बेवजह
बेवजह
रात के बारह बज रहे हैं। शैफाली आज फिर सफेद रंग की मारुति में आई है। सरल ने देखा उसके बॉस पी.के. उसे सहारा देकर सीढ़ियों तक पहुँचा गए हैं।
पत्नी के कमरे में घुसते ही वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘क्या तुमने मुझे भड़ुवा समझ रखा है जो मैं यह सब खामोशी से बर्दाश्त करता रहूँगा। नहीं करवानी मुझे तुमसे नौकरी। कल से घर बैठो।’’
‘‘नौकरी तो मैं छोड़ने से रही।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘मतलब साफ है उसके लिए मैं तुम्हें छोड़ सकती हूँ।’’
‘‘अब नौबत यहाँ तक आ पहुँची है ?’’
‘‘ये तो तुम्हें पहले ही सोच लेना था जब तुमने प्रमोशन के लिए मुझे इस्तेमाल किया था। अब सिर्फ मैं अपने लिए अपने को इस्तेमाल कर रही हूँ। तुम्हारा गुस्सा बेवजह है।’’ शैफाली ने ठंडे लहजे में कहा और सिंक में चेहरा धोने लगी।