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लेखनी प्रतियोगिता -18-Mar-2022

चिड़िया

डाल डाल पर फुदक रही थी
पंख फैलाकर नभ में उड़ रही थी
थी एक चिड़िया छोटी अलबेली
व्यथा वो अपनी सुना रो रही थी

कैसी ये आंधी है आयी षडयंत्र प्रपंच से विश्व में मची तबाही
स्वार्थ में हर मानव जल रहा है
शान्ति रुपी चिड़िया का अंत हो रहा है

देख देख मन मेरा कुंठित होता है
होलिका की ज्वाला बुराई का अंत न होता है
कैसा हाहाकार मचा है धरा मन कंपित होता है
पर नर अभिमान में अपने पंख मेरे जलाता है

टूट गया है मेरा घरौंदा किस मुडेर अब बैठूँ मैं
जहाँ देखूँ तबाही मची है अमन का साज कैसे छेड़ूँ मैं
ढलते सूरज के जैसे उम्मीद मेरी ढल रही है
देख हसरते बढ़ती इंसान की ये नन्हीं चिड़िया नित मर रही है

श्वेता दूहन देशवाल
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 

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7 Comments

Ankit Raj

28-Jun-2022 12:38 AM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

22-Mar-2022 12:54 AM

बहुत खूबसूरत

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Punam verma

19-Mar-2022 02:34 PM

Nice one

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