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बदकिस्मत पंडिताइन

" बदकिस्मत, पंडिताइन  "

मैं बाजार से वापस घर पहुंचा तो, देखा कि पंडिताइन जो हमारे घर से कुछ ही दूरी पर उनका भी घर है, वो मेरे घर के बारामादे में बैठी कुछ मनुहार, आश्रय की अवस्था में दिखीं, मेरी श्रीमती जी से कुछ बातचीत कर रही थीं। मैंने मोटरसाइकिल खड़ी किया गाड़ी की डिग्गी खोलते हुए कहा, कि ये सब्जी ले जाइये, लेकिन वो पंडिताइन की बातें सुनने में मशगूल थी बोलीं ठीक है, और बैठी रहीं। 
मैं भी उनके पास बैठ गया, मैंने पूछा 
और कैसी हो,  सब ठीक तो है। 
उन्होंने उत्तर दिया,  हाँ भैया सब ठीक है, 
मैंने पूछा,   कोई विशेष बात है क्या? 
टालते हुए बोलीं, नहीं दूध लेने आई तो आपके श्रीमती जी से बात चीत करने लग गई, 
अच्छा चल रही हूँ, वो (उनके पति )अभी आते होंगे गुस्सा हो जायेंगे, बहुत दुष्ट हैं, बिना बात के लडते रहते हैं। 

उनकी ये बात सुनकर, 
मैंने कहा कि ऐसी बात तो नहीं है, वो आपको बहुत चाहते हैं, 
फिर बोलीं नहीं भैया बहुत दुष्ट हैं,  आप नहीं जानते, आप तो बाहर रहते हैं, 
मैंने कहा, ठीक है इतना तो होता ही रहता है, 
मैं थोड़ा मजाकिया लहजे में, उनसे सवाल कर लिया? 
अच्छा ये बताओ कि आप उनको (मतलब उनके पति )कि आप उनसे पहली बार कैसे मिली (दर असल उनकी लव मैरिज थी ) कैसे उन्हें पसंद कर लिया। 
मेरे इतना कहते ही, वो भावुक हो गईं, बोली               भैया मेरी किस्मत ख़राब थी, जो इसके पल्ले पड़ गई, 
(ऊपर मैंने जो लिखा है कि लव मैरिज, लेकिन ऐसा नहीं था, ये एक घटना मैरिज थी )

भैया आपसे कुछ छुपा उंगी नहीं (कसम खाते हुए )
मैं अपने पति के साथ एक शहर में रहती थी, औऱ वो उसी शहर में ही एक कंपनी में नौकरी करते थे (पहले वाले पति )
ये सन 1984 की बात है, उन्हीं दिनों इंदिरा जी की हत्या हो जाने के कारण पुरे देश में कर्फू लगा हुआ था. 
हमारी शादी वही मई में हुई फिर दोबारा वही बिदा होकर गई थी, 
हमारे पिताजी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैँ, वे मुंबई में रहते थे, अभी भी हैं। मैं माँ बाप की सबसे दुलारी थी, इसलिए कि मैं सबसे बड़ी थी, और मेरे आठ साल बाद मेरा छोटा भाई हुआ, इसलिए लाड प्यार की वजह से मैं जिद्दी हो गई थी,।
(इस दौरान वो दुखी और भावुक भी दिखीं और पश्चात्ताप का भी बोध हो रहा था )
मुझे भी उनके विषय में जानने की उत्सुकता थी, 
अभी तक मैं उन्हें ध्यान से सुन रहा था, 
पुनः मैंने पूछा, फिर क्या हुआ? 
फिर सम्भलते हुए. 
कर्फू के दौरान खाने पीने की दिक्कत होने लगी, औऱ वो (पिछले पति )कंपनी के कैंटीन में ही खाना खा लेते थे, 
औऱ कमरे पर जो स्टोव था वह भी ख़राब था, जिसके कारण मैं रूम पे तीन दिन किसी तरह भूखी रही, एकदम अनजान होने के कारण किसी से कोई संपर्क भी नहीं था। 
उस समय मोबाईल वगैरह तो था नहीं,  तीसरे दिन ज़ब वो आये तो मैं गुस्से में थी, कुछ कहा सुनी हुई, उन्होंने उसी ख़राब हुए स्टोव पर खिचड़ी चढ़ा दिये लेकिन चूल्हा तो पहले से ही ख़राब था, जिसके लिये मैं पहले कह चुकी थी, चूल्हा भक भक जलता देखकर मेरा गुस्सा और भड़क गया, मैंने पतीले को गिरा दिया सब फ़ैल गया, 
फिर मैंने कहा कि हमें हमारे मामा के यहाँ पहुंचा दो अब मैं यहाँ नहीं रहूंगी, झगड़ा हुआ 
(मेरे माँ बाप बम्बई में रहते थे )मामा का घर करीब सौ किलोमीटर के आस पास था, 
अगले दिन वो फिर बिना ये बताये कि मैं कंपनी जा रहा हूँ पैसे की व्यवस्था करने, चले गए 
मेरे दिमाग़ में गुस्सा था ही, मैंने सोचा कि मेरे लिये बिलकुल फ़िक्र नहीं है, ये तो बड़ा ही लापरवाह इंसान है, 
अब यही मेरे जीवन का सबसे दुखद मोड़ का समय था, 
भैया, 
मैंने सोचा कि अब मैं यहाँ से अपने मामा के यहाँ चली जाऊँ तभी ठीक है, 
सारा अपना सामान औऱ मेरा जो भी गहना कपड़ा था अटैची में रखा और घर से निकल पड़ी, घर से निकलते ही रिक्शा वाला भी दिख गया, 
मैं बोली भैया स्टेशन चलोगे 
रिक्शा वाला बोला हाँ चलूँगा 
मैंने पूछा कितना किराया लोगे, 
वो बोला चार रूपये 
मैं रिक्से से स्टेशन आ गई, मेरे पास कुल बारह रूपये थे, एक दस की नोट दो रूपये का सिक्का, चार रूपये रिक्शा वाले को देने के बाद मेरे पास आठ रूपये बचे थे, 
टिकट खिड़की पर पूछा कि फलां (जहाँ जाना था )स्टेशन तक किराया कितना है, 
काउंटर पे बताया कि सात रूपये, मैंने सोचा कि किराये भर के पैसे तो हैं ही 
मैंने फिर पूछा कि वहाँ जाने वाली गाड़ी कब तक आएगी 
स्टेशन मास्टर ने बताया कि छ घंटे लेट है। 
इस समय करीब रात के नौ बज रहे थे, कर्फू होने की वज़ह से स्टेशन पर सन्नाटा भी था, 
अब मैं बड़े पशोपेश में कि हे भगवान अब क्या करूँ, 
उस समय मेरी उम्र बीस, इक्कीस की थी, मैं सुन्दर भी थी गहना भी था, 
स्टेशन के विषय में सुना करती थी, कि इन जगहों पर लुटेरे भी रहते हैं, 
यही सब सोचकर मैं रोये जा रही थी मन ही मन कुछ समझ में नहीं आ रहा था। 
कुछ देर बाद एक किनारे से दो लोग आते हुए दिखे (जिसमें एक यही थे जो आज मेरे पति हैं )

दोनों लोग सामने से गुजरते हुए इन्होंने कहा, औऱ "पंडिताइन "कैसे औऱ आगे बढ़ गये, इनके इतना कहते ही मेरे दिमाग़ में ये चलने लगा कि ये हमें कैसे जानता है, 
मैं उसको जाते हुए देखती रही, कुछ दूर जाने के बाद इन्होंने हमें पलट कर देखा, (मेरे दिमाग़ में तो ये चल ही रहा था कि ये हमें कैसे जानता है, )
तो मैंने हाथ से इशारा करके बुलाया, 
ये समझने के लिए कि हमें कैसे जानता है ये आदमी,  इस बड़े शहर में, 
ये श्रीमान जी आये, इनके साथ जो दूसरा आदमी था, 
उसी के होटल में ये काम करते थे, 
दोनों लोग हमारे पास आये,
तो मैंने इनसे पूछा कि आप हमें कैसे जानते है, कि हम पंडित हैं? 
इन्होंने कहा कि बस ऐसे ही 
(अब भैया इसे संयोग कहें या कुयोग )मुझसे बोली पंडिताइन, मैंने पूछा फिर? 
तो इन्होंने मुझसे पूछा कि कहाँ जाना है आपको, कौन सी ट्रेन है (ये स्टेशन के पास के होटल में रहते थे )
तो मैंने इनसे कहा कि मुझे फला जगह जाना है, वहाँ मेरे मामा का घर है,। 
तो दूसरा आदमी, बोला जो इनके साथ था. 
कि पंडित जी का घर भी उसी जिले में है, जहाँ आपको जाना है, उसी के पास ही, 
(अब तक करीब दस बज चुका था, रात के, )
उस दूसरे आदमी ने कहा कि ट्रेन का कुछ पता नहीं कब आएगी, 
यहाँ स्टेशन पे रुकना ठीक नहीं है, यहाँ चोर ऊचक्के आ जाते हैं, आपके लिये खतरा है, आप ऐसा करें कि हमारे साथ आप होटल चलें आप वहाँ सुरक्षित रहेंगी, औऱ सुबह पंडित जी आपको सुरक्षित आपको अपने साथ लेकर आपके मामा के यहाँ छोड़ आएंगे 
मैंने भी आगे पीछे सोचा कि यहाँ स्टेशन पर सब छीन भी लेंगे औऱ भी कुछ बुरा हो सकता है, 
मैं इन लोगों के साथ उनके होटल आ गई, मुझे होटल के एक कमरे में ले गये औऱ ये बोले कि तुम हाथ पैर धोकर फ्रेश हो तबसे मैं तुम्हारे लिये बाहर से खाना लेकर आता हूँ, औऱ ये बाहर से गेट की कुण्डी लगाकर चले गए. 
इनके जाने के तुरंत बाद ही, जो होटल का मालिक था, मेरे पास आया और बोला कि ये जो आपके पास  गहने हैं, ये मुझे दे दो, सुबह मैं आपको जाते समय दे दूंगा, 
मैं तो एकदम से डर गई कि हे भगवान मैं तो फंस गई, 
बदमाशों के चक्कर में. अब मैं क्या करती मना कर दूँ तो कहीं मेरे साथ दुर्व्यवहार या मुझे मार न दें. 
मरता क्या न करता 
मैंने उस होटल मालिक को अपना सारा गहना दे दिया, 
औऱ रोती रही, 
करीब आधा घंटा बाद ये खाना लेकर आये तो मैं रो रही थी। 
इन्होंने पूछा 
क्यों रो रही हो, क्या हुआ? 
तो मैंने होटल मालिक के बारे में बताया कि उसने मेरे सारे गहने ले लिया, 
इतना सुनते ही इन्होंने खाना फेंक दिया, औऱ होटल मालिक के पास गये (गुस्से में )उसे घसीटते हुए मेरे पास तक ले आये, औऱ उसे खूब (गालियां देते हुए )मारा....... 

कहानी का शेष भाग कल लिखेंगे........... 

आपकी जिज्ञासा औऱ प्रतिक्रिया का  इंतजार रहेगा 
लेखक,.  जग नारायण मिश्र, प्रतापगढ़, 22.06.21🙏

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2 Comments

Ravi Goyal

28-Jun-2021 02:06 PM

Bahut khoob 👌👌

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Vfyjgxbvxfg

28-Jun-2021 02:01 PM

बेहद खूबसूरत रचना

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