Sangeeta singh

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गांव की ओर

दादी तुम हमें रोज कहानी सुनाओगी ,तभी हम मोबाइल पर गेम नहीं खेलेंगे।

रवि और रानी  दोनों गांव आ गए थे।रवि और रानी ने अपनी आंखें शहर में ही खोली थी,उन्होंने गांव कभी नहीं देखा था।

माता पिता की प्राइवेट नौकरी थी,जिससे छुट्टी कभी कभार ही मिलती थी।
राजेश के पिता को उनका शहर में रहना रास नहीं आता था,पहले वे कहते लगता है मेरी मृत्यु के बाद ही तुमलोग गांव आओगे।

राजेश ने बीएससी एग्रीकल्चर किया था,और  एक फर्टिलाइजर कंपनी  में जॉब करने लगा।मीनाक्षी एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी।


कोरोना ने कितनों की जिंदगियां , रोजी रोटी छीन ली। उन दोनो की नौकरी भी इस महामारी में छूट गई।

अब शहर में रहना नामुमकिन था,मकान का किराया ,दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था।
इसीलिए मीनाक्षी और राजेश ने निर्णय लिया कि गांव सुरक्षित है,अब अपनी पढ़ाई को अपने ही खेतों के विकास में लगाऊंगा।
और आज पास के गांव में भी अपनी सलाह दिया करूंगा।
इसी कारण ,रवि रानी ,मीनाक्षी ,और राजेश सब वापस गांव आ गए।

रवि 4 साल का था जबकि रानी 2 साल की थी।
माता पिता उन सबको देख कर बहुत खुश हुए,उनकी आंखों में एक गहरा संतोष दिख रहा था।

मीनाक्षी ,घर के कामों में हाथ बंटाती,खाली समय में गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाती ।

शुरू में शहर की सबको बड़ी याद आती थी।
लेकिन अब गांव ही अच्छा लगता था।
ताजी सब्जियां ,रोजाना किचेन में बनती ,शहर में डिब्बा बंद चीजे खा खा कर सेहत का कबाड़ा हो रहा था।

रवि बहुत उधम मचाता था,खुला खुला आंगन,बड़ा घर । जब सब चिल्लाते तो मोबाइल पर लग जाता।शहर में फ्लैट में बंद बच्चों का बचपन छिन जाता है।

दादी का पूरा दिन बच्चों के पीछे गुजरता ,अब वो भी बच्ची बन जाती,रात को घुटने में दर्द , दवा लगाती,तो नन्हे नन्हे हाथों से रानी लगाने लगती ।दादी बलिहारी जाती।

रात को बच्चे दादी के पास ही सोते।

बारिश का महीना आ गया था।मेढक की  टर्र टर्र ,झींगुर की आवाज रात की नीरवता को तोड़ती।
बरसात में दादी दोनो बच्चों को पूरा कपड़ा पहनाती ताकि मच्छर दूर रहें।

आज शाम से ही बादल घेर रहे थे।रिमझिम बारिश होने लगी।बिजली चली गई।सभी लोग हल्की बारिश का मजा ले रहे थे।चाय ,पकौड़े का आनंद तो बारिश में ही होता है।
अंधेरा होने लगा।थोड़ी देर में आंगन में झिलमिलाती रोशनी दिखाई देने लगी।
रवि और रानी दोनों खूब खुश हो गए।

वो क्या है दादी,नन्ही रानी, उछल पड़ी।दादी ने कहा _बेटा ,ये जुगनू है।
,इसमें तो कुछ जल रहा दादी और रवि जुगनू के पीछे दौड़ने लगा।शहर में कभी जुगनू नहीं देखा था।

आखिर उसने एक जुगनू पकड़ लिया।दादी ने कहा ,पहले बहुत जुगनू दिखा करते थे,_"  एक लंबी  श्वास छोड़ते दादी बोली ,जानते हो हमलोग जब छोटे थे तो इससे  विश मांगते थे , कि आज हमें स्कूल न जाना पड़े,घर में कोई बीमार पड़ जाए।

पर दादी इसमें से तो लाइट भी जल रही ।
दादी _अब ये पूछो अपने दादा जी से,की क्यों इसमें से लाइट निकलती है ।
दादाजी  बताओ न?
मीनाक्षी उठ कर ,चाय के कप रखने चली गई।
दादा जी ने कहा _ चलो ,बच्चे तुमको जुगनू के बारे में बताते हैं,अभी तुम ज्यादा समझ नहीं पाओगे,लेकिन तुम्हारी दादी के दिमाग की बत्ती जल जाएगी ,बेचारी जुगनू को देख विश ही मांगा करती थीं।
सब हंस दिए।मीनाक्षी भी आ गई ।
दादा जी ने दादी को छेड़ते हुए कहा _क्यों मुझे भी तुमने किसी जुगनू से विश में तो नहीं मांगा।

दादी शर्मा गई ,कुछ भी बोलते हो।
बत्ती आ भी गई थी।रवि के हाथ से जुगनू उड़  गया था।
रवि ने कहा ,_दिन में पकड़ लूंगा।

दादा जी हंसने लगे_जुगनू कीट हैं ,ये ज्यादातर शाम और रात में दिखाई देते हैं।
इनमे एक तरह का प्रोटीन पाया जाता है जिसे बायोल्युमिनीसेंस कहते हैं ये ऑक्सीजन के संपर्क से ऑक्सीकृत हो रोशनी पैदा करते हैं।ये रोशनी पीली,नीली,हरी भी होती है।मादा जुगनू के पंख नहीं होते ,जबकि नर जुगनू उड़ते हुए प्रकाशित रहते हैं।

तुमने शहर में इसे देखा था ??
मीनाक्षी में कहा _नहीं पापा ।
दादा जी का शब्द धीमा हो गया ,बोले अब धीरे धीरे ये हमारी नई पीढ़ियों ले लिए इतिहास बन जाएगा।
ये ज्यादातर ,खुले स्थानों,जमीन,पेड़ की छालों,में अपने अंडे देते हैं।इनकी आंखे बड़ी और टांगें छोटी होती हैं।

ये हमारे लिए बहुत लाभदायक है,पेड़ के अंदर छुपे हानिकारक  लार्वा,कीट को ये खा लेते  हैं।
लेकिन अब ये धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं,खर पतवारों,और कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग से ,जंगलों ,पेड़ों के कटने से।मानवीय यातायात बढ़ने से।

रवि आराम से मुंह खोले बातें सुन रहा था।

मीनाक्षी और दादी  खाना बनाने चल दी।
रवि के मन में गांव को लेकर बहुत कौतूहल था ,वो रोजाना दादा के साथ खेत,चौपाल ,जाया करता और तरह तरह के प्रश्न करता।
गांव का जीवन बहुत सीधा सरल था,रवि का मन इसी सब में रम गया ।
2 साल बाद जब स्कूल खुल गए तो मीनाक्षी को बच्चों की शिक्षा को लेकर शहर जाना पड़ा,लेकिन महानगर नहीं गए बल्कि  गांव के नजदीक अपने शहर में ही बस गए।
महानगर  में अपनी जड़ों को छोड़कर  जाना को राजेश को मंजूर नहीं  था और बच्चे भी शनिवार ,रविवार अपने दादा दादी के साथ रहते ।


 

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7 Comments

Shrishti pandey

21-Mar-2022 10:37 AM

Very nice mam

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Punam verma

21-Mar-2022 08:28 AM

बहुत बढ़िया

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Sangeeta singh

21-Mar-2022 08:36 AM

धन्यवाद

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Abhinav ji

21-Mar-2022 07:37 AM

बहुत खूब, और वैसे भी अपने गाँव से जुड़े रहना जरूरी होता है।

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Sangeeta singh

21-Mar-2022 08:36 AM

बहुत बहुत आभार समीक्षा के लिए

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