जीवन
जीवन
मिसरा किसी और का है, पर कैफियत मेरी अपनी
कल मिला वक़्त तो जुल्फें तेरी सवारुंगा।
आज उलझा हूं उलझे वक़्त को सुलझाने में।।
और वक़्त की गांठें सुलझाते सुलझाते, पता ही ना चला
कब जिंदगी हाथ से फिसल गई।
तेरी जुल्फ कांधे पे बिखर न सकी।
और जिंदगी की शाम यूं ही ढल गई।।
दिन बीते, साल बीते पर न डोर मुझ से संभल सकी।
वक़्त की आंधियों के आगे पतंग की कुछ न चल सकी।।
कल जो सोचा था, छू लूंगा बढ़ कर आसमां।
आज देखा तो पांव तले जमीन ही खिसक गई।।
तिनका था जो उड़ चला जब हवाओं को रुख कबूल था।
अब मिला जो खाक में, कुदरत का ही तो उसूल था।।
ये जीवन भी क्या है, तिनके सी तो कहानी है।
कभी अर्श पर कभी फर्श पर, बाकी सब फसाना है।।
आभार – नवीन पहल – १९.०३.२०२२
# प्रतियोगिता हेतु
Seema Priyadarshini sahay
22-Mar-2022 01:03 AM
वाह बहुत खूबसूरत
Reply
Punam verma
20-Mar-2022 10:30 AM
Nice
Reply
Abhinav ji
20-Mar-2022 09:20 AM
बहुत खूब
Reply