मकान
"मकान"
क्या ये सच है कि होते हैं
दीवारों के भी कान
क्या सुनते हैं इंसानों की
बातें भी मकान
क्या समझती हैं इंसानों की
भाषा दीवारें भी
या सिर्फ यूं ही किसी
भ्रम में है इंसान
आजमाया नहीं कभी भी
नहीं पूछा कभी दीवारों से
क्या महसूस करती हैं
वो भी इंसानों के भाव
जब बांट दी जाती हैं
नफरत से दीवारें
पूछा नहीं कभी दीवारों से
क्या दुखता है कभी उनका भी मन
जब सुनता है कोई बातें
दीवारों के उस ओर से
क्या होती हैं वो दीवारें हीं या
होता है कोई इंसान
सुनता है बातों को जब कोई इंसान
तो क्यूं बेवजह बदनाम हैं दीवारों के कान।।
कविता गौतम...✍️
23-3-२२
दैनिक प्रतियोगिता हेतु।
लेखनी काव्य
Punam verma
25-Mar-2022 12:01 AM
Nice
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Seema Priyadarshini sahay
24-Mar-2022 05:53 PM
वाह मैम👏👏
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Renu
24-Mar-2022 11:44 AM
बहुत ही बेहतरीन रचना
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