से और बन गयी एक सुरंग। सुरंग का मजा ही कुछ ओर था और फिर उसमें कोई चीज छुपा कर रख दो। फिर बराबर कर के वो सामान ढ़ूढो। मैंने भी उस दिन वो ही किया।
मैंने बालू के ढेर में अपनी लखानी की हवाई चप्पल छुपा दी। हाँ वो ही हवाई चप्पल जो हम सब ने अपने बचपन में उल्टी पहन ली होगी औऱ उस फोटो को बचपन में ये मासूम गलती किसने की थी के टैगलाइन से पोस्ट कर के हजारो लाइक बटोर लेते है। उसे बालू में छुपाने के बाद मैं दूसरे खेल में बिजी हो गया। । कुछ समय बाद मैंने सोचा कि अब घर चलना चाहिए। लेकिन तभी मुझे ध्यान आया कि चप्पल कहाँ गयी। और मैं चप्पल को यहाँ वहाँ ढ़ूँढने लगा। पर चप्पल हो तब न मिले। जब काफी देर तक चप्पल न मिली तो मुझे रोना आ गया और मैं बुक्का फाड़ कर रोने लगा ( वैसे इसका असल में मतलब क्या होता है?)और रोते रोते घर चला गया। और घर जाकर पापा को सब बात बता दी। पापा मेरे साथ घटनास्थल पर आ गये। तब तक गहन छानबीन के लिए एफबीआई, सीआईए, मोसाद, एमआई 5 एण्ड 6, केजीबी सब खुफिया एजेंसी आ गयी और अपने उपरकणों से इलाके की छानबीन करने लगी पर कुछ भी न मिला। फिर निराश होकर सभी खुफिया एजेंसी वहाँ से चली गयी। और उधर मेरे मित्र और मेरे पापा भी उस चप्पल की खोज जारी थी। मेरे पापा ने मुझसे पूछा कि आखिरकार मैंने चप्पल रखी कहाँ थी?लेकिन मुझे याद रहता तब तो मै बताता। मै तो यूँ ही रोता रहा।
यू ही करते करते 10-15 मिनट बीत गये। मैंने अपने जेब से मेन्टोस निकाला और उसे रोते रोते खा गया। और मेन्टोस खाते ही मेरे दिमाग की बत्ती जल गयी। और मुझे तुरन्त ही याद आ गया कि मैंने तो चप्पल तो बालू में दबा कर रखा है। और जैसे कोई पुरातत्ववेदा जमीन खोद कर पुरानी चीजे निकालते है वैसे ही मैं बालू को खोद कर अपनी चप्पल निकालने लगा। अधिक गहराई पर जाने पर मुझे जैसे ही चप्पल दिखी मेरी आँखो में चमक आ गई।
फिर उसे निकालकर मैंने ट्राफी मिल गई हो वैसे दोनों हाथो में उठा कर सबको दिखाने लगा। तुरन्त ही तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी, कैमरो की फ्लैश से पूरा इलाका जगमगा उठा। तमाम तरह के सनसनीखेज खबरो वाले मीडिया रिपोर्टर ने मेरे मुहँ में माइक ठूँस कर ‘जी आपको कैसा लग रहा है चप्पल दुबारा मिलने पर, किस तरह की दिमाग में बातें आ रही है आपकी? ‘क्या आप हमें बता सकते है?’ और मैं शर्माते सकुचाते हुए जी मुझे तो काफी अच्छा लग रहा है। अगर ये चप्पल न मिलता तो मुझे काफी बुरा लगता। ये शायद 3 नम्बर की चप्पल है। जिसे हमारे इलाके के ‘फुटवियर ही फुटवियर’ दुकान से लाया गया था। इसे लेने से पहले मेरे नन्हें पैरों की नाप ली गयी थी एवं उसके बाद अलग अलग चप्पल मुझे दिखाई गयी थी पर मुझे तो ये ही व्हाइट वाला चप्पल बढ़िया लगा तो मैंने ले लिया। फिर इसे डब्बे में पैक कर एकदम बढ़िया से कपड़ा के झोला में दिया गया क्योंकि पॉलिथिन तो बैन है। उसके बाद मै इसे हँसी खुशी घर ले आया था। हाँलाकि शुरू में ये चप्पल थोड़ी टाइट हो रही थी पर दुकानदार ने कहा था कि पहनते पहनते ये चप्पल साइज में आ जायेगी। निश्चिन्त रहे।
फिर मैंने इसे एक बार इसे उल्टा भी पहना क्योंकि ये जरूरी होता है नही तो आपने अपना बचपन नही जिया है। कल को फेसबुक या सोशल मीडिया पर कोई मुझे पूछ ले कि क्या आपने भी ये हसीन गलती की है? तो मैं क्या जवाब देता। इसलिए ये भी करना पड़ा। फिर मैने इसे अपने यार, दोस्तों, रिश्तेदारों, पड़ोसी मुल्क के बाशिदो को भी दिखाया। वो भी देख कर खुश हुए और मेरे नये चप्पल की शुभकामनाएँ दी। इसलिए इसे खोने पर मुझे काफी दुख हुआ। उसे शब्दों में बयान कर पाना काफी मुश्किल है। मैं चाहता हूँ कि ये इतने देर बार बाद मिला है तो मुझे कुछ पल के लिए अकेला छोड़ दिया जाये ताकि मैं चप्पल का हाल चाल ले सकूँ।
फिर उसके बाद मैं वहाँ से अपने घर चला आया। घर वाले इस किस्से को सुनकर खुब हँसे। ये देखो चप्पल ही गुम करा दिये ये। अच्छा हुए खुदे गुम नही हुए। तुम ही बालू में छिप जाते तो कौन ढूँढता? जा, जा के मुहँ हाथ धो के खाना खा ल। रो कर पूरा गाल पर निशान बना लिया है आँसू का। फिर मैं थोड़ा दुखी तो हुआ घर वालो के चिढ़ाने पर, फिर चप्पल के मिलने की खुशी में सब भूल गया।
अगले दिन अखबारो में ये खबर आ गयी। ‘बालू के ढेर में गुम हुआ चप्पल, बच्चे ने रो रोकर पहाड़ सर पर उठाया’। न्यूज चैनल वाले तो उसी टाइम से ब्रेकिग न्यूज चलाये पड़े थे। ‘ चप्पल कहाँ गुम हुआ? ‘बालू में चप्पल, पार्क में ढिढोरा’ , ‘चप्पल गुम, जिम्मेदार कौन’? मैं तो खबर पढ़ , सुन कर पक चुका था। फिर सोशल मीडिया पर ‘इस बच्चे की चप्पल गुम होने की खबर को इतना फैलाओ की चप्पल खुद आ जाये। शेयर रूकने नही चाहिए मित्रों’। ये सब चल रहा था।
फिर किसी ने मेरा वीडियो बना कर ‘इस बच्चे की चप्पल हुई गुम , आगे देखिए क्या हुआ’? कैप्शन लिखकर यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया जिस पर अभी तक 10 लाख व्यू आ चुके है।
और मैं इन सब बातो से बेखबर , बिस्तर से पैर लटकायें हुए, चप्पल को आधा पैरो में पहने हुए चंपक पढ़ते हुए , बिस्कुट खाते हुए ये सोच रहा था कि काश मेरा पास ढेर सारा पैसा रहता तो मै लाखों का बिस्कुट खरीद लेता और उसे दिन भर खाता रहता। कोई टेंशन नही, कोई परवाह नही। बिस्कुट, चंपक और मैं और ढेर सारी बस बिस्कुट, बिस्कुट और बिस्कुट।
समाप्त
Shalini Sharma
07-Oct-2021 02:25 PM
Beautiful story
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Seema Priyadarshini sahay
01-Oct-2021 04:19 PM
बहुत खूबसूरत कहानी
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Aliya khan
20-Jul-2021 08:06 PM
Nice👏👏👏
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