NEELAM GUPTA

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कसक

हृदय में पीर। नैनो में  नीर ।
आँचल ओढ़े चली धीरे धीरे ।
नदियाँ के तीरे तीरे।
सोंचती जा रही थी कहाँ मै जाऊँ।
इस जहाँ में कौन मेरा।
कदम ठिठक रहे थे।
किस दिशा कदम बढ़ाऊ।
कौन सुने मेरे मन की पीड़ा।
लिए भारी जियां।
आँचल ओढ़े चली धीरे धीरे ।
नदियां के तीरे तीरे।
मन में हुडक उठे बार बार।
सुबकते नयनों को लिए हथेली में।
दहलीज पर कैसे जाऊँ अपनी।
क्या मुँह दिखाऊँ जिसकी मैं सजनी।
शर्म मुझको आए क्या मै बताऊँ।
नहीं मेरी गलती। किसी ने जो मेरा आँचल खींच ।
कर दिया मैला। कर दिया चीर चीर।
कैसे करें क्या वो अपने होठों को सीले ।
पैर फिसला गिरी नदियाँ में।
खोई अपने विचारों में।
बह गयी वो बहुत गयी तेज बहाव में।
यही है वो जगह थी पहले उसकी।
रूह मरी थी जहाँ।
आँचल ओढ़े चली धीरे धीरे ।
नदियाँ के तीरे तीरे।
चलता आ रहा यही सदियों से।
करनी किसी की। और भरना पड़े किसी को।


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2 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

30-Mar-2022 05:06 PM

वाह बहुत बढ़िया मार्मिक चित्रण !

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Gunjan Kamal

16-Mar-2022 10:19 PM

बहुत खूब मैम

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