हिसाब
हिसाब
‘‘माँ आपने दो महीने पहले मार्केट में मुझसे दो सौ सत्तर रुपये लिये थे।’’ बड़े बिजनेस मैन बेटे ने अलग रहने वाली निम्न मध्यवर्गीय माँ को याद दिलाया।
हाँ बेटे मुझे याद है।’’ कहते हुए माँ ने उसी समय सौ के तीन नोट बेटे को दे दिये।
मेरे पास टूटे नहीं हैं’’ बेटे के ये कहने पर ‘‘कोई बात नहीं’’ कहकर माँ बेटे की पसंद का हलवा बनाने रसोई में चली गई।’’
उस दिन भी बेटा माँ से मिलने आया था। ठेलेवाले के पास बढ़िया सेब देखकर उसने माँ से रुपये लेकर अपने परिवार के लिए सेब खरीद लिये।
कुछ दिन बाद मिलने पर जब वह माँ को पैसे लौटाने लगा, माँ की आँखों में आँसू आ गये उसके पैसे न लेने पर बेटा बोला, ‘‘ये तो हिसाब की बात है, तीस रुपये इसमें पहले के भी हैं।’’
‘‘बेटे तू मुझसे हिसाब कर रहा है ? फिर ऐसा कभी मत करना। तू किस-किस बात का मुझसे हिसाब करेगा। बोल ! कर सकेगा, सारा हिसाब, चुका सकेगा वो कर्ज जो मेरा तुझ पर है ? तेरे अलग रहने से दिल तो अलग नहीं हुए, मेरा प्यार तो कम नहीं हुआ, तू मेरे लिए अब भी वही है मेरा अपना, सिर्फ मेरा बिट्टू। हमारे रिश्ते में ये हिसाब कहाँ से आ गया ? क्या तू अपने बबलू से हिसाब की बात सोच सकता है ?