कविता - प्रीत के रंग

❤️|| प्रीत के रंग ||❤️

सालभर संजोये भावों से ,
मैंने प्रीत के रंग बनाये हैं।
पुनः प्रियवर! को रंगने को,
चुपके से मुट्ठी में छिपाये हैं।।

एक-एक रंग शनैः – शनैः चढ़ाऊँगी,
सतरंगी मुख पे तेरे मंद- मंद मुस्काउँगी।
प्रेम-विरह की पीड़ा का श्याम रंग लगाऊँगी,
प्रेम-मिलन के शांत स्वरों को श्वेत से फिर चमकाऊँगी ।।

तेरी याद में ; नयनों में उतराये जल से,
मैंने नीला- आसमानी रंग बनाया है।
प्रेम सा गहरा – प्रेम सा ऊँचा ,
सागर – नभ सा नीला प्रेम तुम्हें उढ़ाया है।।

देख तुझे प्रथम-क्षण में प्रेम पल्लव प्रस्फुटित हुए,
तब ही मैंने चुरा लिये ; उन पलों से रंग हरे।
मेरी जीवन बगिया में फिर हरियाली छाई है,
इस हरे से तुझको; सराबोर करने की; अब मेरी बारी आई है।।

मेरी गुलाबी शर्म पे तुम, अलि बन मंडराए हो,
देखो! हृदयालय में तुम ; फिर पीत वासंती लाये हो ।
बड़ी देर से तुम भी एक रंग; हथेलियों में छिपाये हो,
माँग मेरी भर “लाल” से तुमने; ये प्रेम “सम्पूर्ण” बनाये हो ।।

लेखिका✍️©® शिवांगी शर्मा
©® Shivangi Sharma - शब्दों के शिखर

✍️ स्वरचित , मौलिक व सर्वाधिकार सुरक्षित कविता ✍️

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3 Comments

Shivani Sharma

20-Mar-2022 01:22 AM

Bahut khoobsurat kahani.

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Archita vndna

19-Mar-2022 01:53 AM

Bahut khoobsurat kavita likhi h aapne, padh kr bahut achcha lgaa

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Swati chourasia

17-Mar-2022 07:11 PM

बहुत ही सुंदर रचना 👌

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