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नाव - लेखनी कविता प्रतियोगिता -21-Mar-2022

नाव का भी है अपना सुंदर इतिहास
आदिवासियों हेतु ये बनी बड़ी खास।

जब ढोना पड़ता उनको भारी सामान 
बड़े नाले पार करने में सूखते थे प्राण।

सरपत, नरकुल के बेड़े किये गए तैयार
जिसने आदिवासी जीवन नैया दी तार।

तना कोलकर व छाल की बनी डोंगियाँ
बना जीवन सरल बदली थी जिंदगियाँ।

धीरे-धीरे बनने लगी चमड़े की पनसुइया
सुगम होने लगा पार करना अनेक दरिया।

रहती थी यह पानी के प्रवाह पर निर्भर
इंद्रधनुषी सपनों संग चले अपनी डगर।

नवीन कलाओं से रूप हुआ सुसज्जित
युग के अनुरूप परिवर्तन होते रहे नित्य।

हुई जलाभेद्य वकसानुमा नाव तब निर्मित
चलती रही परिवर्तन की धारा न हुई इति।

दिखे नौ निर्माण विधियों के उत्कृष्ट नमूने
नौका नयन कला लगी थी आसमान छूने।

अमेरिका के जॉन फिच ने जोड़ा स्टीम इंजन
1787 में 45 फीट लंबी नाव ने मोहा मन।

हंसक, तरंग, बगला आदि बने विविध रूप
समाहित कर आश्वस्तता बदले भिन्न स्वरुप।

कागज की सुंदर नौका को कैसे जाएँ भूल
चला बारिश के जल में बालमन जाए झूल।

थी कागज़ की नाव और मस्ती भरा किनारा
खेलकूद करते-करते मन बन जाता बावरा।

जिंदगी भी होती एक बेहद खूबसूरत नाव
तूफानों से लड़कर ले लेती अपनी ठाँव।

मन भी होता है कागज की प्यारी नाव सम
बहता जाता है परिस्थिति हो कितनी विषम।

यादों की कश्ती तो होती और भी सुहानी
छिपी होती न जाने उसमें कितनी कहानी।

नौका धातु की हो या हो भावनाओं से पूर्ण
सैलानी को पहुँचाती है उसके शीतल कूल।

ईश्वर कृपा से मिल ही जाता है सच्चा माझी
मुश्किल घड़ियों में बनता है जो हमारा साझी।

                                  डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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16 Comments

Ayaansh Goyal

22-Mar-2022 02:29 PM

Beautiful

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Nand Gopal Goyal

22-Mar-2022 02:17 PM

बहुत खूब

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Shrishti pandey

22-Mar-2022 09:25 AM

Nice

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