कविता
सरल नहीं है बच पाना, अंतश मन के कोहाहल से।
और सुष्मीना को आहत करते हुए हलाहल से।
साहिल तक जाना टूटी कश्ती से तूफ़ानों में।
सरल नहीं है डटकर लड़ना युद्ध ठने मैदानों में।
युद्ध भूमि अरमान कुचलती है निज निज सम्बन्धों का।
और तोड़ती निर नयन भावों के स्वर्णिम तटबंधों का।
मेरी भाषा युद्ध की भाषा जिनको भाता है सुनिए।
वरना मुल्क आजाद अभी है दौड़ नग्गता का चुनिए।
मेरी कविता उन्वान करेगी रण चंडी के दामन को।
और हौसला प्रखर दिखेगा भारत के हर जन जन को।
रक्त चाटता लिखूंगा भैरव और मृत्यु के प्रवभंजन को।
पराग का टूटते फूलों से होते करुण कहर गुंजन को।
क्रूर कौरवों के दल पर प्रहार को शस्त्र बनी कविता ।
परमब्रह्म के मुख से निकली कुरुक्षेत्र में भी कविता।
गीता के श्लोक सकल भी तो काव्य के हिस्से हैं।
एक दोहे में चौहान जगा था मशहूर विश्व में किस्से हैं।
शाही फरमान मुहम्मद गौरी दे कर के इतराया था।
पृथ्वी राज को छल से उसने ही तो कैद कराया था।
गर्म लौह की सरिया आंखों में डाली जाती थी।
वो देख सके न लक्ष्य कभी इसलिए निकाली जाती थी।
ऐसे क्रूर मुहम्मद गौरी पर भी नियति का ही वश था।
पंहुचती नहीं अगर कविता तो कविता का अपयश था।
Swati chourasia
28-Mar-2022 07:01 PM
वाह वाह वाह बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌👌👌👌👌
Reply
Renu
28-Mar-2022 04:16 PM
बहुत ही बेहतरीन
Reply
Sachin dev
28-Mar-2022 03:40 PM
बहुत खूब
Reply